संक्रामक कचरे पर सजग नहीं हैं अस्पताल

0
210

बीते रविवार की सुबह ओडिशा के कटक म्युनिसिपल कॉरपोरेशन एरिया में खुले में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वि पमेंट (पीपीई) किट, ग्लव्स, मास्क के बिखरे ढेर देखकर स्थानीय लोग इस आशंका से घबरा गए कि कोविड-19 के मरीजों के इस्तेमाल किए हुए सामान को उनके इलाके में क्यों फेंका गया है। बाद में पता चला कि कटक के सतीचौरा डंपिंग यार्ड में निपटान के लिए जा रहे ट्रक से गिरकर कचरा बिखर गया था। पिछले महीने दिल्ली में खुले में पीपीई किट और अन्य बायोमेडिकल वेस्ट मिलने की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित विभागों के प्रतिनिधियों को बैठक बुलाने का निर्देश देते हुए सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि खुले में कचरा फेंकना रोका जाए। यहां इन घटनाओं का जिक्र इसलिए किया गया है कि लापरवाही और अनदेखी कहीं भी हो सकती है और इसकी गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। इस तरह की चूक से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सुबह-सुबह कभी हॉस्पिटल जाएं तो वॉर्डों में मरीजों के बेड के पास रखे डब्बे से कचरा इकट्ठा करते कर्मचारी दिख जाएंगे। ये बायोमेडिकल वेस्ट हैं। इसके अलावा ऑपरेशन थियेटर से इकट्ठा किए जाने वाले कचरे भी बायोमेडिकल वेस्ट ही हैं। अस्पताल परिसर में गाड़ियों में लाल, पीले, नीले और काले रंगों के प्लास्टिक के थैलों में कचरा समेटते कर्मचारी भी दिख जाएंगे।

ये बायोमेडिकल वेस्ट को अलग करते हैं ताकि उसका सही निपटान किया जा सके। लाल डब्बे या थैले में प्लास्टिक वेस्ट, पीले में इन्फेक्शस वेस्ट, नीले में ग्लास-बोटल और काले में बिना सीरिंज के निडल छांटकर रखे जाते हैं। प्लास्टिक वेस्ट यानी सीरिंज, प्लास्टिक के बोटल आदि होते हैं, जबकि इन्फेक्शस वेस्ट में बैंडेज, कॉटन, प्लेसेंटा, ऑपरेशन कर निकाले गए पार्ट वगैरह। कोरोना महामारी के दौरान बायोमेडिकल वेस्ट कलेक्शन में 30 से लेकर 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कचरे की बढ़ी हुई मात्रा में कोरोना टेस्ट में इस्तेमाल होने वाले किट से लेकर पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क और मरीजों के इस्तेमाल किए सामान हैं। ये कचरे देखने में साफ-सुथरे लगते हैं लेकिन ये कोरोना संक्रमण आसानी से फैलाते हैं। इन्हें जहां-तहां फैलने से नहीं रोका गया तो कोरोना पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कुछ विडियो वायरल हुए। उनमें मरीजों की भीड़ और वॉर्ड में मरीजों के इस्तेमाल किए हुए सामान बिखरे हुए हैं। एक विडियो में दिखाया गया है कि पटना में गंगा के किनारे कुछ बच्चे कचरे की ढेर से प्लास्टिक, ग्लव्स आदि इकट्ठा कर अपने बोरे में भर रहे हैं। ये इससे होने वाले खतरे से वाकिफ नहीं हैं।

विडियो में साफ दिखता है कि जिन कचरों से बदबू आ रही है, या जो गंदे हैं, उन्हें ये नहीं उठा रहे हैं, पर इनसे भी कहीं ज्यादा खतरनाक और संक्रमण फैलाने वाले ग्लव्स, पीपीई किट वगैरह को छांट-छांटकर बेझिझक अपने बोरे में डाले जा रहे हैं। दिल्ली, गुजरात, प. बंगाल, मुंबई के कुछ म्युनिसिपल कॉरपोरेशनों और हॉस्पिटलों के अधिकारियों से कोरोना महामारी फैलने के बाद इनफेक्शस बायोमेडिकल वेस्ट के निपटान की सतर्कता के बारे में बात की गई तो उन्होंने पूरी गाइडलाइन को दोहरा दिया। बायोमेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स, 2016 बताते हुए कहा गया कि हॉस्पिटल केवल राज्य प्रदूषण बोर्ड से स्वीकृत सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा प्रदान कर रहे ठेकेदार या एजेंसी के साथ कॉन्ट्रेक्ट करता है।

ठेकेदार हॉस्पिटलों से कचरा इकट्ठा करते हैं और पूरी गाइडलाइन को फॉलो करते हुए उसके निपटान का प्रबंधन करते हैं। महामारी का प्रकोप बढ़ने के बाद से ही मरीजों के संक्रमण से बचने और बायोमेडिकल वेस्ट के निपटान के लिए सख्त गाइडलाइंस का भी उन्होंने जिक्र किया। फिर भी सड़क पर बायोमेडिकल वेस्ट कैसे आ जाते हैं? इस सवाल का माकूल जवाब नहीं मिलना लापरवाही और इस काम में घालमेल का संकेत है। परिवार का कोई सदस्य कोरोना पॉजिटिव निकल जाता है तब उसे या तो हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है, या घर में ही क्वॉरंटीन करने का इंतजाम होता है। पड़ोसी तब सतर्क होते हैं, जब उस एरिया में पुलिस वालों का पहरा लग जाता है। इससे पहले उन्हीं के घरों से सफाई कर्मचारी आराम से कूड़ा कलेक्ट करते हैं। इस संक्रमण बम का निपटान जीरो एरर के साथ होने पर ही कोरोना से हमारा साथ छूट पाएगा।

दिलीप लाल
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here