क्या भ्रष्टाचार के बिना भी नेतागिरी हो सकती है?

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मुझसे दर्जनों पाठकों और मित्रों ने कहा कि हम ‘चोर’ और ‘भ्रष्टाचारी न. 1’ शब्दों पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। आप इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं ? चुप इसलिए रहे हैं कि यह मुद्दा ही अपने आप में बहुत कुछ बोल रहा है। दोनों तरफ से ज्यादती हो रही है। यदि राहुल गांधी मोदी को चोर कह रहे हैं और बार-बार कह रहे हैं तो मोदी को गुस्सा आ जाए और वह एक बार राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी न. 1 बोल पड़ें तो हिसाब बराबर हो गया।

यह कहा जा सकता है कि मोदी ने यह बात जिस तरह से कही, वही तरीका गलत था याने राजीव मि. क्लीन की तरह शुरु हुए और मरे वह भ्रष्टाचारी न. 1 की तरह ! उनके मरने को भ्रष्टाचार से जोड़ना या बोफोर्स-सौदे से जोड़ना हर भारतीय की भावना को ठेस पहुंचाना है। उनकी हत्या तो राष्ट्रहित के खातिर हुई, श्रीलंका के तमिल उग्रवादियों ने की। उसका बोफोर्स से क्या लेना-देना था? माना जा सकता है कि मोदी की जुबान फिसल गई। जिस जुबान का काम दिन-रात चलते ही रहना है, उसका कभी न कभी फिसलना स्वाभाविक है लेकिन मोदी ने अपनी फिसलन को आज फिर सही बताया है। ‘नवभारत टाइम्स’ को दी एक भेंट में उसे सही बताया गया है। तू ने मुझे चोर कहा तो मैं कहूंगा तू चोर, तेरा बाप चोर! ये स्तर है, हमारी राजनीति का। यह तो सबको पता है कि बिना चोरी या भ्रष्टाचार के आप आज राजनीति कर ही नहीं सकते। चुनाव लड़ने के लिए अरबों-खरबों रु. चाहिए। कहां से लाएंगे आप, इतना रुपया ? आपको रफाल और बोफोर्स जैसे सौदों में रुपए खाने ही पड़ेंगे। यदि आपको पैसे नहीं खाने हैं तो राजनीति में आप जाते ही क्यों हैं ?

मुझे इस रहस्य का पता 1957 में ही चल गया था। 62 साल पहले इस चुनाव में सक्रिय रहते समय ही मैंने संकल्प कर लिया था कि मैं चुनाव की राजनीति में अब किसी भी हालत में भाग नहीं लूंगा, क्योंकि मैं भ्रष्टाचार नहीं करुंगा। मेरे साथ आंदोलनों में सक्रिय रहनेवाले लड़के आगे जाकर केंद्र में मंत्री बने और प्रदेशों में मंत्री और मुख्यमंत्री बने। सबको राजनीति की इस मजबूरी के आगे आत्म-समर्पण करना पड़ा। इसीलिए मैं कहता हूं कि यदि एक गरीब और अशिक्षित नगारिक ईमानदारी का जीवन जीता है तो वह भी देश के बड़े से बड़े नेता से भी बड़ा है। आप भ्रष्टाचार किए बिना आज नेता बन ही नहीं सकते। भ्रष्टाचार और नेतागीरी का साथ चोली और दामन की तरह है। गालिब ने क्या खूब कहा था:

जिसको हो दीन-ओ-दिल अजीज,
उसकी गली में जाए क्यों ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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