राफेल कम कीमत की डील के सहारे अंदर तो घुसी लेकिन लेकर निकली ज्यादा रकम। ऐसे में इससे इंकार कैसे किया जा सकता है कि बोफोर्स की तरह इस सौदे में खेल नहीं हुआ तो लाख टके का सवाल यही है कि खेल किया किसने? असली खिलाड़ी हैं कौन?
नूर साहब ने लिखा था – सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे और झूठ की कोई इंतहा ही नहीं। ये लाइनें मोदी सरकार पर पूरी तरह फिट बैठती हैं। नोटबंदी से कोई नुकसान नहीं हुआ, जीएसटी से देश का ल्याण हो गया, चार साल में करोड़ों को रोजगार दे दिया, ना जानें किस-किस तरह के कैसे-कैसे झूठ, आए दिन सत्ता की तरफ से मीडिया के सामने फैंक दिए जाते हैं और चाटुकार मीडिया का एक प्रभावशाली धड़ा उन्हें इस तरह परोसता है जैसे देश में असली क्रांति आ गई हो, भूतो ना भविष्यतो इस तरह कोई सरकार देश चला ही नहीं सकती। हैरानी तो इस बात पर होती है कि पहली बार देश में गलत फैसलों पर भी सत्ता की ओर से जश्न मनाने का दौर चल पड़ा है ताकि जनता को ये एहसास होता रहे कि फैसला दमदार है। देश आगे बढ़ेगा। ताजा झूठ देखिए-सरकार संसद में दावा किया था कि राफेल विमान की डील यूपीए के शासन काल के मुकाबले 9 फीसद कम पर की गई है। जबकि देश के जाने माने संपादक एन राम की रिपोर्ट बताती है कि हर विमान पर भारत के खजाने से 41.42 फीसद ज्यादा रकम गई है वो भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक फैसले के कारण। उन्होंने राफेल विमानों की संख्या 126 से 36 घटा दी और राफेल कंपनी ने रेट बढ़ा दिए।।
सरकार का झूठ इससे भी सामने आ गया है कि वो लागातार इस डील की शर्तों की दुहाई देकर दाम बताने से मुकरती आई है, लेकिन करार केवल रक्षा से संबंधित बातों को छुपाने का है दाम बताने से रोकने का नहीं। तो फिर मोदी सरकार ने कीमत छिपाई क्यों और लगातार करार का गलत सहारा क्यों लिया? अगर डील के वक्त अफसरों ने मीडिया से कीमत बता दी थी तो फिर उसे लगातार छिपाकर सौदे पर संदेह के बादल क्यों खेड़े किए गए? क्या गलत फैसला हो गया था इस वजह से कीमतें छिपाई गई या फिर कोई दूसरा गंभीर मसला है? 2007 के करार के मुताबिक 18 विमान तैयार होकर फ्रांस से आने थे और 108 एचएएल को तैयार करने थे। तब दासों कंपनी हर विमान पर 642 करोड़ मांगे थे। 2011 में ये कीमत बढ़कर 817 करोड़ हो गई। मोदी सरकार ने छूट जरूर नौ फीसद कंपनी से हासिल की लेकिन 126 पर नहीं केवल 36 विमानों पर।
इसके बावजूद कीमत हर विमान की भारत को पड़ी 743 करोड़। कहानी यही खत्म नहीं हुई, वायुसेना चाहती थी कि 126 विमानों में 13 खास खूबियां जरूर हों। इस पर कंपनी ने भारत को कहा कि उसे इसके लिए 11345 करोड़ अलग से देने होंगे। भारत ने मोलभाव किया तो यह दाम घटकर 10536 करोड़ पर आ गए। मोवभाव का अंदाज देखिए भारत को 126 पर देना था। 11345 करोड़, 36 पर दिया 10536 करोड़। कोई अनाड़ी भी ऐसा मोल-भाव नहीं करेगा हां खिलाड़ी जरूर कर सकता है। इस सौदे में सबसे बड़ा खेल ये था कि डील में रक्षा खरीद परिषद की कोई भूमिका ही नहीं रखी गई। जबकि बिना उसके कोई रक्षा सौदा हो ही नहीं सकता। यूरोफाइटर भी रेस में थी लेकिन उसकी पेशकर को बिना देखे ही ठुकरा दिया गया। जबकि वो कंपनी 20 फीसद कम कीमत की डील के सहारे अंदर तो घुसी लेकिन लेकर निकली ज्यादा रकम। ऐसे में इससे इंकार कैसे किया जा सकता है कि बोफोर्स की तरह इस सौदे में खेल नहीं हुआ तो लाख टके का सवाल यही है कि खेल किया किसने? असली खिलाड़ी है कौन?