गांधी से नफरत अनायास नहीं है!

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राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रशिक्षण से निकला भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से घृणा करे तो इसे अस्वाभाविक नहीं मानना चाहिए। भाजपा की एक लोकसभा प्रत्याशी, पार्टी के एक सांसद, एक प्रदेश प्रवक्ता और एक केंद्रीय मंत्री ने गांधी के प्रति अपनी नफरत जाहिर की तो इसे उनकी सहज शिक्षा व प्रशिक्षण का हिस्सा मानना चाहिए। उन्हें प्रशिक्षण में यह घुट्टी पिलाई गई है कि देश की सारी समस्याओं की जड़ गांधी हैं।

उन्हें बताया गया है कि गांधी मुस्लिमपरस्त थे, पाकिस्तान के तरफदार थे और इसलिए भारत और हिंदुओं के दुश्मन थे। उन्हें यह भी बताया गया है कि गांधी की वजह से नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने और इसलिए भारत वैसे ही हिंदू राष्ट्र नहीं बन सका, जैसे पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बन गया। भारत के नरम यानी सॉफ्ट स्टेट होने की अवधारणा का जिम्मेदार भी गांधी को ही माना जाता है।

तभी जब भाजपा का कोई नेता या संघ का कथित विचारक नेहरू को गाली निकालता है तो समझना चाहिए कि उसके निशाने पर महात्मा गांधी हैं पर वह राजनीतिक रूप से सही रहने की मजबूरी में सीधे गांधी को गाली नहीं देकर नेहरू को दे रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हैं कि अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बने होते तो देश की तस्वीर अलग होती।

ऐसा कह कर वे नेहरू पर हमला करते हैं। पर असल हमला गांधी पर होता है क्योंकि यह संभव नहीं है कि मोदी को पता न हो कि कांग्रेस की प्रांतीय कमेटियों की राय को दरकिनार कर नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने का फैसला गांधी का था और उन्होंने खुद इस फैसले की सूचना सरदार पटेल को दी थी और उन्हें नेहरू के नीचे काम करने के लिए तैयार किया था। मोदी यह जानते हुए कि महात्मा गांधी ने नेहरू को पटेल के ऊपर तरजीह दी थी, अगर पटेल के लिए अफसोस करते हैं तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि उनका असल निशाना कौन होता है। पर चाहे मोदी हों या भाजपा का कोई और नेता उसकी मजबूरी है कि वह महात्मा गांधी का नाम ले। क्योंकि महात्मा इस देश की आत्मा में बसते हैं।

गांधी उपनाम वाले लोगों से लड़ा जा सकता है। इंदिरा गांधी से लेकर राजीव, सोनिया और राहुल गांधी तक सब लड़े हैं और आगे भी लड़ सकते हैं। पर महात्मा गांधी से नहीं लड़ा जा सकता है। अंग्रेज भी उनसे नहीं लड़ सके थे। मर कर भी वे इतने ताकतवर हैं कि उनका मुकाबला संभव नहीं है। इस मजबूरी में भाजपा के ज्यादातर नेता और संघ के कथित विचारक उनका सम्मान करते हैं। पर गाहेबगाहे गांधी के लिए उनकी नफरत जाहिर हो ही जाती है। इसे वे अलग अलग तरीकों से जाहिर करते हैं। कुछ समय पहले अलीगढ़ में भाजपा की एक महिला नेता ने महात्मा गांधी की फोटो पर गोली मार कर अपनी नफरत का इजहार किया था। सोचें गांधी कितने ताकतवर हैं कि गोली मार कर उनकी हत्या किए जाने के 70 साल बाद उनकी फोटो को गोली मारने की जरूरत पड़ रही है। बहरहाल, उनके लोगों ने गोडसे की मूर्ति लगाने और मंदिर बनाने का प्रयास भी किया।

इसी की अगली कड़ी है प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बयान की गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे देशभक्त था, है और रहेगा। गांधी के इस अपमान पर सिर्फ इतनी कार्रवाई हुई है कि उनको नोटिस भेजा गया है। उनका समर्थन करने वाले केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े को भी नोटिस ही भेजा गया है।गोडसे की तरफदारी करने वाले भाजपा सांसद नलिन कुमार कतील से भी सिर्फ जवाब तलब किया गया है।

गांधी के प्रति भाजपा की सोच को ज्यादा बेहतर तरीके से मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता अनिल सौमित्र ने जाहिर किया। उन्होंने कहा कि गांधी पाकिस्तान के राष्ट्रपिता हैं। यह उनको घुट्टी में मिली इस शिक्षा का ही प्रकटीकरण है कि गांधी पाकिस्तानपरस्त थे। असल में इस धारणा को लोगों के मन मस्तिष्क में बैठाने के पीछे गहरी सोच है। इसके बीज देश के विभाजन और उसके बाद हुई राजनीति में देखे जा सकते हैं। भारत के विभाजन के बाद जैसी सांप्रदायिक हिंसा हुई थी उसने भारत की राजनीति में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और उसकी राजनीतिक शाखा भारतीय जनसंघ को सत्ता का स्वाभाविक दावेदार बना दिया था। पर पहले गांधी और फिर उनके चुने नेहरू ने संघ की मंशा पूरी नहीं होने दी। न भारत हिंदू राष्ट्र बना, न देश के सारे मुसलमान पाकिस्तान भगाए गए और न देश की राजनीति में संघ की विचारधारा के लिए बहुत मजबूत जगह बन पाई।

ऐसा हुआ विभाजन के समय हो रही हिंसा के बीच गांधी की सशरीर मौजूदगी से और उसके बाद नेहरू की सेकुलर व वैज्ञानिक सोच से। गांधी और नेहरू दोनों भारत के पाकिस्तान की तरह बन जाने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा साबित हुए। उसी का खामियाजा दोनों को आजादी के 70 साल बाद भी भुगतना पड़ रहा है। उनके खिलाफ इतना व्यापक और सघन अभियान चल रहा है, जिसका अंदाजा भाजपा के चार या पांच नेताओं के बयानों से नहीं लगाया जा सकता है। ये तो सिर्फ उस सघन अभियान के हिमखंड का पानी के ऊपर दिख रहा छोटा सा टुकड़ा है। इस अभियान के तहत लोगों को समझाया जाता है कि साबरमती के संत ने कोई कमाल नहीं किया था और न बिना खड़ग और ढाल के आजादी दिलाई थी, आजादी तो हजारों लोगों की कुर्बानी से मिली। गांधीवादियों का मजाक उड़ाने के लिए गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों की मिसाल दी जाती है।

गांधी के हिंद स्वराज की मिसाल देकर उनको आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का विरोधी बताया जाता है। पर लोग यह भूल जाते हैं कि गांधी ने मानवता को वह ताकत दी, जिसके दम पर सारी दुनिया से साम्राज्यवाद का खात्मा हुआ। सत्य को पहचानना और उसे इस रूप में पेश करना कि कोई भी उसे चुनौती नहीं दे सके, यह इस देश को गांधी ने सिखाया। बुद्ध के बाद गांधी दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने अहिंसा को सबसे कारगर हथियार बनाया। और गांधी ने ही इस देश और दुनिया के सारे देशों के लोगों को निर्भीक होना सिखाया। ऐसे गांधी का अपमान तो पूरी मानवता का अपमान है!

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं

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