अगल-थलग पड़ा पाकिस्तान

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पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान स्थित जैश के लॉचिंग पैड को तबाह किये जाने के बाद यह तो तय माना जा रहा था कि भारत के खिलाफ उसकी तरफ से सैन्य कार्रवाई जरूर होगी पर यह उम्मीद नहीं थी कि ठीक उसी दिन देर रात। वैसे एक अरसे से पाकिस्तान के भीरत उनकी सेना ने झूठी खबरों के भरोसे अपनी एक कड़क छवि बनायी हुई है। यह बात अगल है कि 1965 से लेकर कारगिल युद्ध तक उसे हार का मुंह देखना पड़ा है। पाकिस्तान की राजनीतिक बिरादरी और जनता के भीरत भारत की तरफ से मुंहतोड़ कार्रवाई के बाद दबाव शायद बढ़ गया था। इसीलिए आनन फानन में हवाई की कोशिश हुई और अपने एफ-16 फाइटर विमान को खोना पड़ा है। पाकिस्तान सेना पर दबाव की एक बानगी यह भी है कि उसकी तरफ से जिस भारतीय फाइटर प्लेन को गिराने का दावा किया जा रहा था। उसका कुछ घंटे बाद पाक सेना की तरफ से ही खंडन करना पड़ा।

दरअसल पाकिस्तान को भारत से इस रुख की अपेक्षा नहीं थी। पहले भी आतंकी हमले के बाद कुछ दिन तल्ख बयानबाजी होती। बाद में बात आई-गई हो जाती। लेकिन 1971 के बाद से यह पहला मौका है कि आतंकवाद का भारत की तरफ से करारा जवाब गिया गया है और वो भी पाकिस्तान के भीतर घुसकर। साफ संदेश है कि आतंकी कहीं भी होंगे। मारे जाएंगे। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को एक कार्यक्रम में देश की बदली कूटनीति का जिक्र करते हुए कहा है कि पाक स्थित एवेटाबाद में आतंकी सहगहना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद स्थित स्पष्ट है। आत्मरक्षा में किसी भी स्थिति तक जाया जा सकता है। इधर भारत ने साफ कर दिया है कि वो अब साफ्ट नेशन नहीं रहा। उधर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी पाकिस्तान की तरफ से बोलने वाले लोग भी उससे किनारा करने लगे हैं। इधर कुछ बसरों से अमेरिका की पाक के बारे में रणनीति बदली है और भारत से उनकी नजदीकियां बढ़ी है। सामरिक साझेदारी बढ़ी है। यही नहीं, सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी के लिए उसकी पैवरी भी मजबूत हुई है। अभी पिछले दिनों सुरक्षा परिषद की तरफ से पाक प्रयोजित आतंकी हमले के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कराने में भी अमेरिका की बड़ी भूमिका रही है।

पाकिस्तान की बड़ी उम्मीद थी कि सऊदी अरब चीन की तरफ से इसे संकट की घड़ी में साथ मिलेगा लेकिन इन देशों की तरफ से भी निराशा हुई है। सऊदी अरब, चीन और रुस ने साफसौत पर पाक स्थित आतंकी ट्रेनिंग सेंटरों को लेकर सख्त ताकीद की है। स्वाभाविक है। भारत ने जिस तरह पाकिस्तान के भीरत घुसकर आतंकियों को निशाना बनाया है। उससे दुनिया के सामने उजागर हो गया है कि आतंकवाद को पाकिस्तान की तरफ से खाद-पानी मिल रहा है। अब भारत के आरोप को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिए चीन भी इस मुद्दे पर पाक का साथ नहीं दे रहा। उसका 60 अरब डालर का आर्थिक कारिडोर भारत-पाक संघर्ष से प्रभावित हो सकता है। ऐसे समय में जब खुद चीन के भीरत विकास की रफ्तार धीमी हो गई है। तब पाक स्थिति उसकी आर्थिक परियोजना बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। वैसे भी आर्थिक सुस्ती के कारण कारोबारियों का चीन से मोह भंग हो रहा है। इस यथार्थ से चीन अवगत है। इसलिए दक्षिण पूर्व एशिया में उभरते भारत को अपने लिए निकट भविष्य में चुनौती मानते हुए भी पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं हो पा रहा है।

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