अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ में पर्दे के पीछे से हुई बातचीत में कश्मीर समस्या का स्थाई हल निकालने की बात काफी आगे बढ़ी थी | तब वाजपेयी की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार बृजेश मिश्रा और नवाज शरीफ की ओर से नयाज नायक पर्दे के पीछे बातचीत कर रहे थे। सरताज अज़ीज़ के मुताबिक़ फार्मूला यह था कि जम्मू और लद्दाख भारत का हिस्सा मान लिया जाए और दोनों तरफ के कश्मीर में साझा मेकनिज्म तैयार किया जाए| उस मेकनिज्म की डिटेल भी तैयार की गई थी लेकिन आज उस पर बात करने का वक्त नहीं।
मगर जुलाई महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह कहा था कि मोदी मध्यस्थता चाहते हैं तो उस स शक पैदा हुआ था कि कही मोदी भी पर्दे के पीछ गुपचुप वार्ता शुरू तो नहीं करना चाहते हैं? बाद में भारत ने न सिर्फ इसे नकारा बल्कि उस के कुछ दिनों के भीतर कश्मीर से 370 हटा कर उसे मिले विशेषाधिकार खत्म कर दिए। ये अधिकार प्रिवीपर्स जैसे थे जिन्हें प्रिन्सिपली स्टेट्स से इंदिरा गांधी ने ही हटा लिया था।
मोदी सरकार का यह कदम पाकिस्तान को नागवार गुजरा है। इसलिए वह 1947 की तरह फिर से पुख्तनवा के कबाईलियों को कश्मीर में घुसपैठ के लिए उकसा रहा है। जहां एक तरफ मुजफ्फराबाद में कबाईलियों के इकठ्ठे होने की ख़बरें आ रही हैं , जिन्हें नियन्त्रण रेखा कूच का हरावल दस्ता कहा जा रहा है ,वहीं इमरान खान अमेरिकी राष्ट्रपति से मध्यस्थता की गुहार लगाने एक बार फिर अमेरिका पहुंचे हुए हैं।
सोमवार को उनकी ट्रंप से मुलाकात हुई। कहते है गर्म दूध से होठ जलाने वाला व्यक्ति ठंडे दूध को भी फूंक मार मार कर पीता है। बावजूद इसके कश्मीर समस्या हल करके नोबल पुरस्कार की उम्मींद पाले ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर पर मध्यस्थ बनने की इच्छा जताते हुए कहा है कि वह अच्छे वार्ताकार साबित होंगें। हालांकि एक दिन पहले हाऊडी मोदी में ट्रंप के सामने ही मोदी ने अपने भाषण में कह दिया था कि अगर ट्रंप खुद को माहिर वार्ताकार समझते हैं तो वह भी कम नहीं हैं।
इस के बावजूद ट्रंप ने कहा कि अगर दोनों प्रधानमंत्री चाहें तो वह अच्छे मध्यस्थ साबित होंगे। ट्रंप इस बात को जानते हैं कि भारत तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा। इसलिए उन्होंने हाथों हाथ यह भी कह दिया कि हाऊडी मोदी में उन्होंने कश्मीर और पाकिस्तान पर मोदी के हमलावर रूख को देखा है। इमरान भी हकीकत को जानते हैं इसके बावजूद उन्होंने ट्रंप को मध्यस्थ बनाने की कोशिश अभी नहीं छोडी है। जबकि ट्रंप-इमरान मुलाक़ात के बाद व्हाईट हॉउस की ओर से जारी बयान में अमेरिका की स्थिति एक दम साफ़ हो गई है, जिसमें कहा गया कि “दोनों नेताओं ने आतंकवाद खत्म करने , भारत-पाक में उत्पन्न तनाव खत्म करने के लिए दोनों देशों की आपसी बातचीत के महत्व पर बल दिया।” यानी ट्रंप पाकिस्तान को मध्यस्थता की मिठ्ठी गोली दे रहे हैं। यह अमेरिका का आधिकारिक स्टेंड नहीं है। ट्रंप लोक दिखावे के लिए संतुलन बना कर चलना चाहते हैं। इसलिए वह बार-बार मध्यस्थता की बात करते हैं।
ट्रंप ने प्रेस कांफ्रेंस में यह कह कर इमरान खान पर अहसान भी जता दिया कि उन्होंने समयाभाव के कारण अनेक राष्ट्राध्यक्षों का व्यक्तिगत मुलाक़ात का आग्रह ठुकरा दिया है, लेकिन उन से मुलाक़ात की है। ट्रंप ने पाकिस्तान के पत्रकारों पर चढा कश्मीर का बुखार भी बड़े सलीके से उतारा। जब एक पत्रकार ने ट्रंप से पूछा कि मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र कहा है , क्या वह इस से सहमत हैं , तो ट्रंप ने सीधा जवाब टालते हुए कहा कि वह फिलहाल ईरान पर ध्यान दे रहे हैं। पाकिस्तानी मीडिया मोदी-ट्रंप की केमेस्ट्री से बेहद खफा है , इसकी झलक उन के सवालों में दिख रही थी , जिस से ट्रंप चिढ गए। उन्होंने पाकिस्तानी पत्रकारों को कई बार झिड़का और एक बार तो एक पत्रकार से यह तक कह दिया कि क्या वह पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा है? कश्मीर पर पाकिस्तानी पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में ट्रंप ने इमरान खान से कहा, ‘‘आपको इन जैसे पत्रकार कहां से मिलते हैं।”
अजय सेतिया
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं