कई बहाने

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कई बहाने सोचता हूं
कई बहाने सोचता हूं

कई बहाने सोचता हूं मैं
अक्सर तुमसे दूर जाने के
कभी देखता हूं अपने बिखरे सपनों को
तो कभी लिखता हूं अपने जज्बातों को..

असहाय सा निहारता हूं टूटे अहसासों को
तो कभी रचता हूं ख्वाबों का ताना-बुना
जरा देखों कितने बहाने करता हूं मैं
तुमसे दूर जाने के…

अब इस तरह बीत जाता है दिन मेरा
कुछ काम में तो कुछ ख्वाब में
सुबह-शाम डूबा रहता हूं मैं
अपने किस्से कहानियों में
ये वक्त बस तुम सा बन गया है
थोड़ा खामोश थोड़ा तन्हा सा…

अब बातो-बातो पर या पलक झपकने पर
कभी सोचने पर भी तुम्हारी यादे नहीं आती
अब लगता है मैंने तुम्हे भुला दिया हैं
एक अनकहे ख्वाब की तरह
या फिर सुहाने इन्तजार की तरह….

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