नागरिकता विधेयक की लेकर नरेंद्र मोदी ने असम और अरुणाचल में जो अडिगता दिखाई है, वह सराहनीय है लेकिन उनकी अरुणाचलयात्रा पर जो आपत्ति चीन ने की है, उसका जवाब हमारी सरकार ठीक से नहीं दे पाई है। पड़ौसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम नागरिकों को भारत में शरण देने का विधेयक हमारी लोकसभा ने पास कर दिया है लेकिन पूर्वांचल के राज्यों में उसका विरोध इतना तगड़ा हो रहा है कि वह राज्यसभा में गिर जाएगा। यह विरोध गलतफहमी और अतिवादी प्रचार के कारण हो रहा है।
इन पड़ौसी देशों में गैर-मुस्लिम नागरिकों के साथ सरकारें अच्छा बर्ताव करना चाहती हैं, तब भी उनका समाज कभी-कभी काफी ज्यादती कर देता है। यदि वे भारत आकर यहां बसना चाहें तो उन्हें वैसा मौका क्यों नहीं दिया जाए ? आखिर में ये पड़ौसी देश भी अपने ही हैं। ये लोग भी अपने ही हैं। ये देश कभी भारत के अंग ही थे। भारत ही थे। इनसे परहेज क्यों?
मैं तो चाहता हूं कि पुराने आर्यावर्त्त के इन सब देशों को मिलाकर एक महासंघ तुरंत खड़ा किया जाए। खैर, ये तो बात हुई उस नागरिकता विधेयक की लेकिन चीन ने आपत्ति की है कि नरेंद्र मोदी अरुणाचल क्यों गए? चीन मानता है अरुणाचल तिब्बत का हिस्सा है। चीन का अंग है। भारत ने उस पर जर्बदस्ती कब्जा कर रखा है। चीन के नेता माओ त्से तुंग कहा करते थे कि लद्दाख, अरुणाचल, नेपाल, भूटान और सिक्किम, ये चीन की पांच उंगलियां हैं।
भारत का कोई बड़ा नेता जब भी अरुणाचल जाता है तो चीन बयान जारी करता है कि वह ‘दक्षिण तिब्बत’ में क्यों गया? इस बार चीन ने मोदी के जाने पर जो बयान जारी किया है, उसमें दोनों देशों के अच्छे रिश्तों की दुहाई दी गई है और मांग की गई है कि भारत उन्हें बिगाड़ने की कोशिश न करे। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी एक नरम सी विज्ञप्ति जारी कर दी है। मैं कहता हूं कि भारत खुलकर यह क्यों नहीं कहता कि चीनियों तुम तिब्बत खाली करो। तिब्बत चीन का हिस्सा नहीं है?
सच्चाई तो यह है कि सिंक्यांग भी सदियों से चीन का हिस्सा नहीं रहा है। तिब्बत और सिंक्यांग, दोनों ही अपनी आजादी के लिए बरसों से लड़ रहे हैं। तिब्बत के बौद्ध और सिंक्यांग के मुसलमानों को चीन ने डंडे के जोर पर अपने साथ मिला रखा, जबकि अरुणाचल और लद्दाख के लोग अन्य भारतीयों की तरह सम्मान और प्रेम के साथ भारत के नागरिक हैं। यदि चीन हमें अरुणाचल खाली करने के लिए कहता है तो हम उसे तिब्बत खाली करने के लिए क्यों नहीं कह सकते ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)