अचानक देश के कई राज्यों से प्रवासी पक्षियों की मौत की चौंकाने वाली खबरें आई हैं। बर्ड फ्लू भी इसका कारण बताया जा रहा है लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हुई है। हिमाचल प्रदेश के पोंड डैम इलाके में लगभग 1200 प्रवासी पक्षियों के मरने की खबर है।
कुछ दिन पहले सुर्खियों में आई एक खबर ने भी पक्षीप्रेमियों का ध्यान खींचा था। देशभर में लटके बिजली के तारों की वजह से सोन चिरैया-ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की लगातार होती मौत पर ग्रीन ट्रिब्यूनल अथॉरिटी ने गहरी नराजगी जाहिर की थी। उसने केंद्र के साथ राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए कि चार महीने के अंदर बिजली के तारों पर पक्षियों को भगाने के उपकरण लगाए जाएं और आने वाले समय में बिजली के तार भूमिगत बिछाए जाएं। सोन चिड़िया की प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे समय में ट्रिब्यूनल का यह आदेश इस प्रजाति को बचाने में सहायक साबित हो सकता है। लेकिन इस आदेश को सरकार कितनी गंभीरता से लेती है, यह बड़ा प्रश्न है।
पढ़ें खबरः देश में अचानक मर रहे हैं पक्षी यदि आप दुनिया भर में पक्षियों के मरने के कारणों पर नजर डालेंगे, तो हैरानी होगी। पक्षियों के संरक्षण पर काम करने वाली अमेरिका की एक संस्था नैशनल ऑडबोन सोसायटी से जुड़े बायॉलजिस्ट मेलानी डिसकोल बताती हैं कि अकेले अमेरिका में हर दिन अलग-अलग प्रजातियों के सवा करोड़ से ज्यादा पक्षी मर जाते हैं। ‘नैचरल डेथ’ से ज्यादा मौत ‘मानव रचित’ कारणों से होती है। घरों, दफ्तरों में शीशे के दरवाजे-खिड़कियां लगाने का चलन हर साल करोड़ों पक्षियों की मौत का कारण बनता है। शीशे में प्राकृतिक दृश्य देख भ्रमित पक्षी तेजी से उड़ते हुए आते हैं और शीशों से टकरा जाते हैं। ऐसे में सदमा और गंभीर चोट लगने से 50 फीसदी से ज्यादा पक्षी दम तोड़ देते हैं। हाल ही में हुए एक सर्वे में बताया गया कि पालतू और जंगली बिल्लियां हर साल करोड़ों पक्षियों को अपना शिकार बना लेती हैं।
तेजी से पनपते माइट्स, वायरस, बैक्टीरिया मनुष्यों के ही लिए नहीं पक्षियों के लिए भी खतरनाक हैं। वे एक साथ हजारों पक्षियों का खात्मा कर देते हैं। कुछ समय पहले ही राजस्थान में अलग-अलग प्रजातियों के लगभग 18 हजार प्रवासी पक्षी मृत पाए गए। बरेली स्थित इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट ने जांच के बाद बताया कि पक्षी न्यूरो मैसकुलर डिसऑर्डर से पीड़ित थे। यह बीमारी एक प्रकार के बैक्टीरिया के विकसित होने से पैदा हुए जहर के कारण होती है। बिजली के खुले तार तो पक्षियों की मौत का कारण बन ही रहे हैं। फसलों को बचाने के लिए भी पक्षियों को जहर देकर मारा जाने लगा है। फसलों पर अंधाधुंध कीड़े मारने की दवा के छिड़काव पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो ही थे। बढ़ता जल और ध्वनि प्रदूषण भी पक्षियों को मौत की नींद सुलाने वाला एक बड़ा कारक है। पानी में बढ़ते तमाम तरह के केमिकल और समुद्र के पानी में बिखरे तेल से भी पक्षियों की मौत हो रही है। जाने-अनजाने हम अपने घरों में भी पक्षियों की मौत के कारणों को बढ़ावा दे रहे हैं। घरों के आसपास इकट्ठा गहरे खुले पानी में भी पक्षी डूब कर मर जाते हैं। यही नहीं हमारे पालतू जानवर भी पक्षियों के दुश्मन बने हुए हैं। पक्षियों को दूषित खाना या ब्रेड देना अक्सर उन्हें बीमारी से लेकर मौत तक के मुंह में धकेल देता है। पक्षी, प्राकृतिक आपदा जैसे तूफान और तेज आंधी आने तथा बिजली गिरने से भी मारे जाते हैं।
बहरहाल, बड़ी बात यह है कि मिलकर प्रयास किया जाए तो लाखों पक्षियों की जान बचाई जा सकती है। इसके लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है। अपने घरों के आसपास पेड़ों पर कहीं पक्षियों के घोंसले दिखें तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमें लेनी चाहिए। हमारे आसपास कॉन्क्रीट के जंगल विकसित हो रहे हैं, जिससे पक्षियों का बसेरा भी उजड़ गया है। उनके लिए बाजरा, गेहूं जैसे अनाज डाल दें तो काफी हद तक पक्षियों की समस्या का समाधान हो सकता है। इस साल हमारी तरह ही प्रवासी पक्षियों का सफर भी चुनौतीपूर्ण रहा है। हम मिल-जुलकर ही एक-दूसरे के जीवन में थोड़ा सुकून ला सकते हैं।
अनु जैन रोहतगी
(लेखिका स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)