लॉकडाउन का मतलब समझें जमात के लोग

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कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के सबब हमारी सरकार ने जो अचानक देशभर में लॉकडाउन का फैसला लिया, उससे सरकार व देशवासियों को नुकसान तो हुआ लेकिन अब उसके सकारात्म परिणाम भी आने शुरु हो गए हैं। पहला परिणाम तो ये आया कि कोरोना वायरस से पीडि़तों संख्या में वृद्धि तो हो रही है, लेकिन दिन-ब-दिन वृद्धि के प्रतिशत का ग्राफ नीचे आ रहा है। दूसरा परिणाम ये भी देखने को मिला जो धन्नासेठ गरीबों की मदद करने से कतराते थे वह भी अब दिल खोलकर मदद कर रहे हैं। ये सब लॉकडाउन के कारण ही संभव हो सका है। कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन के दौरान ऐसा भी कोई अप्रिय समाचार नहीं मिला जिसमें सड़क हादसे में किसी के मरने या घायल होने की सूचना हो, यही नहीं बल्कि अपराधों पर भी एकदम सा विराम लग गया है। भले ही लॉकडाउन करने से देश की आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हो रही हो और सरकार को प्रतिदिन अरबों रुपये का नुकसान हो रहा हो तथा आम लोगों की भी आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही हो, लेकिन यह मानव जाति के हित में है। जब तक सरकार कोरोना वायरस से पीडि़तों को पूर्ण
तरीके से नियंत्रित नहीं कर लेती तब तक देश को लॉकडाउन की जरूरत है। क्योंकि अभी तक वायरस से संक्रमित लोग जांच और इलाज से बच रहे हैं। अभी दिल्ली के एक धार्मिक स्थल से खबर मिली कि वहां लगभग डेढ़ हजार लोगों का जलसा हो रहा था

जिसमें देश-विदेश के लोग शामिल थे। बताया तो ये भी जा रहा है कि इसमें दो लोग वायरस से संक्रमित थे, अब वे लोग जितने लोगों से मिले, वे भी वायरस संक्रमित हो सकते हैं, क्योंकि यह वायरस एक-दूसरे को छूने या उनकी वस्तुएं प्रयोग करने से फैलाता है। ऐसे हालात में जब सभी धर्मों के धर्मगुरु सतर्कता बरतने का संदेश दे रहे हैं, क्या ये जलसा या तलीगी जमात निकालना जरूरी है। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए यदि एक भी आदमी वायरस से संक्रमित है तो वे खुद के लिए, परिवार के लिए, गांव-बस्ती,समाज और देश के लिए खतरनाक है। जब तक देश की स्थिति नाजुक है तो इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान सामूहिक रूप में करना जरूरी नहीं है। शायद ये लोग नहीं जानते कि मरीजों की जांच व इलाज में सरकार का कितना धन खर्च हो रहा है। वर्तमान स्थिति में इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान देशहित में नहीं है, ये एक तरीके से देश के साथ बगावत करना है, जिसकी कोई धर्म इजाजत नहीं देता। कुछ लोग इस तरह के भ्रमित तर्क दे रहे हैं कि ये जो हो रहा है, वह सब ईश्वर की मर्जी से हो रहा है, और इससे संक्रमित होने वाले किसी खास धर्म के लोग हैं, जबकि कोई भी महामारी किसी धर्म या किसी खास आदमी का मुंह देखकर नहीं आती, बल्कि उसकी चपेट में जो भी आता है, उसी को अपने आगोश में कर लेती। इन हालात में कुछ लोगों ने जमात के लोगों को घृणित नजरिए से देखना शुरू कर दिया है।

वह इस काम को तलीगी जेहाद के रूप व्याख्या कर रहे हैं। इन लोगों को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया है। ऐसे हालात में इन लोगों को समझना चाहिए कि इस महामारी से बचाव सतर्कता ही है। यदि आपके अंदर देशभक्ति का जज्बा है तो सरकार द्वारा किए जा रहे फैसलों को मानते हुए लॉकडाउन का पालन करना चाहिए। निजामुददीन मरकज के संचालक मौलाना साद का ये कहना, कितना तर्कहीन और भ्रमित है कोरोना वायरस मुसलमानों के खिलाफ एक गहरी साजिश है। मौलाना का ये बयान उन तथ्यों से परे है जो पूरी मानव जाति को ग्रसित कर रहा। कोरोना वायरस किसी धर्म या जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए खतरा है। कोई भी महामारी या हादसे किसी विशेष धर्म के लोगों के नहीं होते बल्कि जब भी होती है तो पूरी मानवता के लिए हानिकारक होती है, इस तरह का अनर्गल बयान लोगों में नफरत पैदा करता है। यदि यह एक साजिश होती तो कोरोना से पीडि़त मुस्लिमों के जांच व इलाज में सरकार इतनी गंभीरक्यों होती।क्यों प्रतिदिन अपना खरबों का नुकसान करती। याद रखो परंम्पराओं से इंसान नहीं होते, इंसानों से परंम्पराएं,रीति-रिवाज, जाति, धर्म व समाज बनते हैं। मौलाना का बयान जहां समाज में नफरत पैदा करने के अवसर देगा, वहीं इस बीमारों को बढ़ावा भी देगा। यदि हमने लॉकडाउन का पालन सरकार के अनुसार किया तो इसके सुखद् परिणाम ही होंगे, हमारे, परिवार, पासपड़ोस समाज और देशहित में होंगे।

आपने महसूस किया होगा हर रात के बाद सवेरा होता है। और हर मुसीबत के बाद राहत जरूर मिलती है। नि:संदेह लोकडाउन भले ही वर्तमान स्थिति में पीड़ादायक महसूस हो रहा है लेकिन यदि हमने इसका सहृदय पालन किया तो इसके परिणाम सुखद ही होंगे। याद रखो! मौजूदा हालात में जरा सी भी लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है। हमें अपने जीवन का अधिकार है दूसरों के जीवन से खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए तलीगी जमात के लोगों को चाहिए कि वह भी लॉकडाउन के दौरान जमात ले जाना, मस्जिदों में ठहरना बंद कर दें और घर पर ही रहकर अलग-अलग ही इबादत करें। खुद भी सुरक्षित रहें दूसरों को भी सुरक्षित रहने दें। हमारी एक और नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि यदि कोई कोरोना वायरस से संक्रमित हो या संदिग्ध हो उसकी सूचना विभागीय अधिकारियों को दें ताकि समय से उनकी जांच व इलाज कराकर उनके जीवन को बचाया जा सके। इससे मरीजों की खोजबीन लगे अधिकारियों की सहायता होगी और संक्रमण से पीडि़तों की मदद होगी। अब कुछ समाचार ऐसे मिल रहे हैं कि सरकार इस लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद आगे नहीं बढ़ाना चाहती, सरकार का यह फैसला उन प्रवासी मजदूरों को लेकर है जो बेरोजगारी की हालत में घर जाना चाहते हैं, लेकिन सरकार यह फैसला भावात्मक नहीं लेना चाहिए उसे जब यह लगे कि अब इस बीमारी पर पूर्ण तरीके से नियंत्रण पा लिया है तब ही उसको लॉकडाउन हटाने का निर्णय लेना चाहिए। सरकार के हर उस फैसले का सम्मान करना चाहिए जो सर्वहित हो।

एम. रिजवी मैराज
(लेखक एक पत्रकार है, ये उनके निजी विचार हैं)

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