अब ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ फिर से राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन गई है। सितंबर 2016 में जब सरकार ने प्रचार किया था कि उसने पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की है, तभी मैंने लिखा था कि यह ‘फर्जीकल स्ट्राइक’ है। हमारे प्रचार मंत्रीजी को यह पता ही नहीं है कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ क्या होती है? लेकिन प्रचार मंत्रीजी की ताकत का लोहा मानना पड़ेगा कि उन्होंने कांग्रेस को अब मजबूर कर दिया है कि वह भी अपनी ‘सर्जिकल स्ट्राइकों’ की डोंडी पीटने लगी है।
उसका कहना है कि अगर मोदी ने एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की है तो मनमोहनसिंह ने छह की थी लेकिन उसका प्रचार नहीं किया था। कांग्रेस ने उन स्ट्राइकों के नाम और तिथि भी प्रसारित की है। यह ऐसा ही है कि जैसे अखाड़े में भिड़ रहे दो पहलवानों में से पहला कहे कि मैं मूर्ख हूं तो दूसरा अपने आप को बड़ा सिद्ध करने के लिए कहे कि मैं महामूर्ख हूं। इन सर्जिकल स्ट्राइक करनेवाली सरकारों से कोई पूछे कि आपकी ये फौजी शल्य-चिकित्सा क्या मजाक साबित नहीं हुई हैं?
ऐसी फौजी कार्रवाइयां नरसिंहरावजी, अटलजी और डा. मनमोहनसिंह की सरकारें दसियों बार कर चुकी हैं लेकिन उन्होंने कभी इनके नगाड़े नहीं पीटे। वे नगाड़े पीटने लायक थीं भी नहीं। सर्जिकल स्ट्राइक के नगाड़े पीटने की जरुरत ही नहीं पड़ती है। अगर वे सचमुच हों तो अपने आप नगाड़े पिटने लगते हैं। 1967 में इस्राइल ने जब मिस्र के सैकड़ों जहाज एक ही झटके में उड़ा दिए थे, 1976 में इस्राइली कमांडो ने उगांडा के एंटेबी हवाई अड्डे और 1981 में ओसीराक के परमाणु-संयंत्र पर हमला किया था, 1983 में जब अमेरिका ने सद्दाम के एराक पर खंजर भौंका था, अफगानिस्तान में फजलुल्लाह का सिर कलम किया था और पाकिस्तान के जबड़े से उसामा बिन लादेन को खींच लाया था, तब कहा जा सकता था कि यह सर्जिकल स्ट्राइक हुई है।
आपकी स्ट्राइकों में आपने क्या किया, सद्दाम और उसामा तो क्या, आप एक मच्छर भी नहीं मार सके। आपकी सर्जिकल स्ट्राइकों के बावजूद आपकी संसद पर हमला हुआ, आपकी मुंबई की होटलों पर आतंकी टूट पड़े, आपके फौजी अड्डों पर भी मार पड़ गई, पुलवामा में सामूहिक हत्याकांड हो गया।
यदि एक भी सच्ची सर्जिकल स्ट्राइक हो जाती तो पाकिस्तान कश्मीर का नाम ही भूल जाता। सर्जिकल स्ट्राइक के जो वीडियो हमारी सरकार ने दिखाए, वे भी इतने बेजान थे कि उन्हें देखने के बाद लग रहा था कि सरकार खुद ही सिद्ध कर रही है कि उसकी सर्जिकल स्ट्राइक कितनी फर्जी थी। अब इस फर्जीवाड़े में देश की दोनों पार्टियां फंस गई हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं