डॉगी के सानिध्य में

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हम जंहा व जिसके साथ रहते हैं वहां का व उसका असर हम पर और जहां व जिसको भी हमारा असर पड़ना लाजिमी है ! जो लोग कुत्तु जी को प्यार करते हैं। वे उसे पाल लेते हैं और जब इन्हे पाल लेते हैं तो इनके रोज रोज के नखरे व आदतें उनके अवचेतन में भी घर करने लगती हैं, चूकिं हमारे अंगने में यह रह रहा है तो इसकी आदतें हरकतें हमारे जेहन में घर करना ही हैं !

वैसे में अनभिज्ञ था कि ऐसा होता है लेकिन मैंने जब यह अंतर अपने में महसूस किया तो में सोच में पड़ गया। अपनी कमी व्यक्ति को स्वयं दृष्टिगोचर नहीं होती ? कोई दूसरा बताये तब पल्ले पड़ता है कि हमारे जैसा हमारी नजर में सीधा उनकी नजर में अंग्रेजी के अंक तीन की तरह है ! और यह कमी पत्नि या दोस्त के सिवाय कौन बेहतर ढंग से बता सकता है। हमें हमारे एक दोस्त शुकुल जी ने कहा यार गंगू आजकल पिछले दो साल से देख रहा हूं कि तूं बेवजह दूसरों के फटे में टांग अडा़ता है। तेरे साथ दस साल से दोस्ती है लेकिन पहले कभी तेरा ऐसा व्यवहार मैंने नोटिस नहीं किया। पता नहीं क्या हो गया है तुझे। दफ्तर के टी क्लब में तू जहां पहले किसी को का्रस नहीं करता था।शांत परमहंसी भाव से सबको सुनता था। बोलता कम था, सुनता ज्यादा था। अब तू हर किसी के मामले में बेवजह टांग अडा़ता है और जोर जोर से अपनी बात रखकर दूसरों की काटना चाहता है ? उसका इतना बोलना था कि मुझे जैसे बिजली कौंध गयी कि हो न हो यह श्वान की संगत का असर है। मै जंहा रहता हूं वहां मकान तो चौदह हैं लेकिन कुत्ते पंद्रह हैं ! और ये इतने ज्यादा एक दूसरे की फटे में टांग अडा़ते हैं कि देखकर आष्चर्य होता है। दो दूसरे पहले से एक दूसरे को मात्र देख कर ही गुर्रा रहे हैं। रास्ते में पहले से घूमने गया लौट रहा तीसरा भी अपनी नाक उसमें घुसेड़ देगा और इतने से ही काम नहीं चलेगा दो तीन और अपने गेट के अंदर से बिला वजह भौंकना षुरू कर देंगे। टीवी चैनलों की बहस का मुकाबला क्यों कर रहे हो!

यह तो एक आदत थी। हमने सोचा ठीक है। एकाध आदत श्वान संगत से मिल गयी तो कोई बुरी गत नही। बदले में श्वानों को भी तो हमारी कुछ आदतें मिल गयी होंगी !

पत्नि एक दिन बोली। वैसे पत्नियां एक दिन क्या रोज ही व हर पल बोलती हैं वही उनका सबसे बड़ा काम होता है ! आजकल में देख रही हूं कि आप खाने में बहुत नाटक कर रहे हो ? पहले पूरा झटपट सफाचट कर जाते थे। अब देख रही हूं साल भर से कि चाहे जो चीज छोड़ देते हो कुछ भाता ही नहीं है। चाहे भात हो दाल हो या कि रोटी सब्जी हो। मैंने कहा नहीं तो ऐसा तो नहीं है। वह बोली में तो रोज झूठन बाहर डलवा रही हूं।

मैं पुनः सोच में पड़ गया। मुझे फिर डॉगी कनेक्शन याद आ गया। मैंने सोचा कि यह जब पपी था तब सब तुरंत गटक लेता था। सफाचट कर डालता था लेकिन अब यह नखरे करने लगा है। घंटे दो घंटे तो खाने की ओर देखता ही नहीं है। मुंह लगाना तो दूर की बात है। फिर मुष्किल से तिरछी नजरों से देखेगा कदम दो कदम खाने की ओर बढ़ायेगा फिर कदम पीछे खींच लेगा। पुनः कुछ देर बाद एहसान सा जताते हुये खाने की ओर आयेगा लेकिन एक दो बार मुंह डालकर फिर कदम वापिस खींच लेगा। उसी तरह जैसे कि अचानक ही किसी के श्रीमुख में करेला डाल दिया गया होऔर दोबारा और कोई सब्जी न होने पर झक मारकर थोडा़ बहुत खायेगा। उसके बाद कोपभवन में बैठने जैसा पसर कर बैठ जायेगा। हो न हो इसकी यह हरकत देखते देखते मेरे अवचेतन में भी यह दुर्गुण आ गया है !

अब तो मेरे में कोई भी कोई एैब गिनाये या बताये तो में सबसे पहले इसका डॉगी कनेक्शन देखता हूं।

पत्नि एक दिन बोली आजकल बात बात में बहुत गुर्राने लगे हैं मुझे लगा कि यह वो डॉगी को इज्जत से कह रही है। होता भी यही है कि एक घर में जब डॉगी आता है तो उसे इज्जत मिलने लगती है और घर के मुखिया के साथ डॉगी की तरह व्यवहार कई बार होता है! वे बोलीं क्या सोच रहे हो। मैं तुम्हारी बात कर रही हूं ! बच्चे भी कह रहे थे कि पापा आजकल जरा जरा सी बात में गुर्राते रहते हैं। मैं फिर सोच में पड़ गया। मैंने मन में कहा कि जब से इसको लाया हूं। इसकी गुर्राहट व भौंक के अलावा दिन भर और कुछ कंहा सुनने मिलता है ? रेडियो चलाओ तो एक ओर रेडियो की खर्राहट व बीच में इसकी गुर्राहट आ जाती है। खाना खाने बैठो तो इसकी गुर्राहट सुनो अभी यह टाईप कर रहा हूं तब भी गुर्राहट मिश्रित भौंकने की आवाज आ रही है! तो यह सब अवचेतन में तो बैठती ही है। इसलिये भाई साहब बहिन साहिबा आपको मिलियन डालर की सलाह दे रहा हूं कि डॉगी बहुत सोच समझ कर पाले नहीं तो नहीं पालें या फिर उसकी कुछ आदतें उसके आपके घर मे रहते आप में घर करेंगी ही इसके लिये तैयार रहें।

और आपकी कौन सी आदतें वह सीखता है। उससे आपको क्या फायदा होने वाला है ! जो होगा उसी को होगा।

सुदर्शन कुमार सोनी
लेखक व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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