लॉकडाउन पर अमल की समस्या

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कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पूरे देश में लागू लॉकडाउन के 12 दिन हो गए हैं। 24 मार्च की आधी रात से यानी 25 मार्च से पूरे देश में लॉकडाउन है। पर उससे पहले ही लोगों की आवाजाही काफी कम हो गई थी और कई राज्यों ने एक दिन पहले ही सब कुछ बंद करने का ऐलान कर दिया था। उससे पहले 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू था। इस लिहाज से कह सकते हैं कि 21 मार्च की आधी रात से ही देश में लगभग सारी चीजें ठप्प हैं। अब इसका आंकलन किया जाना है कि यह बंदी कितनी सफल रही है यानी इससे संक्रमण रोकने में कितनी मदद मिली है। उस आंकलन से पहले ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन पर अमल कराना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है।
इससे पहले भी भारत में किसी भी फैसले पर अमल कराना बहुत आसान नहीं रहा है। चाहे फैसला अच्छा हो या बुरा उस पर अमल हमेशा बुरे तरीके से ही हुआ। जैसे देश में सर्व शिक्षा अभियान शुरू हुआ और मिड डे मील की सुविधा शुरू हुई तो उससे देश में शिक्षा का स्तर, गुणवत्ता आदि बढऩे की बजाय पढ़े-लिखे निरक्षरों की फौज पूरे देश में खड़ी हो गई और मिड डे मील के घोटाले अलग खुलने लगे। अमल की यह कमी मनरेगा से लेकर सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार आदि में भी दिखी और नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक के फैसले पर अमल में दिखी। उसी तरह से क्रियान्वयन की कमी देश भर में लागू लॉकडाउन के दौरान भी देखने को मिल रही है।

सवाल है कि इसका क्या कारण है कि भारत में अच्छे-बुरे किसी फैसले पर कायदे से अमल नहीं हो पाता है? इसके दो कारण हैं। पहला तो यह भारत में अमल के करने के लिए जो मशीनरी है वह बेहद खराब है और निम्न क्वालिटी की है। और दूसरे, फैसला करते समय कभी भी इसके एक्शन वाले पार्ट यानी क्रियान्वयन के हिस्से पर विचार नहीं किया जा सकता है। लगभग सारे फैसलों में सैद्धांतिक पक्ष पर विचार होता है और उसके बाद अमल भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। यहीं कारण है कि लॉकडाउन पर भी अमल में मुश्किल आई है और इस वजह से इसका मकसद भी अधूरा रह गया है। सबसे पहली जरूरत यह थी कि घोषणा करने से पहले इस पर अमल की रूपरेखा बनती और उसके रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने के उपाय होते। उसके बाद इस पर विचार होता कि इससे आखिर क्या हासिल करना है और वह कैसे हासिल होगा। सबको पता है कि लोगों को घरों में बंद कर कोरोना वायरस का समाधान नहीं है। इससे ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि संक्रमण फैलने की स्पीड कम होगी। पर अगर कोई भी सरकार अपने नागरिकों को इतना बड़ा कष्ट देने वाली है, तो निश्चित रूप से उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस कष्ट के बाद कुछ बड़ा हासिल होगा।

ध्यान रहे यह कष्ट है तभी प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़ कर देश के लोगों से माफी मांगी। पर सरकार ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि 21 दिन की बंदी से कोरोना वायरस को हरा देने का मकसद हासिल कर लिया जाए। अगर सोचा गया होता तो इस अवधि का इस्तेमाल मेडिकल सुविधाओं को बढ़ाने के लिए किया गया होता। पर कम से कम 12 दिन के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। उलटे लॉकडाउन पर अमल में कमी की वजह से संक्रमण तेजी से फैल गया। सरकार यह अंदाजा नहीं लगा सकी कि प्रवासी मजदूर इतनी बड़ी संख्या में घरों से निकल जाएगा। सरकार के खुफिया तंत्र की भी यह विफलता है। इसके अलावा सरकार को यह भी पता नहीं चला कि तबलीगी जमात के मरकज के बाद हजारों लोग कहीं एक जगह टिके हुए हैं। इस लापरवाही या विफलता का नतीजा यह हुआ कि लॉकडाउन के बावजूद वायरस का संक्रमण तेजी से फैला। हालांकि अब भी भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या दुनिया के अनेक प्रभावित देशों से कम है। पर ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत का सीधा संपर्क प्रभावित देशों से कम रहा और दूसरे भारत में पहुंचने और फैलने से पहले ही लॉकडाउन हो गया। तभी भारत सबसे बेहतर स्थिति में था कि वह इसका फायदा उठाए और अपने लोगों के संक्रमित होने की संख्या कम से कम रखे। पर अफसोस की बात है कि ऐसा नहीं हो सका। सरकार इस लॉकडाउन की अवधि का बहुत सकारात्मक इस्तेमाल अभी तक नहीं कर पाई है।

न तो बड़ी संख्या टेस्टिंग शुरू हुई है, न अस्थाई अस्पताल पर्याप्त संख्या में बनाए गए हैं, न जरूरी संख्या में आईसीयू बेड्स की व्यवस्था हुई है, न डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट का बंदोबस्त हुआ है और न पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर आदि की व्यवस्था हुई है। स्थिति यह है कि राजधानी दिल्ली में पीपीई की कमी हो गई है और राज्य सरकार केंद्र से गुहार लगा रही है। भारत ने ऐसे समय में लॉकडाउन लागू किया जब देश में कुल संक्रमण के मामले दो-ढाई सौ थे। तभी अगर इस पर कायदे से अमल किया गया होता और इस लॉकडाउन के मकसद को रेखांकित करते हुए उसे हासिल करने के लिए प्रयास किया गया होता तो भारत आज दावे के साथ कह सकता था कि अब 21 दिन का लॉकडाउन खत्म होने के बाद भारत में कोरोना वायरस भी खत्म हो जाएगा। पर ऐसा कहने की स्थिति अभी नहीं है। अब भी सब डरे हुए हैं और इस बात का अंदेशा है कि लॉकडाउन हटा तो फिर से वायरस फैल जाएगा। यह डर अपने आप में इस बात का सबूत है कि भारत ने लॉकडाउन के अवसर को गंवा दिया है। इस अवधि में जो तैयारियां, जो उपाय होने चाहिए थे वो नहीं हुए हैं और तभी इसे बढ़ाए जाने का भी अंदेशा है और उसके बाद भी सब कुछ भगवान भरोसे होना है।

अजित कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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