भाजपा एजेंडे में था जनसंख्या नियंत्रण कानून

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इन दिनों यूपी सहित कई बीजेपी शासित राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित कानून बनाने की कवायद की जा रही है। संसद के मॉनसून सत्र में कुछ बीजेपी सांसद इस संबंध में निजी विधेयक भी लाने की तैयारी में हैं। बीजेपी इस मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठा रही है। हालांकि अधिकतर विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर अब तक उदासीन रुख ही बनाए रखा है। दरअसल, यह मुद्दा बीजेपी के अगले अजेंडे की ओर इशारा करता है। धारा 370 और राम मंदिर के मुद्दे के समाप्त होने के बाद यह ऐसा मसला है, जिस पर सालों से बात हो रही है। हालांकि जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ा मुद्दा संवेदनशील है और बीजेपी के लिए इसमें आगे कई तरह की उलझनें सामने आ सकती हैं। काफी पहले से हो रही थी तैयारी: जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की कवायद भले ही नए सिरे से तेज हो रही हो, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह मुद्दा बीजेपी के अजेंडे में बना रहा है। सरकार के स्तर पर देखें तो पिछले साल नीति आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में रोडमैप तैयार करने के लिए एक हाई लेवल मीटिंग की थी। इसमें अगले 15 सालों में जनसंख्या को किस तरह नियंत्रण में रखा जाए, इस पर चर्चा हुई।

इसके बाद से नीति आयोग ने इस मुद्दे को छोड़ा नहीं है। किसी न किसी रूप में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को और प्रभावी बनाने के सवाल पर इसका मंथन जारी है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से कई मौकों पर यह संदेश दिया गया कि जनसंख्या नियंत्रण और दो बच्चों के परिवार पर नियम के संबंध में सरकार और बीजेपी अब गंभीर हो चुकी है। साल 2019 में ही स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार सार्वजनिक मंच पर जनसंख्या नियंत्रण को देशभति से जोड़ा था। तब पीएम मोदी ने कहा थाए ष्हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, वह आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है। लेकिन यह भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है, जो इस बात को अच्छे से समझता है। ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं। ये लोग एक तरह से देशभति का ही प्रदर्शन करते हैं। इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दो बच्चों का मसला उठाया था। संघ प्रमुख के इस बारे में बयान देने से बहस तेज हो गई थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपने बयान पर सफाई दी और कहा कि वह कानून की बात नहीं कर रहे।

वैसे बीजेपी को यह भी पता है कि जनसंख्या नियंत्रण का मसला उतना सहज नहीं, जितना दूर से दिखता है। अभी उत्तर प्रदेश में कानून बनने की कवायद शुरू हुई तो इसके एक प्रावधान पर सबसे पहले विश्व हिंदू परिषद की ओर से ही आपत्ति आई। ऐसे में सरकार और बीजेपी को इस पर व्यापक सहमति बनाते हुए आगे बढऩा होगा। सरकार के आंकड़े भी इस बात को साबित करते हैं कि यह मसला धर्म से अधिक गरीबी और शिक्षा से जुड़ा हुआ है। बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में अलग-अलग कल्याणकारी नीतियों की मदद से गरीबों में अपनी पैठ बढ़ाई है। वह नहीं चाहेगी कि हड़बड़ी में कोई ऐसा कदम उठा ले, जिससे इस मजबूत वोट बैंक पर किसी तरह की आंच आए। जाहिर हैए तमाम पहलुओं को देखते हुए ही वह आगे बढऩा चाहेगी। दूसरी ओर विपक्षी दलों को आभास हो चुका है कि यह एक ऐसी सियासी पिच है, जिस पर वह बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकेगी। इसीलिए अधिकतर विपक्षी दल इस मुद्दे को इग्नोर कर रहे हैं। पिछले दिनों लव जिहाद कानून पर भी ऐसी कोशिश हुई, जब कई बीजेपी राज्यों में कानून बनाने की कवायद शुरू हुई थी।

तब भी विपक्षी दलों ने इस मुद्दे से खुद को दूर रखा। पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए विपक्षी दल जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर पॉजिटिव रुख भी दिखा सकते हैं। जब लाल किले से पीएम मोदी ने जनसंख्या विस्फोट की बात की तो उसके अगले दिन कांग्रेस के सीनियर नेता पी. चिदंबरम और बाद में कांग्रेस ने पार्टी स्तर पर भी पीएम मोदी की बात का समर्थन किया। उसके पीछे भी यही रणनीति थी। विपक्ष इंतजार करने के मूड में: कांग्रेस सहित विपक्ष के तमाम सीनियर नेताओं से यही कहा कि जनसंख्या नियंत्रण हमेशा से सरकारों और राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में रहा है। जाहिर है, इस दिशा में उठाए गए कदम अनावश्क विवाद पैदा नहीं करेंगे। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस इस मसले पर दो कदम आगे बढ़कर अपने कार्यकाल में बनी कमिटी का हवाला दे सकती है।

1991 में सीनियर कांग्रेस नेता के करुणाकरण के नेतृत्व में एक कमिटी बनी थी जिसने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में कई सुझाव दिए थे। उसमें जनप्रतिनिधियों के लिए यह शर्त अनिवार्य रूप से लागू करने को कहा गया था कि उनके दो से अधिक बच्चे नहीं हों। मोदी सरकार ने भी कानून मंत्रालय को इस दिशा में बेहतर कानून के विकल्प तलाशने को कहा है। दरअसल हाल के वर्षों में बीजेपी अपनी राजनीतिक पैंतरेबाजी से असर विपक्ष को शिकस्त देती रही है। कई बार मोदी सरकार ने इस तरह चौंकाया कि विपक्ष को तैयारी तक करने का मौका नहीं मिला। जनसंख्या नियंत्रण कानून पर विपक्ष की संतुलित प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि वह अपनी तरफ से कुछ करके बीजेपी को मौका देने के बजाय इस बार उसके खुद अपनी चाल में फंसने का इंतजार करना चाहेगा।

नरेंद्र नाथ
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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