कश्मीर पर फिर मात

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चीन के जरिए सुरक्षा परिषद में कश्मीर मुदे को उठाने की कोशिश नाकाम हो गई। अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी किए जाने के बाद पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गुहार लगायी थी। इसी सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की मदद से कश्मीर पर औपचारिक सुनवाई किए जाने की मांग की थी लेकिन चीन के अलावा किसी अन्य देश के समर्थन में ना आने पर अनौपचारिक तौर पर जरूर चर्चा हुई लेकिन उसमें किसने या राय व्यक्त की, यह परिषद के रिकार्ड का हिस्सा नहीं होता और इसीलिए किसी तरह से दिशा निर्देश की संभावना भी क्षीण हो जाती है। इससे संबंधित पक्ष बाहर कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं होता। चर्चा का उद्देश्य एक तरह से निरर्थक साबित हो जाता है। पर पाकिस्तान है कि मानता नहीं। एक बार फिर चीन की मदद से नाकाम कोशिश की गयी और दोबारा यहां साफ तौर पर कह दिया गया कि कश्मीर द्विपक्षी मसला है और इसलिए इस पर सुरक्षा परिषद में बात नहीं हो सकती।

कोई विवाद है तो उसे संबंधित देश आपस में वार्ता के जरिये सुलझा सकते हैं। हर तरफ से मात पर मात मिलने के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। बिल्कुल ताजा मसला पाक सरकार के सूचना मंत्रालय से जुड़ा है। मंत्रालय के ट्विटर हैंडिल से एक भारतीय मुस्लिम महिला पत्रकार की इसलिए तारीफ की गई है कि वो मौजूदा सरकार की नीतियों को लेकर तीखी आलोचना करती हैं। तारीफ जिन वजहों को ध्यान में रखकर किया गया है वो एक तरह से किसी देश के भीतर की परिस्थिति में दखलंदाजी जैसा है। पर पाकिस्तान इस तरह अपने लिए उम्मीद की किरण देख रहा है। देश के भीतर सीएए को लेकर जिस तरह आंदोलन की आग भड़क रही है, उसमें अपनी तरफ से पाकिस्तान घी डालने की कोशिश कर रहा है, यह निहायत आपत्तिजनक है। दरअसल दशकों से पाकिस्तान के प्रायोजित कुप्रचार के लिए आसान जरिया बना हुआ था। पर बदली परिस्थितियों में उसके लिए पहले जैसी स्थितियां नहीं के बराबर हैं। कश्मीर में स्थितियां धीरे-धीरे सामान्य होती जा रही हैं।

इंटरनेट की बहाली भी एहतियात के साथ हो रही है। सीमापार से घुसपैठ पहले की तुलना में कम हुआ है। इसीलिए कश्मीर के भीतर आतंकी घटनाएं भी कम होती जा रही हैं। बदली परिस्थितियों में ही आतंकियों को पनाह देने वाले निलंबित डीएसपी देविंदर सिंह तक सुरक्षा एजेंसियां पहुंच पायी हैं। धीरे-धीरे पता चल रहा है कि पाक प्रायोजित आतंकवाद को किस तरह कश्मीर के भीतर देविंदर जैसे पुलिस अफसर भी कामयाब बना रहे थे। इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गयी है। उम्मीद है, बहुत कुछ तस्वीर साफ हो सकेगी। पाकिस्तान की असल पीड़ा यही है। उसकी तरफ से चलाया गया ध्रवीकरण का एजेंडा वक्त के साथ मंद पड़ रहा है। अब यही बौखलाहट उसे कभी सुरक्षा परिषद में मामले को ले जाने के लिए बाध्य करती है तो कभी एक भारतीय पत्रकार की इसलिए तारीफ के लिए मजबूर करती है कि उसका मौजूदा सरकार की नीतियों को लेकर एक ऐसा रुख है जो पाकिस्तान के दिल के बहुत करीब है। यहां तो तय है कि पाकिस्तान अपनी ओछी हरकत से बाज नहीं आएगा। पर मोदी सरकार के लिए अहम यह है कि कश्मीर में जनजीवन पूरी तरह ढर्रे पर लौटाने की रफ्तार तेज हो।

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