वार छोड़ ना यार

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‘उसने कहा था’ से प्रेरित फिल्म बिमल रॉय ने बनाई थी। चंद्रधर शर्मा ने मात्र 3 कहानियां लिखी हैं। ‘उसने कहा था’ प्रशंसनीय रचना है। चंद्रधर शर्मा कथा क्षेत्र के वामनावतार हैं, क्योंकि उन्होंने 3 कहानियों से ही साहित्य विश्व की जमीन नाप ली। पात्र पहली बार मिलते हैं, तो उनकी वय दस वर्ष से कम है। एक पात्र पूछता है क्या तेरी कुड़माई सगाई हो गई?

घटनाक्र ऐसा घूमता है कि लहनासिंह फौजी बन जाता है। छुटि्टयों में घर लौटने पर कन्या उसे बताती है कि उसकी शादी सूबेदार से हो रही है। वह लहनासिंह से कहती है कि दोनों एक टुकड़ी में हों, तो सूबेदार की रक्षा करना। कालांतर में एक मुठभेड़ में लहनासिंह, सूबेदार को बचाता है और घायल अवस्था में कहता है कि ‘उसने कहा था’।

एक कविता अभिव्यक्त करती है कि सरहद पर दुश्मन को मार गिराया पर यह ग्लानि भाव बना रहा कि उससे कोई व्यक्तिगत बैर नहीं था और शांति के समय वे मिलते तो साथ बैठकर खाते-पीते और ठहाका लगाते। ‘ऑल क्वाइट ऑन द वेस्टर्न फ्रंट’ फिल्म में युद्ध समाप्ति की सूचना विलंब से मिलती है। खंदक में बैठा फौजी एक तितली को छूने बाहर आता है और यूं ही चलाई हुई एक गोली से मारा जाता है। युद्धबंदी का संदेश एक क्षण देर से पहुंचा तो एक जान चली गई और मृतक के तमाम रिश्तेदारों के हृदय का एक कोना हमेशा के लिए सूना हो गया। मैक्सिम गोर्की का कथन था कि युद्ध में चली हर गोली अंतत: किसी महिला की छाती में ही लगती है। युद्ध के कारण महंगाई बढ़ जाती है, जिसका प्रभाव सब पर पड़ता है। आग सरहद पर लगती है और धुआं हर नागरिक के हृदय से उठता है। यह युद्ध को एक अलग नजरिए से प्रस्तुत करने वाली फिल्म का नाम ही बहुत कुछ कहता है कि ‘वार छोड़ यार’।

किफायत और बचत की जीवनशैली अवाम द्वारा अपनाई जानी चाहिए। गीत की पंक्ति है, प्रेम के सिक्कों से महीने का घर खर्च चलाना होगा। एक अन्य सरहद पर शांति के समय सरहद पर दोनों पक्ष के फौजी अंताक्षरी खेलते हैं और कभी-कभी पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत गोलियां दागी जाती हैं। एक सांस में 47 गालियां बोलने वाले को ए.के.47 कहा जाता है और जवाब में ए.के.56 का प्रयोग किया जाता है।

दशकों पहले से ही चीन में हिंदुस्तानी भाषाओं का ज्ञान देने वाले संस्थान खोले गए थे। भारतीय रीति-रिवाजों की शिक्षा भी दी गई। गौरतलब यह है कि भारत कई कार्पोरेट कंपनियों में चीन ने पूंजी निवेश किया है। यूरोप, और अमेरिका में भी पूंजी निवेश किया गया है। चीन को भी आर्थिक हानि हो रही है परंतु मध्यस्थ के माध्यम से वह गिरे हुए दामों के शेयर भी खरीदकर आर्थिक क्षेत्र पर कब्जा जमा रहा है, गोया कि मुनाफा कहीं भी कमाया जाए लाभांश चीन पा रहा है। क्या हमारी व्यवस्था चीनी इरादों से अनजान रही है? ‘हैप्पी भाग जाएगी’ की दूसरी कड़ी में नायिका हैप्पी को चीन भेजा गया परंतु भारत में हुई शूटिंग में विश्वसनीयता का अभाव रहा। फिल्म ‘चांदनी चौक टू चाइना’ भी उबाऊ रही। भारत में चीनी व्यंजन देशी तड़का लगाकर परोसे गए। चीन में तो कॉकरोच आदि खाए जाते हैं। एक अर्थ में चीनी भारतीय अघोरी परंपरा निभाते हैं कि धरती की हर वस्तु खाई जा सकती है। क्या चीन सरहदों को भी पापड़ समझ रहा है? उसके हुक्मरान के जन्मदिन भोज पर सरहद का पापड़ परोसा गया?

पापड़ बेलने से कठिन है पापड़ पचाना। भारत में शिशु की मजबूत पाचन शक्ति के लिए घुट्‌टी में एक जड़ी का समावेश होता है कि जीवनभर उसकी पाचन शक्ति कायम रहे। भारतीय फौजी इसी घुट्‌टी को पिए होता है। गौरतलब है कि किसी धनाढ्य और नेता के पुत्र फौज में भरती नहीं होते। देश की रक्षा का दायितव भी किसान, मजदूर और मध्यमवर्ग का ही है।

(लेखक जयप्रकाश चौकसे वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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