आदमी की बेईमानी ने बदल दिए मौसम के मनी, अबी तो नवंबर में बी बरसता है पानी। जबी कायदे कानून की होती है मानहानि, तो पब्लिक कूईच कीमत पड़ती है चुकानी। अबी मुसीबतों की नवी नवी मंजिलें हैं अनजानी, ये है अतरंगी खतरों की निशानी, बोले तो अबी भोत हो गएली है मनमानी। अबी वो बिल का नाम पे होए के फीस का नाम पे, हर कोई का निशाना है नोट पे, सबकी उंगली है एक दूसरा के खोट पे, बोले तो जिसकू देखो, वोईच आ गएला है रोड पे। अबी ये रोड है, पन रोड पे हालत भोत खराब है। दूर दूर तलक जाम है, बोले तो ट्रैफिक का सैलाब है। ना कोई सलाम, न आदाब, हर कोई आगू निकलने कू बेताब है। अबी नायाब और लाजवाब सब गवाब है, रोड पे जिंदगी अजाब है। गर्दीच गर्दी से भरेला है शहर, शहर की हवा में घुल गएला है जहर, दर्दनाक है हर शहर का मंजर। किदर मुहब्बत का नाम पे शेंडी लगाते हैं ट्विटर, तो किदर फूटने कू लगते हैं कालाकांडी के गैस सिलेंडर, तो कि दर तुटने कू लगता है लॉ ऐंड ऑर्डर, तो ट्रैफिक का संग के हुए फैसले का माफिक खड़ा हो जाता है फ्लाईओवर।
किदर रोडपट्टी का बाजू में खाली पाकिट में कोलंबस का माफिक हाथ घुमाता है बैंक डिपोजिटर, तो किदर पतली गल्ली पकड़ के निकल लेता है डिफॉल्टर, फिर बजाते रहते हैं लोक खाली कनस्तर। रोड पे प्रॉब्लम का ट्रैफिक है बंपर टू बंपर और इदर गंगा कि नारे की रोड का बाजू का कैंपस में पैदा हो गएले हैं गंगा जमुनी कल्चर के नवे ऑडिटर। संस्कृत का मुस्लिम मास्टर पे टूटने कू लगता है रागमस्ती का कहर, बोले तो देवता लोक की जुबां पढऩे का वास्ते मांगता है सिरिप और सिरिप पंडित मास्टर। क्या बोलेंगा अबी! मौसम का बदलने कू लगा है चक्कर, तो अबी निकालने कू पड़ेंगे नवे टाइप के मफलर स्वेटर, पन फिर बी सुबे तबियत घबर जाती है देख के न्यूज पेपर। उदर जाम में रखड़ गएली है अपुन की इकोनॉमी। उसका गाड़ी का साथ में ऊंचा लोक हैं भोत नामी गिरामी, पन कि दर मुनाफा कमाने में है नाकामी, तो कि दर इज्जत की हो रएली है नीलामी, कायकू बोले तो किदर मार्केट में हो रएला है क रेक्शन, कमती हो रएला है ट्रांजेक्शन। कि दर यूनिट बंद करने का आ रएला है इंस्ट्रक्शन, तो प्रोडक्शन में हो रएला है रिडक्शन, तो किदर स्टाफ का नंबर पे ऑब्जेक्शन। ये सब है बीमारी का लक्षण! उदर ‘एफ एम’ रेडियो जॉकी जाम से कंटाल गई पब्लिक का पोपट करने कू ‘ग्लोबल स्लोडाउन’ और ‘रिफॉर्म स्टेप्स’ वाले गाने बजाती है तो मीडिया की अक्खी घरेलू दुनिया मुंह में सुरती दबा के गपचुप बैठ जाती है।
अबी एक और जुना कैंपस से निकल रएला है जुलूस तो कोई बी नई रएला है खुलूस, डंडे बरसा रएली है पुलिस खडूस। क्या करेंगा स्टूडेंट लोक! ये टाइम है आजमाइश का, गरीब मां बाप के लिए गर्दिश का, कायकू बोले तो मसला है फीस बढ़ाने की सिफारिश का। ये अपुन की डेमोक्रेसी का लुब्बे लुबाब है, बोले तो इदर सिरिप रोकड़े का आब है: रोकड़ा है तो आदमी तगड़ा है, नई तो हालात में जकड़ा है, बखत ने तोड़ा है, बात बात पे लफड़ा है। अपुन का यार सलीम पानी की जरा अलग सी है तबियत, वो बोलता है, बोले तो, ‘भिडू, अपुन के इदर पब्लिक शंबर टका मालिक रहेंगी, पन औकात हैसियत के मुताबिक रहेंगी। अबी ऐलिवेटेड रोड एयरपोर्ट तलक जाता है। इदर चार पांव वाला चार पहिए की गाड़ी में बैठने कू जा सकता है, पन दो पांव वाला दो पहिए या तीन पहिए की गाड़ी में बैठ के जाने कू नई सकता। ये अपुन के मुलुक का अंदर ईच अलग मुलुक कू जाने का रोड है। इदर ट्रैफि क जाम नई होता, कायकू बोले तो ये रास्ता आम नई होता।’ पानी अपुन के उप्पर बोलबचन निचोडऩे कू लगता है, ‘भिड़ू, फड़तूस लोक बात कर रएले है फीस वाली, पन अपुन के इदर तो इकोनॉमी की ऑक्सीजन की बाटली है खाली, फिर बी अपुन लोक मना लेते हैं 123 करोड़ पए के दीयों की दीवाली। उदर, अपुन के मोटा भाई के ग्लोबल लीडर बनने का काम का बी ऊंचा दर्जा है, उसका बी भोत चर्चा है, पन चर्चा से जास्ती खर्चा है। बोल, क्या बोलेंगा अबी!
अवधेश व्यास
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)