क्या अब बॉलीवुड भी बनेगा जेएनयू?

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मैं बॉलीवुड की न खबर रखता हूं और न उस पर ख्याल बनाता हूं। लेकिन मुंबई से जब एक जानकार ने बताया कि बॉलीवुड को कटघरे में खड़ा करना राजनीति है और यह न केवल बिहार चुनाव का मकसद लिए हुए है, बल्कि 2024 तक का रोडमैप है तो मैं सोचने लगा कि बॉलीवुड से भी क्या हिंदुओं को मूर्ख बनाना संभव है? लगा तरीके कई हैं। छोटे-बड़े कई एंगल बनवाए जा सकते हैं। बिहार के गौरव सुशांत सिंह राजपूत कि किस्सागोई से यदि बिहार के राजपूत वोटों को बहकाया जा सकता है और उसका प्रादेशिक चुनाव में मतलब बना है तो क्यों नहीं बॉलीवुड को पूरी तरह कलंकित कर, हिंदू-मुस्लिम बना देश का चुनाव जीता जा सकता है? तभी संभव है बॉलीवुड पर धीरे-धीरे जेएनयू की तरह का नैरेटिव बना सकना। 2019 के चुनाव से पहले जेएनयू को लेकर हिंदू-मुस्लिम एंगल में, जितने तड़के लगवाए गए थे उस सबसे भक्त हिंदू के लिए घर-घर यह हल्ला बनवाना संभव हुआ कि जेएनयू देशद्रोहियों का अड्डाि है और वहां से वामपंथियों, मुस्लिमपरस्त नेताओं, सेकुलरों को कश्मीर के पृथकतावादियों को, आजादी-आजादी का हल्ला बनवाने की यह कैसी छूट मिली हुई है। इस पर जेएनयू की घर-घर चर्चा करवा दी गई थी। उस मुकाबले बॉलीवुड की चर्चा ज्यादा होगी और बदनाम करना भी आसान। भक्तों की बुद्धि में, सभ्यता-संस्कृति में हिंदू समाज के अधोपतन की दास्तां में यों भी बॉलीवुड पर ठीकरा फोड़ा जाता रहा है। लड़के-लड़कियां बिगड़ रहे हैं, यह मैं अपने बचपन में भी हिंदी फिल्मों के हवाले सुनता था और आज भी सुनता हूं। हिंदू की बुद्धि में सोचने की जो सीमा है उसमें समाज की बुराईयों में बॉलीवुड अपने आप टारगेट बनता है।

हिंदू भले मनोज कुमार, अक्षय कुमार की देशभक्ति और कंगना रनौत की झांसी की लक्ष्मीबाई में गद्गद रहा हो लेकिन मोटे तौर पर औसत हिंदू का दिमाग बॉलीवुड को मुस्लिम वर्चस्व, मुंबई के माफिया तंत्र का विस्तार मानता रहा है। तभी बॉलीवुड में तिल का ताड़ बनाना आसान है। 138 करोड़ लोगों की भीड़ में दाऊद जिस इमेज से दिल-दिमाग में पैठा हुआ है उसमें निर्णायक अटकल उसके बॉलीवुड कनेक्शनों की है? मुस्लिम भाईचारे से फाईनेंस है, फिल्में हैं, मुस्लिम अभिनेताओं की दादागिरी है और इनकी बेईंतहा कमाई है। मामा, भाई-भाई की कई कहानियां हैं। इन कहानियों में भारत की खुफिया एजेंसी खपी रही है तो मीडिया और लोगों की आम गपशप इससे दशकों से कमाई करवाती रही है। इसलिए बॉलीवुड के जरिए सन् 2024 से पहले मोदी सरकार अपना यह हल्ला बना डाले कि उसने सलमान खान, आमिर खान, शाहरूख खान सहित खानों के तमाम पैरोकारों, दाऊद से कनेक्शन रखने वाले ड्रग माफिया को ठिकाने लगा दिया है तो वह पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राईक से ज्यादा कारगर नुस्खा होगा। सन् 2024 में फिर किसी सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत नहीं होगी। न ही तब वायरस में मरे लोगों, आर्थिकी से भूखे-नंगे-बरबाद लोग बदहाली में रोते मिलेंगे। 2019 वाले वोट वापिस यह कहते हुए मिलेंगे कि कुछ भी हो इन सालों को तो ठीक कर दिया। बॉलीवुड की सफाई हुई। बॉलीवुड ठीक हो गया तो दुनिया में भारत अपने आप सोने की चिड़िया होगा। अब तक तो दुनिया भारत की अपसंस्कृति देख रही थी अब नए बॉलीवुड से दुनिया जानेगी कि हम सोने की चिड़िया हैं। ओलंपिक जीते हुए हैं और अग्निबाण, उड़नखटोले, हवाई जहाज, कंप्यूटर आदि सब हम तब बना चुके थे जब अमेरिका याकि बाकी दुनिया थी ही नहीं।

कोर बात मुसलमानों से, माफिया-ड्रग के दाऊदी नेटवर्क से बॉलीवुड की मुक्ति का है। सोचें तीन खान और उनके ईर्द-गिर्द थिरकते बॉलीवुड पर। यदि ये निपटें, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाते हुए अपनी टीवी चैनलों में सुशांत-रिया जैसा नैरेटिव लिए चुनाव से ऐन पहले के दो साल छाए रहे तो जन-जन में क्या धारणा बनी हुई होगी? क्या यह नहीं कि पानीपत की लड़ाई में बॉलीवुड मोर्चे पर हिंदुओं का कब्जा हुआ? हां, हिंदुओं को पहले देश में ही सब कब्जाना है। तभी तमाम संस्थाएं, एजेंसियां, राष्ट्र-राज्य की बुद्धि, दूरदृष्टि, सामरिक रणनीति, समझ, साधन सब स्वदेश में कंट्रोल पर खपे हुए हैं। मुंबई में देश वायरस से लड़ता हुआ नहीं है, बल्कि बॉलीवुड के बेचारे उन कलाकारों पर टूटा पड़ा है, जिन्होंने तीन साल पहले किसी व्हाट्सअप चैट में नशे की, पार्टी की बात कही तो यह ट्रेसिंग-स्क्रीनिंग हो रही है कि बात से बात का वायरस कहां तक फैला हुआ है। इस ट्रेसिंग-स्क्रीनिंग में यदि किसी दिन आप सुनें कि सलमान खान की कंपनी किंगपिन थी या फलां खान की फलां पार्टीं में कोई नशेड़ी था तो खान हाजिर हो और मीडिया चील की तरह नोचने को टूट पड़ेगा। क्या यह गपशप सही होगी? पता नहीं लेकिन यह तो लगता है कि वायरस-आर्थिक बरबादी और चीन के घुस आने का सत्य किसी न किसी तरह आउट ऑफ फोकस, आउट ऑफ माइंड रखना है तो बॉलीवुड की किस्सागोई से बेहतर दूसरा नुस्खा नहीं है। भारत के ‘सुपरस्टार’ मेमने! बुनियादी सवाल है आजाद भारत में ‘स्टार’ ‘सुपरस्टार’ कौन? मतलब 138 करोड़ लोगों की भीड के लोकमानस में नायक और महानायक कौन बैठे हैं? शायद भारत में सिने स्टार व क्रिकेटर ही अपने प्रति लोगों में सर्वाधिक दिवानगी बनवाए हुए हैं। इनमें भी सिने स्टारों का जलवा अपूर्व। एक वक्त दिलीप कुमार थे।

फिर राजेश खन्ना बने, और अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, सलमान खान व आमिर खान। इनमें पिछले तीस सालों के महानायक तीन खान हैं। क्रिकेट में देखें तो अपने-अपने वक्त के स्टार, सुपर स्टार सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली हैं। अब विचार करें इन चेहरों की असलियत पर। मतलब जैसे पश्चिमी देशों, अमेरिका, ब्रिटेन, हॉलीवुड आदि के महानायक अपनी धमक, जलवे में निर्भीक, निडर, बेबाक व्यवहार लिए हुए होते हैं तो भारत के स्टार-सुपर स्टार भी क्या अपने व्यक्तित्व में ऐसा कुछ लिए हुए हैं? इनका अपना दमखम, अपना गुर्दा क्या है, जिससे भारत देश, दशा-दिश पर इनका कोई चिंतन, व्यवस्था, विमर्श, प्रेरणा बनी हो। ये भारत की व्यवस्था में, मुयमंत्री-प्रधानमंत्री-नेता विशेष के सामने, पुलिस कोतवाल, सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स या नारकोटिक्स ब्यूरो के आगे क्या औकात, क्या निडरता व गुर्दा लिए हुए हैं? कथित सुपर स्टार क्रिकेटर कैसे-कैसे चेहरों की मर्जी में जीये हैं और निर्भर हैं तो यहीं स्थिति सिने सुपर स्टारों की भी है। कभी भारत सरकार के मंत्रियों-नेताओं-अफसरों के आगे मुजरा करते हुए तो कभी माफिया गैंग की कृपा याकि भाई लोगों, भाई भतीजावाद से पूरी तरह संचालित! कोई माने या न माने अपना मानना है कि अमिताभ बच्चन ने जीवन में अभिनय कम किया होगा और सत्ता व राजनीति को पटाए रखने का अभिनय ज्यादा हुआ होगा। अमिताभ बच्चन ने जितने पापड़ बेले उसे या तो वे जानते हैं या खुद महानायक होने के भ्रम में रहे दिवंगत अमर सिंह जानते थे। सोचें एक- दो दशक तो अमर सिंह ने ही सिने सुपर स्टारों को अपने अंदाज में नचाया। इससे अमिताभ बच्चन का गुर्दा, खुद्दारी, चरित्र का वैसे ही खुलासा है, जैसे तीन खान याकि इन दिनों सलमान खान, आमिर खान, शाहरूख खान की दशा, चरित्र और हैसियत का है।

ये तीन सुपर स्टार खान। लेकिन मजाल जो अपनी मन की बात में एक शब्द मुंह से निकाल दें। इनमें न अपने आप पर विश्वास है और न भारत के लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और कानून के राज से भरोसा है। दो ही बात हो सकती है या तो भारत के लोकतंत्र, व्यवस्था की असलियत से डरे हुए हैं या खुद मेमनों का दिल-दिमाग लिए हुए हैं। अपनी दलील है कि जो भारत के, 138 करोड़ लोगों के सुपर स्टार हैं उनका व्यवहार आम बेचारे नागरिक, भेड़- बकरियों की तासीर से तो कुछ अलग होना चाहिए। जिन चेहरों को लोग देखते हैं वे भी यदि डरे, मरे, लाचारी, बेबसी में व्यवहार करेंगे तो फिर सुपर स्टार का न सुपर स्टार होना है और न फॉलोवरों, अनुगामियों का प्रणेता। फिलहाल मौजूदा सुपर स्टारों की पोल, उनकी दशा बहुत शर्मनाक है। ये लोग सेकुलर आइडिया ऑफ इंडिया के दिनों में बड़े भाषण, बड़ी हिमत दिखाते थे। जैसे तीनों खान हैं। ये तब बड़ी-बड़ी बातें करते थे लेकिन अब डरे, दुबके बैठे हुए हैं। जबकि सलमान, आमिर, शाहरूख के पास न पैसों की कमी है, न साधनों की लेकिन शाहरूख खान ने सन् 2015 में अपने मन की दो लाइनें क्या बोलीं, भक्त-लंगूरों ने उन्हें ट्रोल किया और महीने भर के अंदर वे बदल गए। भारत के कथित सुपर स्टार, सुपर कारोबारी, तमाम किस्मों के सुपर महानायक सब भय, खौफ में जीवन जीते हुए वे मेमने हैं, जिन्हे पल-पल चिंता है कि सत्ता के वायरस के कहीं वे शिकार नहीं हो जाएं। पिछले सप्ताह मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि हिंदू क्योंकि सदियों गुलाम रहे हैं तो गुलामी उनका नैसर्गिक जीवन है। आजादी क्या, गुलामी क्या इसका औसत हिंदू फर्क नहीं बूझ सकता। और नरेंद्र मोदी ने अपनी हिंदू सत्ता में जन-जन में भक्ति और खौफ की जो आबोहवा बनाई है उसमें कौम ऐसी भीरू, डरपोक, कायर बनी है।

बनेगी कि किसी भी मोर्चे पर न राष्ट्र-राज्य में लडऩे की हिमत होगी और न नागरिकों में।आज पूरे देश में दर्जन चेहरे भी नहीं हैं, जो बेबाकी से इतनी भी हिमत रखते हों कि वह सत्य के लिए मर मिटेंगे लेकिन झूठ बर्दाश्त नहीं करेंगे। पूरा देश झूठ, खौफ में सांस लेते हुए है। तब भला तीनों खान कैसे हिमती हो सकते हैं? सुशांतरिया किस्सागोई ने इन सुपरस्टारों की नींद उड़ा रखी होगी। ये चुटकी में निपट सकते हैं। हालांकि अपना मानना है कि यदि टारगेट बनें तो हलाली अंदाज में धीरे-धीरे निपटाए जाएंगे। कुछ वैसे ही जैसे पी चिदंबरम को औकात दिखलाई गई थी। याद करें पी चिदंबरम का मामला धीरे-धीरे पकाते हुए एक दिन हत्या के आरोप में जेल में बंद इंद्राणी मुखर्जी से उन पर आरोप लगा और चिदंबरम जेल में। यदि वैसे ही रिया चक्रवर्ती जेल में बंद रहते हुए एक दिन सरकारी गवाह बन कर कथित तौर पर कहे कि फलां खान की पार्टी या तीनों खानों की अलग-अलग पार्टी में नशा बंटा तब उस खान को एजेंसी जेल में डाल दे तो क्या होगा! फिर जब तक सरकार नहीं चाहेगी सुपरस्टार को जमानत नहीं मिलेगी। न ही मीडिया खान की सफाई सुनाता होगा। लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी, कानून का राज सब गए गंगाजी और पूरे देश में भक्त शंख बजाते हुए मिलेंगे कि देखो खानों के कारनामों को और मोदी जी की सख्ती से बॉलीवुड हुआ आजाद! तभी भारत के कथित ‘सुपरस्टारों’ पर याल में मानना है कि इस देश में सत्ता के अलावा किसी का कोई मतलब नहीं है। सत्ता मनमर्जी के लिए स्वतंत्र है। सत्ता और उसकी लाठी लिए जितने भी हैं वे आजाद हैं और बाकी सब उसके गुलाम। फिर भले सिने सुपरस्टार हों या क्रिकेटर हों या अरबपति या विचारक या समाज सेवक या बेचारा आम आदमी।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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