भगवान आशुतोष की आराधना से मिलेगी जीवन में अपार खुशहाली
प्रदोष व्रत से मिलती है आरोग्य, सौभाग्य एवं सुख-समृद्धि
भगवान शिवजी तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें देवाधिदेव महादेव माना गया है। हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोकामना की पूर्ति लिए भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार करते हैं। इसकी पूजा अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली के साथ ही जीवन में अलौकिक शान्ति भी बनी रहती है। व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। वैसे तो भगवान शिवजी की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन प्रदोष व्यापनी त्रयोदशी थिति के दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक परम्परा है। इस बार 11 अक्टूबर, शुक्रवरा को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। कलियुग में प्रदोष व्रत को शीघ्र फलदायी माना गया है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि आश्विन शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 अक्टूबर, गुरुवार को सायं 7 बजकर 52 मिनट पर लगेगी, जो कि 11 अक्टूबर, शुक्रवार को रात्रि 8 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। प्रदोष व्रत 11 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट का माना जाता है। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना उत्तराभिमुख होकर करने की परम्परा है।
वार (दिनों) के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी बनताया कि शास्त्रों के मुताबिक प्रदोष व्रत का प्रत्येक वार के अनुसार अलग-अलग फल मिलता है। जो इस प्रकार है- रवि प्रदोष – आयु, आरोग्य, सुख समृद्धि, सोम प्रदोश –शान्ति, रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष – मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति। मनोरथ की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा अभीष्ट की पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है।
ऐसे रखें प्रदोष व्रत – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी बनताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्ति होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विदि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा, षोडशोपचार श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। देवाधिदेव शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूर-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रतकर्ता अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर देवाधिदेव शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। देवाधिदेव महादेव जी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएं भी सुसनी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समान्यरूप से फलदायी है। प्रदोष व्रत से कभी मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ-साथ जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली मिलती है तथा जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है।
प्रदोष व्रत के लिए व्रतकर्ता को परनिन्दा से बचते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को दान तथा जरूतमंद एवं असहायों की सेवा व सहायता सदैव करते रहना चाहिए।