भारतीयों से बचत करना सीख रहे अमेरिकी !

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कोविड-19 ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दी है। यह बीमारी जहां एक बार घुस गई है, उसकी खैर नहीं। चेहरे बदल-बदल कर मनुष्य को मानवता की कमर तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मानवता की बात करें इस महामारी की आशंकाओं ने अपने-पराए सभी को भुला दिया है। ऐसे में अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने अपने देश के धर्म को नहीं छोड़ा है। वहां भी परोपकार कर रहे हैं। गुजरात, पंजाब, दक्षिण भारत से जुड़े एनआरआई की कई संस्थाएं वहां इन दिनों जरूरतमंदों की मदद करने में जुटी है। इन्होंने ईओटीओ (ईच वन टीच वन) के सिद्धांत को अपना कर अनवरत सेवा करने की ठानी है। यानी एक से मदद लेकर दूसरे को मदद पहुंचा रहे हैं। जरूरतमंदों तक खाना और रोजाना इस्तेमाल होने वाला उपयोगी सामान पहुंचा रहे हैं। पिछले हफ्ते लगभग 40 लाख अमेरिकियों ने बेरोजगारी का आवेदन वहां के लेबर डिपार्टमेंट में डाला।

इनमें से लगभग आधे आवेदन कोरोनावायरस महामारी के कारण डाले गए। हालांकि यह आंकड़ा वहां के लेबर डिपार्टमेंट ने जारी किया है, जबकि एसपर्ट्स का मानना है कि लेबर डिपार्टमेंट द्वारा जारी आंकड़ा, बेरोजगारी से वास्तविक संख्या से कम है। इस महामारी ने अमेरिका में रहने वाले लोगों को आने वाली मंदी का एहसास दिला दिया है। यही कारण है कि अब उनमें भी सैलरी से बचत करने की आदत डालनी शुरू कर दी है। लॉस एंजलिस में रहने वाले कुछ एनआरआई बंधुओं से पिछले दिनों हुई बातचीत में यह जानकारी मिली कि इस महामारी के चलते अमेरिका वालों की लाइफस्टाइल और सोच में भी बदलाव आया है।

इंडियन कल्चर सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के सेक्रेटरी योगी पटेल ने बातचीत में बताया कि शुरुआत से ही अमेरिका के लोगों में भारतीयों की तरह बचत करने जैसी कोई सोच नहीं है। सैलरी का सारा हिसाब-किताब पहले से लगा रहता है और उन्हें इसकी परवाह भी नहीं रहती है। सब कुछ लोन से उपलब्ध हो जाता है, लोन पर ही महंगी-महंगी कारें खरीद लेते हैं, बस ईएमआई अपने हिसाब से जाती रहती है। भारत में दस लाख प्रतिमाह सैलरी पाने वाले भी जो गाड़ी अफोर्ड नहीं कर सकते, यहां पचास लाख-एक करोड़ की गाडिय़ां खरीदने में हिचकते नहीं हैं। परंतु कोरोना महामारी ने उन्हें सावधान कर दिया है।

दिलीप लाल

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