भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं। भगवान शिवजी को तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में देवाधिदेव महादेव माना गया है। इनकी पूजा-अर्चना से जीवन में अलौकिक शान्ति के साथ ही सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहती है। व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। वैसे तो भगवान शिवजी की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन पूजा-अर्चना विशेष फलकारी रहता है। प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार यह प्रदोष व्रत 22 जनवरी, बुधवार को रखा जाएगा। माघ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 21 जनवरी, मंगलवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 01 बजकर 45 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 22 जनवरी, बुधवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 01 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 22 जनवरी, बुधवार को सम्पूर्ण दिन होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। व्रतकर्ता को प्रातःकाल से निराहार व निराजल रहकर सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
हर दिन के व्रत का है अलग-अलग प्रभाव-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन-वार के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। जैसे–रवि प्रदोष-आयु एवं आरोग्य लाभ, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति । मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा अभीष्ट की पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है।
ऐसे रखें प्रदोष व्रत-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधिविधान पूर्वक पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा की जाती है। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवजी की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। शिवजी की महिमा में प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएँ सुननी चाहिए। प्रदोष व्रत से शिवजी की अपार अनुकम्पा मिलती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि के साथ ही समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रदोष व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से पुण्य फलदायी है। व्रत के दिन व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए, व्यर्थ के वार्तालाप व परनिन्दा से बचना चाहिए।
(लेखक विमल जैन हस्तरेखा विशेषज्ञ रत्न परामर्शदाता,रत्न परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिषी एवं वास्तुविद है)