पोर्नोंग्राफी के गैरकानूनी धंधे पर रोक लगे

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आमिर खान की ‘थ्री इडियट’ फिल्म का ‘चतुर’ टॉप करने के लिए हॉस्टल के अन्य छात्रों के कमरे में अश्लील तस्वीरों वाली मैगजीन डाल देता था। कुछ दशक पहले ऐसी अश्लील किताबों को लुगदी साहित्य कहते थे। उन्हें छापने, बांटने और पढ़ने के लिए लोगों को बहुत पापड़ बेलने पड़ते थे। लेकिन अब गूगल और एपल में उपलब्ध लाखों एप्स व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए पोर्नोग्राफी की महामारी को एक सेकंड में अरबों लोगों तक पंहुचाने की जुगत बन गई।

भारत में 76 करोड़ स्मार्टफोन, 62 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन और 21 करोड़ घरों में टीवी हैं। लॉकडाउन के दौरान मोबाइल व कंप्यूटर से ही पढ़ाई और अधिकांश कारोबार हो रहे हैं। एनसीपीसीआर की नई रिपोर्ट के अनुसार 10 साल के 37.8% बच्चे फेसबुक की गिरफ्त में हैं। जबकि 59.2% बच्चे चैटिंग के लिए स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं।

मोबाइल में पोर्नोग्राफी की घुसपैठ पेगासस के हथियार से भी ज्यादा खतरनाक है। पोर्नोग्राफी की 40 अरब डालर की मंडी का बच्चे, बूढ़े और जवान सभी शिकार हो रहे हैं। लेकिन डिजिटल कंपनियां और सरकार पोर्नोग्राफी का वायरस रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठा रहीं। कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने पोर्नोग्राफी की कई वेबसाइट्स रोकने के लिए सख्त आदेश दिया था। जब तक आदेश का पालन हुआ, तब तक रक्तबीज की तरह पोर्नोग्राफी का वायरस पूरे भारत में पसर गया।

निर्भया रेप जैसे अनेक मामलों में जजों के आयोग की रिपोर्ट से जाहिर है कि महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध के लिए नशे और पोर्नोग्राफी की लत बड़े पैमाने पर जिम्मेदार है। प्रिंटेड पर्चे, किताब, अखबार, मैगज़ीन, फिल्म व टीवी के समय में नग्नता रोकने के लिए बनाए गए क़ानून और सेंसर बोर्ड अब पोर्नोग्राफी के डिजिटल दानव के आगे बौनेे दिखते हैं।

इंटरनेट और डिजिटल की तिलिस्मी दुनिया के सामने सरकारी अफसर व मंत्री भी आंखें मिचमिचा रहे हैं। इन उलझनों का फायदा उठाकार राज कुंद्रा जैसे कारोबारी पोर्नोग्राफी के गंदे धंधे से दिन दूनी, रात चौगुनी कमाई की जुगत भिड़ाने लगे। पोर्नोग्राफी की लॉबी बचाव में कह रही है कि नग्नता देखना या दिखाना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है।

यह धारणा पूरी तरह से गलत है। अश्लीलता और नग्नता को कलात्मकता का आवरण देकर कानूनी दायरे में लाने के यत्न हो सकते हैं। लेकिन पोर्नोग्राफी तो हैवानियत है, जिसे नीति व क़ानून दोनों नजरिए से सही नहीं ठहरा सकते। संविधान के अनुच्छेद 19(2) में अभिव्यक्ति की आज़ादी के कई अपवाद हैं।

इनके तहत पब्लिक ऑर्डर, शिष्टता, नैतिकता के खिलाफ कार्यों के साथ अन्य अपराधों को बढ़ाने वाले कार्य शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वेंकटचलैया ने सन 1995 में खोडे डिस्टलरीज केस में अहम् फैसला दिया था। उसके अनुसार पोर्नोग्राफी जैसे आपराधिक व्यापार को करना, संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता।

अंग्रेजों के समय से पनपी गुलामी की मानसिकता का भारत के कानून की दुनिया में दबदबा बरकरार है। परंपरागत समाज की छोटी-छोटी बातें गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं। जबकि विदेशी बाजार और उद्यमियों के लिए अपराध की खुली छूट है। इसीलिये पोर्नोग्राफी जैसे अवैध कामों के लिए, विदेशों में कंपनी बनाने के साथ विदेशी नागरिकता हासिल करने का भारत में चलन बढ़ गया है। विदेशी कंपनियों और एप्स की आड़ में कुंद्रा का बचाव करते हुए कहा गया है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में अश्लीलता व पोर्नोग्राफी के खरबों वीडियो उपलब्ध हैं।

बचाव पक्ष के अनुसार वयस्कों के लिए इरॉटिक यानी उत्तेजक फ़िल्में बनाना गैर कानूनी नहीं है, तो फिर कुंद्रा के खिलाफ मामला चलाने का क्या तुक? पोर्नोग्राफी की मंडी में कई तरीके की गैरकानूनी गतिविधियां होती हैं। पहला बच्चों और महिलाओं को गलत तरीके से या ब्लैकमेल करके पोर्नोग्राफी के धंधे में ढकेलना। दूसरा पोर्नोग्राफी की पिक्चरों का निर्माण। तीसरा पोर्नोग्राफी की गैरकानूनी फिल्मों की मार्केटिंग व व्यापार।

इस सभी की आपराधिकता के बारे में आईपीसी, आईटी एक्ट और पाक्सो क़ानून में कई प्रावधान हैं। पोर्नोग्राफी जैसे गैरकानूनी धंधों से हुई नाजायज आमदनी के खिलाफ भी क़ानून हैं। लेकिन उलझन भरे क़ानून और लचर न्यायिक व्यवस्था की वजह से पोर्नोग्राफी का वीभत्स नाला बेरोकटोक पूरे समाज और देश को प्रदूषित कर रहा है। दूसरी तरफ कानून के पहरेदार और अदालतें अपसंस्कृति के परंपरागत झरोखों को ही बंद करने में व्यस्त हैं।

विदेशी बाजार को खुली छूट
परंपरागत समाज की छोटी-छोटी बातें गंभीर अपराध की श्रेणी में आ जाती हैं। जबकि विदेशी बाजार और उद्यमियों के लिए अपराध की खुली छूट है। इसीलिए पोर्नोग्राफी जैसे अवैध कामों के लिए, विदेशों में कंपनी बनाने के साथ विदेशी नागरिकता हासिल करने का भारत में चलन बढ़ गया है।

विराग गुप्ता
(सुप्रीम कोर्ट के वकील और ‘अनमास्किंग वीआईपी’ पुस्तक के लेखक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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