फार्मा उद्योग संकट में

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कोरोना वायरस का असर दुनिया के तमाम मुल्कों पर पडऩे लगा है। इसके संक्रमण का खतरा तो पहले से ही एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। भारत का भी दवा बाजार कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है। तकरीबन 70 फीसदी माल चीन से भारत आता है। संक्रमण के खतरे को देखते हुए चीन से आपूर्ति बाधित है और इसका असर भी यहां दिखना शुरू हो गया है। कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली चीनी फैट्रियां बंद है। इसके कारण यहां पैरासीआमॉल की कीमतों में इजाफा हुआ है। यह 40 फीसदी है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि मार्च में चीन से कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हुई तो फार्मा इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति कैडिला कंपनी की है। बाकी के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है जेनरिक दवाएं भी महंगी हो गई हैं।

संक्रमण के पहले ही यहां जीवन रक्षक दवाएं भी महंगी हो चली हैं। इसका असर स्वास्थ्य से जुड़े सभी सेगमेंट पर पडऩा तय है। एक तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से मंदी की चपेट में है। अनुमान है कि यह स्थिति कुछ महीने और बनी रही तो खुद चीन की जीडीपी दो से ढाई फीसदी तक गिर सकती है। भारत की स्थिति तो और विकट है। यहां पर एक-दो महीने में रेटिंग एजेंसियां जीडीपी की रैंकिंग घटाती जा रही है, जिस पर फार्मायूटिकल कंपनियां कच्चे माल के अभाव में उत्पादन की रतार घटाने को विवश हुईं तो स्वाभाविक है, इसका असर कर्मचारियों की छंटनी के रूप में सामने आ सकता है। दवाइयों के महंगे होने का खामियाजा तो जनता भुगतेगी ही, सो अलग। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अफ सरों की मंगलवार को एक जरूरी बैठक भी की। समझा जाता है, फार्मा इंडस्ट्री के कच्चेमाल की समस्या को लेकर सरकार गंभीर है। विकल्प यह भी सामने आया है कि कच्चेमाल को एयरलिट करने के बारे में सोचा जा सकता है। योंकि कराहती अर्थव्यवस्था के बीच संक्रमण से पैदा हुई कच्चेमाल की आपूर्ति में बाधा से फार्मा इंडस्ट्री सुस्त हुई तो समस्या आर्थिक दृष्टि से और गंभीर हो जाएगी, जिसको लेकर हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता। दवा के क्षेत्र में कच्चे माल का सबसे बड़ा बाजार भारत है। इसलिए इसका असर भी गहरा पड़ रहा है। पर कोरोना वायरण के संक्रमण से जूझ रहे चीन के कारण दुनिया के तमाम और देश भी एक अप्रत्याशित मंदी की तरफ बढ़ रहे हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पसंदीदा देश अब तक चीन ही है। वहां अपेक्षाकृत मानव श्रम सस्ता है। उत्पादनकर्ता देश के तौर पर उभरने की वजह से ही चीन में बेरोजगारी नाम मात्र की है। लोगों के हाथ में काम है। एक जीने लायक आमदनी है। उत्पादन के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ऑससेट पार्टनर होने के नाते वहां लोगों में कौशल का बेहतर विकास हुआ है। इसीलिए अमेरिका भी संक्रमण के असर से अछूता नहीं है। एप्पल कंपनी के उत्पादों की असेम्बलिंग चीन में होती है। इसीलिए एप्पल की सेल पर भी उसका प्रभाव पड़ रहा है। यही वजह है कि सवा सौ अरब के देश भारत ने भी विनिर्माण के क्षेत्र को विस्तार देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसके लिए बेशक प्रशिक्षित युवक-युवतियों की जरूरत होगी। इसीलिए केन्द्र सरकार ने कौशल विकास मिशन को जमीन पर उतारने की दिशा में बजट तय किया है। राज्य सरकारें भी इसका हिस्सा बन रही हैं। यूपी की योगी सरकार ने भी इसी दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए तहसील स्तर पर आईटीआई खोलने के लिए बजट तय किया है ताकि भविष्य की अर्थव्यवस्था का जो तानाबाना बुना गया है, उसे प्रशिक्षित युवा बल ही जीवंत बना सकता है। पर यह तो अभी वक्त लगने वाली बात है, फि लहाल वाजिब यह है कि घरेलू-कंपनियां कच्चे माल के लिए किसी एक देश पर निर्भर ना हो तो भविष्य में इस तरह के संकट को कम किया जा सकता है

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