प्रकृति की उपादेयता को रेखांकित करते हुए जब सत्ता प्रतिष्ठान की ओर से महा अभियान शुरू किया जाता है तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। योगी सरकार ने इसी संकल्प को लेकर बीते सोमवार को यूपी के दो छोर यानि बिजनौर से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बलिया से राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने निर्मल गंगा की शुरूआत की। सभ्यताएं आमतौर पर नदियों के किनारे ही परवान चढ़ीं। जहां तक गंगा की बात है तो इस पवित्र पावन सलिला में बढ़ते प्रदूषण को लेकर दशकों पहले से चिंता जताई जाती रही है। खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा की निर्मलता के लिए अरबों रूपये का फंड निर्गत कराया था, लेकिन उसका कितना सदुपयोग हुआ इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बाद की सरकारों ने भी इसकी निर्मलता के लिए चिंता की। पर वास्तविकता इसके उलट रही, गंगा उत्तरोत्तर मैली होती चली गई। एक बार फिर इस दिशा में 2014 में सरकार के स्तर पर गंभीरता दिखी जब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष दिलचस्पी दिखाई। पर परिणाम के लिए निरंतर सुनियोजित प्रयासों की आवश्यकता होती है और यह देखना किसी को भी आश्वस्त करेगा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां से बह रही गंगा को निर्मल बनाने का गंभीर प्रयास किया है। इसका प्रमाण है कानपुर की गंगा, जहां उसकी निर्मलता को देखा और अनुभव किया जा सकता है। पहले स्थिति यह थी कि सीवेज का पानी गिरता था और ऑक्सीजन स्तर बहुत कम हो गया था। जाहिर है, इससे वहां जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ गया था।
यह यात्रा बिजनौर और बलिया से शुरू होकर कानपुर में विश्राम लेगी। यह नमामि गंगे अभियान का प्रमुख बिंदु है। जहां तक गंगा के किनारे के इलाकों की बात है तो इसकी जमीन इतनी उर्वर बताई जाती है कि तकरीबन 40 फीसदी आबादी का यह अकेले पेट भर सकती है। सरकार ने गंगा के किनारे आबाद किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है। इसके मुताबिक गंगा किनारे का जो किसान पूरी खेती में फलदार पेड़ लगाएगा उसे तीन वर्ष तक फल आने तक हर माह सरकार अनुदान देगी। इसके अलावा सरकार की योजना यह भी है कि गंगा किनारे गांवों में गौ आधारित खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही हर गांव में गंगा मैदान और गंगा तालाब बनेंगे। नगर निकायों में गंगा पार्क बनाये जाएंगे। इस तरह सरकार की पूरी कोशिश है कि गंगा के किनारे की एक बड़ी आबादी, उसके किसान व कस्बे-नगर स्वच्छता अभियान में मनोयोग से जुटें ताकि सही अर्थों में निर्मल गंगा अभियान को सार्थकता प्राप्त हो सके। यह सच है कि सबसे बड़ा काम सरकारी अभियान से लोगों को जोडऩे का होता है। यदि यह जन-जुड़ाव ना हो तो सारे, सरकारी प्रयास निष्फल हो जाते हैं। यही वजह रही कि अब तक अरबों रूपये गंगा की निर्मलता के नाम पर उपलब्ध कराये गये लेकिन परिणाम अपेक्षानुरूप नहीं रहा। वैसे योगी सरकार के इस अभियान की सार्थकता इसी बात पर निर्भर होगी कि कितने लोग इसका हिस्सा बन पाते हैं। यह बहुत जरूरी है कि हम नदियों को कतई गंदा न करें। प्राय: तीर्थस्थलों पर देखा गया है कि श्रद्धालु जाते तो पुण्य लाभ के लिए हैं लेकिन गंगा को गंदगी देकर लौटते हैं। तीर्थस्थलों पर भी जनसमूह उमड़ता है, यह किसी सरकारी एजेंसी के बूते की बात नहीं कि वो कूड़ा-कचड़ा समेटने का सारा दायित्व निभा पाये।