कोरोना पर इंसानी जीत की उम्मीद

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कोरोना हारेगा और इंसान की जीत होगी, यह सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि इंसानी काबिलियत में यकीन का भी ऐलान है। हालांकि अभी ऐसा कहना थोड़ी जल्दबाजी है कि कोरोना के खिलाफ इंसान लड़ाई जीतने जा रहा है पर जोखिम लेकर भी यह कहा जा सकता है कि अब जीत की उम्मीद दिखने लगी है। लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गई है। दुनिया के जो देश इपीसेंटर के तौर पर उभरे थे उनके वहां सुधार होने लगा है। जहां से इसकी शुरुआत हुई थी चीन का वह वुहान शहर कोरोना से मुक्त हो गया है। वुहान के अस्पताल से कोरोना का आखिरी मरीज सोमवार को विदा कर दिया गया। यह अपने आप में उम्मीद का बड़ा आधार है। वुहान में कोरोना का संक्रमण शुरू होने और खत्म होने में पांच महीने का समय लगा है। लेकिन यह तब लगा है, जब शुरुआत में किसी को समझ में नहीं आया कि यह वायरस कैसा है, कैसे फैलता है और इसे कैसे रोका जाए।

अब सारी दुनिया को इसके बारे में पता है। इसकी हर बारीकी और हर चालबाजी डॉक्टर व वैज्ञानिक जान गए हैं। जितने तरह के लक्षण होते हैं उन सबकी पहचान हो गई है। समकालीन दुनिया के महान विचारकों में से एक युआल नोवा हरारी ने पिछले दिनों लंदन के फाइनेंशिएल टाइम्स में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने मजाकिया अंदाज में लिखा था कि इंसान को यह एडवांटेज है कि दुनिया के अलग अलग हिस्सों में फैले कोरोना के स्ट्रेंस आपस में संवाद या सहयोग करके यह तय नहीं कर सकते हैं कि इंसान को कैसे परेशान करना है पर दुनिया भर के डॉक्टर व वैज्ञानिक आपस में संवाद करके तय कर सकते हैं कि कोरोना को कैसे रोकना है। और सचमुच दुनिया भर के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, शोधार्थियों ने अपनी मेधा से और आपसी सहयोग से इसके बारे में लगभग सारी चीजें जान ली हैं।

इसके स्ट्रेंस की पहचान हो चुकी है। एल स्ट्रेन ज्यादा घातक है और एस स्ट्रेन की ताकत कम है। यह सामान्य गरमी से नहीं मरेगा पर अल्ट्रा वायलेट किरणों से मर जाएगा। प्लाज्मा तकनीक से इसका सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। यह अपने दूसरे पूर्वजों जैसे सार्स या मर्स या स्वाइन फ्लू की तरह घातक नहीं है। यह तेजी से फैलता जरूर है पर उतना घातक नहीं है तभी इलाज से मरीजों के ठीक होने की दर तेजी से बढ़ रही है। भारत में ठीक होने वाले मरीजों का औसत 22 फीसदी हो गया है। यह तथ्य है कि दिल्ली में 31 सौ से ज्यादा संक्रमित हुए पर सिर्फ 12 लोग ही वेंटिलेटर पर हैं। ज्यादातर की स्थिति ठीक है, उन्हें मामूली संक्रमण है और घर पर रह कर भी वे ठीक हो सकते हैं।

इस वायरस के संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित यूरोपीय देशों में जीवन पटरी पर लौटने लगा है। इटली और स्पेन दोनों देशों में मृत्यु दर में बड़ी गिरावट हुई है। 14 मार्च के बाद पहली बार दोनों देशों में मरने वालों की दर न्यूनतम स्तर पर पहुंची है। नए मामले आने की संख्या भी कम हो गई है। स्पेन में दो लाख 32 हजार लोग संक्रमित हुए हैं, जिनमें से एक लाख 23 हजार लोग ठीक हो गए हैं यानी 50 फीसदी से ज्यादा लोग रिकवर हो गए हैं और जो 85 हजार के करीब एक्टिव केस अस्पतालों में हैं उनका इलाज आसानी से इनके प्लाज्मा से हो सकता है। इटली में भी दो लाख संक्रमितों में से 66 हजार यानी करीब एक तिहाई लोग इलाज से ठीक हो चुके हैं। जर्मनी में तो एक लाख 58 हजार संक्रमितों में से एक लाख 14 हजार ठीक हो गए हैं और अब सिर्फ 38 हजार लोगों का इलाज चल रहा है। ब्राजील में भी ठीक होने की दर 50 फीसदी है। अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ अन्य देश जरूर इसमें पीछे चल रहे हैं पर उनके यहां भी सुधार शुरू हो गया है।

दुनिया के कई देश हर्ड इम्युनिटी पर काम कर रहे हैं। हर्ड इम्युनिटी का मतलब लोगों में सामूहिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होना है। दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में इसी वजह से लोगों की बीमारी ठीक हुई है। हालांकि यह थोड़ा जोखिम भरा काम होता है पर सरकारें इस पर काम कर रही हैं। कुल मिला कर दवाओं के कांबिनेशन और प्लाज्मा तकनीक से इलाज के साथ साथ हर्ड इम्युनिटी भी एक चीज है, जिसके जरिए कोरोना वायरस से लड़ने और इसे खत्म करने का प्रयास हो रहा है।अमेरिका दो सौ से ज्यादा दवाओं के कांबिनेशन पर काम कर रहा है। इन साझा प्रयासों की वजह से ही दुनिया की संस्थाओं ने इसके खत्म होने का प्रोजेक्शन किया है। भारत के नीति आयोग के बचकाने प्रोजेक्शन को छोड़ें तब भी सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन ने भी इस साल के अंत तक इसके पूरी तरह से खत्म हो जाने का प्रोजेक्शन किया है। उसके मुताबिक मई महीने से ही इसका खत्म होना शुरू हो जाएगा और ज्यादातर देशों में जून-जुलाई तक यह खत्म हो जाएगा।

इसके साथ ही दुनिया भर की सारी प्रयोगशालाओं में इसकी वैक्सीन पर काम चल रहा है। वैज्ञानिकों में जल्दी से जल्दी वैक्सीन लाने की होड़ मची है। ब्रिटेन में इंसान पर परीक्षण चल रहा है तो चीन भी इस मामले में एडवांस्ड स्टेज में है। माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स की फंडिंग से काम कर रहे लैब का कहना है कि उसे एक साल लगेगा पर ज्यादातर लैब्स की ओर से इसके अक्टूबर तक बन जाने और उसी महीने से आम लोगों के लिए उपलब्ध हो जाने का दावा किया जा रहा है। सो, दुनिया में लोगों का शुरुआती डर खत्म हो गया है, हर्ड इम्युनिटी से लोग इस बीमारी से खुद लड़ रहे हैं, इलाज की नई तकनीक सफल हो रही है और दुनिया वैक्सीन की खोज में सफलता के करीब पहुंच गई है। सो, भले थोड़ा जोखिम हो पर यह कहा जा सकता है कि इंसान कोरोना को हराने के करीब पहुंच गया है। इस लड़ाई में जीत अब महज वक्त की बात है।

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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