महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहब ठाकरे के समय से चली आ रही रिमोट कंट्रोल की रिवायत अब अतीत का हिस्सा है। गुरुवार को भगवा पोशाक में शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने शाम में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर नई पारी की शुरूआत की। जय भवानी और शिवाजी महाराज के उद्घोष के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि अब महाराष्ट्र की अस्मिता के रंग में रंगी भविष्य की राजनीति होगी। प्रांतीयता का वो बोध शपथ ग्रहण समारोह में खुलकर व्यक्त भी हुआ। कै बिनेट की पहली बैठक में शिवाजी के किले के पुनरोद्धार की विशेष सुध लेना इसी ओर संकेत करता है। यही नहीं जो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना है, उसमें भी स्थानीयता पर काफी बल है। प्राइवेट संस्थानों में भी 80 फीसदी जॉब महाराष्ट्र के बाशिंदों के लिए आरक्षित करने की बात रेखांकित की गई है। अच्छी बात ये भी है कि सूखे के शिकार सभी किसानों का कर्जा माफ करने का इरादा है। एक रुपये में इलाज का फरमान है पूरी कोशिश किसानों-गरीबों और कामगारों को जोडऩे की दिखती है।
मातोश्री से बतौर मुख्यमंत्री ठाकरे की यह पारी चुनौतियों से भी भरी हुई है। मसलन फडणवीस सरकार ने जाते-जाते महाराष्ट्र पर 5 लाख करोड़ का कर्जा चढ़ा दिया है। पहले से ही यह राज्य राजकोषीय घाटे की चिंताजनक स्थिति कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत कल्याणकारी कार्यक्रमों को मूर्तरूप देने की होगी। पिछली सरकार में तकरीबन 1400 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। अति जल वृष्टि और भयंकर सूखे जैसे प्राकृतिक आपदाओं ने किसानों की कमर तोड़ दी है। खासकर विदर्भ की स्थिति सबसे दयनीय है। अब इस बड़े वर्ग को संपूर्ण राहत का इंतजार है। उश्वमफद है, घोषणा राहत के अनुरूप होगी। इसके लिए पैसा कहां से आएगा यह सवाल तो उठेगा लेकिन इससे भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण स्थिति सरकार के सामने इसके क्रियान्वयन को लेकर होगी। फंड की किसी तरह से व्यवस्था हो भी जाए तो उसका लाभ पात्र किसानों तक पहुंचा पाना बड़ी चुनौती होता है। यूपी और मध्य प्रदेश में किसानों के अनुभव तो कुछ ऐसे ही हैं। इसी आधी-अधूरी सरकारी कोशिश का परिणाम होता है कि सरकारों पर कुछ वक्त के बाद वादाखिलाफी और लीपापोती का आरोप लगने लगता है। सरकार की गाड़ी जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी वैसे-वैसे रफ्तार की तस्वीर साफ होती जाएगी। इसके लिए इंतजार करना होगा।
राज्य की अपेक्षाओं से जुड़ी आर्थिक चुनौतियों के बीच एक और चुनौती शिवसेना के शिखर नेतृत्व के सामने होगी वो है, धर्मनिरपेक्षता जिसे कामन मिनिमन प्रोग्राम का कोर बिंदु माना जाता है। हालांकि संजय राऊत ने इस बारे में स्पष्ट किया है कि सरकार कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत चलेगी। पार्टी अपनी विचारधारा के हिसाब से काम करेगी। एनडीए में भाजपा ने भी तो अपने उन मुद्दों को ठण्डे बस्ते में डाल दिया था, जिसको लेकर दूसरी विचारधारा की पार्टियों के बीच मतभेद था। उसी शैली में यह सरकार चलेगी और लाजिमी है सत्ता में आने के बाद यही एक मात्र किसी के लिए भी रास्ता शेष रहता है। महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के किसी सदस्य ने सीधे सरकार की कमान संभाली है यही नई बात नहीं है। नई बात यह भी है कि कांग्रेस जो सेकुलर राजनीति का बड़ा प्रमुख चेहरा मानी जाती है। उसकी झिझक इस महाराष्ट्र की नई युति में साफ महसूस की गई। शपथ ग्रहण समारोह में सोनिया गांधी-राहुल गांधी को न्यौता खुद आदित्य ठाकरे देने दिल्ली गए थे लेकिन वे लोग शरीक नहीं हो सके जबकि बेंगलुरू में उनकी मौजूदगी है विपक्षी एकता की एक बड़़ी तस्वीर देश के सामने उभरी थी।