जमीन के लिए खूनी खेल

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राजस्व विवादों का समय से निपटारा ना हो और अतिक्रमण को स्थानीय प्रशासनिक मशीनरी से शह मिले तो ऐसे खुनी खेल का मंजर लाजिमी है। यूपी के सोनभद्र जनपद में ऐसा ही एक दुर्भाग्यपूर्ण वाक्या बुधवार को सामने आया। जिसमें ग्राम प्रधान के समर्थकों ने दिनदहाड़े नौ लोगों की जिन्दगी का चिराग बुझा दिया। यह घटना घोरावल के उम्भा गांव में हुई जहां जमीन पर कब्जे को लेकर असलहे चले और चारों और मातम पसर गया। योगीराज में इस प्रवृत्ति की यह पहली घटना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सक्रियता के बाद पूरी प्रशासनिक मशीनरी मुस्तैद हो गाई। इस मंजर का सबसे दुखद पहलू यह है कि ग्राम प्रधान और उसके समर्थकों की गोली का निशाना बने निहत्थे ग्रामीणों के यहां यही सवाल अहम है। उनका क्या कसूर था, इस सबके बीच मुख्यमंत्री के निर्देश पर मिर्जापूर के मण्डलायुक्त तथा वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच कर अगले चौबीस घंटे से रिपोर्ट शासन को देंगे।

जांच का मुख्य बिन्दु होगा कि पुलिस तब क्या कर रही थी। राजस्व विभाग के अफसरों को क्यों नहीं इस विवाद की जाकारी हो पाई और यदि पहले से जानकारी थी तो इसको लेकर इनके स्तर पर निपटारे का प्रयास क्यों नहीं हुआ। दरअसल जिस जमीन को लेकर विवाद रहा वो एक रिटायर्ड आईएएस अफसर प्रभात कुमार मिश्रा की थी। इस विवाद की शुरूआत 1955 से ही हो गई थी। इसमें कुछ जमीन एक ट्रस्ट की बताई जाती है। कई साल से गोड़ जाति के लोगों का इस जमीन पर कब्जा था। इसीलिए अधिकारी महोदय उस जमीन पर कब्जा नहीं पा सके। तो जैसा आम तौर पर होता है वही हुआ अफसर ने उस जमीन को ग्राम प्रधान को औने-पौने दामों में बेच दिया। अफसर ने अपना पल्ला विवाद से झाड़ लिया, लेकिन प्रधान ने जब दल बल के साथ उस जमीन पर कब्जे की कोशिश की तो वर्षों से काबिज गोड़ मांझी जाति के लोगों ने विरोध किया फिर जो हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण थ। 32 ट्रैक्टरों पर तकरीबन 300 लोग सवार होकर जमीन कब्जाने आए थे।

जाहिर है इतनी बड़ी तैयारी अचानक तो नहीं हुई होगी। इस बावत कुछ न कुछ पहले से चल रहा होगा। इसीलिए पहला सवाल तो यही उठता है कि राजस्व विभाग का स्थानीय अमला किस बात की प्रतीक्षा कर रहा था। जब दशकों पुराना विवाद है इसके समाधान की कोशिश क्यों नहीं हुई। गोड़ मांझी जाति के जिन लोगों का गुजारा वर्षो से उसी जमीन के चलते हो रहा था, क्यों नहीं उसे पट्टे पर आवंटित करने की बात दिमाग में आई। इसी तरह स्थानीय पुलिस पर भी सवाल उठता है। ऐसे विवादित मामले बीट के सिपाही और दारोगा को ना मालूम हो, यह भला कैसे हो सकता है, इसका सीधा मतलब है कि कहीं न कहीं ग्राम प्रधान से जरूर किसी तरह की समझदारी रही होगी। फिलहाल तो जांच रिपोर्ट में इस बारे में सारी स्थिति साफ हो जाएगी। अच्छा तो यह होता कि ऐसी दुखद परिस्थिति पैदा ही ना हो। राज्य में हजारों में नहीं, लाखों की तादाद में भूमि विवाद के मामले लम्बित हैं। इसी विवाद के चलते गांवों से प्रायः मार, पीट की खबरे सामने आती हैं। राजस्व का स्थानीय अमला भी दबंगों से मिलकर ऐसे विवाद की अघोषित वजह बन जाता है। इसके अलावा न्यायालयों में भूमि विवाद से जुड़े मामले वर्षों चलते रहते है। इस कोर्ट से उस कोर्ट का ऐसा खेल चलता है कि भूमि विवाद का केस बाबा के समय से शुरू हुआ था। अब पोता उसकी पैरवी कर रहा है।

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