रिजर्व बैंक का रिजर्व भी उड़ा!

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हम और आप जब कड़के-कंगले होते हैं, बीमारी जैसी इमरजेंसी से जूझते हैं तो क्या बुढ़ापे की बचत वाली गुलक या एफडी को नहीं तोड़ते हैं? पर सोचें यदि गुलक और एफडी तोड़ चुके हुए होते हैं तो क्या करते हैं? जवाब है जिसकी जैसी भावना और समझ उसी अनुसार हेराफेरी, चोरी, डकैती। कह सकते हैं जीवन अर्थशास्त्र से नहीं चलता है जो समझ में, सकंट की आपाधापी में समझ आता है वह करते हैं। लेकिन देश और निज जीवन में फर्क होता है। देश अर्थशास्त्र से, संस्थाओं से चलता है। उसी से चलना चाहिए। लेकिन क्या यह बात आज के भारत पर लागू है? पिछले छह सालों में क्या कभी लगा कि भारत राष्ट्र-राज्य अर्थशास्त्र से चल रहा है? 2014 के आम चुनाव के पहले बजट से ले कर नोटबंदी, जीएसटी से 2019 के हालिया आम चुनाव बाद के पहले बजट तक में कभी लगा कि भारत का बहीखाता, धंधा नफे-नुकसान के दूरंदेशी आकंलन व अर्थशास्त्र के सिंद्धातों में चल रहा है?

तभी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सेंट्रल बोर्ड द्वारा सोमवार को 1,76,051 करोड़ रुपये भारत सरकार को ट्रांसफर करना चौकता नहीं है। यह तो होना ही था। सोचें, कब से मोदी सरकार की रिर्जव बैंक की जमा पूंजी पर नजर लगी हुई थी? गर्वनर उर्जित पटेल के वक्त से। अर्थशास्त्री रघुराम राजन के बाद मोदी सरकार ने वफादारी की कसौटी पर पटेल को गर्वनर बनाया। उनसे नोटबंदी का पाप करवाया। पर नोटबंदी से जनता, उद्यमी, सरकार सबकी भांप उड़ी और सब क़ड़के हुए तो सरकार की निगाह रिजर्व बैंक के रिजर्व पर टिकी। अर्थशास्त्री उर्जित पटेल तब तौबा कर गए। एक और पाप का भागीदार बनने के बजाय वे गर्वनरी छोड़ गए। तब सरकार ने फैसला लिया कि रिर्जव बैंक में बैठाओ आईएएस अफसर। और शक्तिकांत दास को गर्वनर बना दिया गया। उन्होने वही फाइल बनानी शुरू की जो सरकार चाहती थी। फाइल बढ़ते-बढ़ते सोमवार को रिर्जव बैंक का 1 लाख 76 हजार करोड़ रू बैंक की एक एंट्री से सरकार के खाते में चला गया

देखिए, भारत राष्ट्र-राज्य के तंत्र में कितना आसान है रिर्जव बैंक को खाली करना। संदेह नहीं कि सब प्रक्रिया से हुआ। सेंट्रल बैंक के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए बाकायदा विशेषज्ञों की एक समिति गठित हुई। रिर्जव बैंक की बैलेंस शीट को नए तरीके से लिखने, मैनेज करने का नया फार्मूला बना। सरकार-बोर्ड ने उसे मंजूर किया। इस सबके बाद केंद्र सरकार को रिर्जव बैंक की पोटली से पैसा ट्रांसफर।

क्या ऐसा गोरखधंधा अमेरिका के फेडरर बैंक के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप करके दिखा सकते हैं। संभव ही नहीं! अमेरिका जैसे सभ्य लोकतांत्रिक देशों में नोटबंदी याकि अपनी खुद की करेंसी को खारिज करना या जनता को टैक्स चोर, कालेधन वाला, व्यापारियों-उद्यमियों को चोर-उचक्का बताना किसी भी राष्ट्रपति के लिए संभव नहीं है। तीन साल से डोनाल्ड ट्रंप का वहां फेडरर बैंक याकि केंद्रीय बैंक से पंगा चल रहा है। उसके चैयरमेन को ट्रंप अपना नंबर एक दुश्मन बताते हैं मगर मजाल जो चैयरमेन चिंता करें। वह अपने अर्थशास्त्र से बैंक की रीति-नीति बना रहा है और बनाता रहेगा। न ही वहां कोई आईएएस अफसर याकि प्रशासकीय क्लर्क रिजर्व बैंक का बॉस बन सकता है और न बैंक का बोर्ड राष्ट्रपति या सरकार के एजेंडे में काम करेगा।

ध्यान रहे रिर्जव बैंक का दायित्व है कि दुनिया में वित्तिय संकट या भारत के दिवालिया होने जैसी आपदाओं, बैंकों की सेहत और बैंको में जनता के पैसे की सुरक्षा की गांरटी के लिए वह अपना रिजर्व बना कर रखें। जनता ने बैंकों में पैसे जमा कराए हुए है और बैंक यदि दिवालिया हुए तो रिर्जव बैंक अपनी तरह से वह व्यवस्था रखेगा जिससे जनता का भरोसा रहे। मान लंे यदि कोई बैंक दिवालिया हुआ और लोगों की एफडी खा गया तो रिजर्व बैंक तब कुछ भरपाई ( भारत में फिलहाल यदि एक करोड़ रू डुबे तो एक लाख रू मिलेगे जैसा फार्मूला है।) करने के लिए आगे बढ़ेगा। उस नाते रिजर्व बैंक के लिए 12 प्रतिशत रिजर्व जमापूंजी का कायदा था। उसे बदल कर नए फार्मूल में घटा कर 5.5 से 6.5 प्रतिशत के बीच कर दिया गया है। अभी यों भी रिजर्व बैंक के पास कुल बैलेंस शीट का 6.8 परसेंट पैसा ही रिजर्व था। अब और गजब है जो नए नियम में भी बैक ने 5.5 से 6.5 प्रतिशत के बैंड का निचला हिस्सा 5.5 प्रतिशत जरूरी मान कर बाकि पैसा सरकार को देने का फैसला लिया है। 6.5 प्रतिशत रिजर्व की भी जरूरत नहीं मानी।

सो ताजा निर्णय अनुसार 1,23,414 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 के सरप्लस के नाते और 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रावधान याकि कुल पौने दो लाख करोड़ रू सरकार को मिलने है। पहले सरकार को रिजर्व बैंक से डिविडेंड के तौर पर 50 से 65 हजार करोड़ रुपये जाते थे। उसे बढ़ाकर एक लाख 23 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है।

इस लाटरी का सरकार क्या करेगी? मोटे तौर लोगों का दबाया हुआ पैसा लौटाएगी। जैसे वित्त मंत्री ने कहा था कि एमएसएमई के जीएसटी रिफंड के जो पैसे बाकी हैं उसे सरकार जल्दी लौटाएगी। पब्लिक सेक्टर के सरकारी प्रोजेक्ट में पैसा खर्च होने लगेगा। उसे सरकारी बैंकों और नेशनल हाउसिंग बैंक आदि में भी पैसा डालना है। अब सोचा जाए कि सरकार कितनी कड़की हुई पड़ी है जो लोगों को उनका पैसा (जीएसटी रिफंड) नहीं लौटा पाई। योजनाओं पर पैसा खर्च नहीं है। रिजर्व बैंक से पैसा मिलने के बाद सरकार लोगों को पैसा देगी तो खर्च होगा, मांग बनेगी। मतलब केंद्र सरकार के खुद के वित्तिय घाटे को कम करने से ले कर बाजार में पैसा चलाने का काम रिजर्व बैक के इन पौने दो लाख करोड रू से होगा।

क्या इससे पैसा चलने लगेगा? बाजार में खर्च होने लगेगा? मोदी सरकार, वित्त मंत्री सीतारमण को उम्मीद है कि ऐसे पैसा उड़ेलने से आर्थिकी दौड़ेगी। अपना मानना है उलटा होगा। जीएसटी का रिफंड आया तो उद्यमी उसे अब बचा कर रखेगें। जब बाजार में खरीददार ही नहीं, उद्यम, धंधे का जोश ही नहीं है और जैसे सरकार खुद इधर-उधर से पैसे खींच कर अपने को बचा रही है तो वही स्थिति-प्रवृति आज भारत के उद्यमियों की भी है। सरकार कितना ही पैसा उडेल दे वह हवा की तरह उड जाएगा। भारत में फिलहाल वह प्राण वायु है ही नहीं जिससे पैसा अब पूंजी में बदले या आर्थिकी की गतिविधी बने। नोटबंदी के साथ से मैं इस देश के उद्यम की प्राणवायु, लोगों की तासीर के जुगाडू जोश के उड़ने का जो खतरा बताता आया हूं उसका निर्णायक असर अभी और बाकी है। अगले साल देखिएगा क्या हालात होते हैं। लक्ष्मीजी का श्राप इस आने वाली दिपावली पर भी भारी दिखेगा। रिजर्व बैंक से मिले लाटरी मार्च तक उड़ जाएगी और अप्रैल से वापिस ठन -ठन गोपाल!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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