उम्दा प्रदर्शन, आगे बेहतरीन की उम्मीद

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ओलंपिक की पदक तालिका में बेशक भारत 47 वें पायदान पर या रहा हो, लेकिन जापान की राजधानी टोयो में कोविड के व्पस चलते एक साल लेट से आयोजित ओलंपिक गेस में इस बार भारत ने अपने 121 साल के इतिहास में सात पदक के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भारत ने उज्ज्वल भविष्य के वादे के साथ टोयो ओलंपिक में अपने सफर का समापन किया है। 16 दिन तक चले इस खेल महाकुंभ में अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, फ्रांस, जर्मनी और इटली स्वर्ण पदकों की संख्या के लिहाज से टॉप टेन देश हैं। औपचारिक रूप से 24 जुलाई से शुरू टोयो ओलंपिक में भारत ने भारोत्तेलक मीराबाई चानू के रजत पदक से शानदार शुरूआत की, जिसके बाद बीच में कुछ कांस्य पदक मिलते रहे लेकिन देश के अभियान का अंत नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक से धूमधड़ाके के साथ हुआ। ट्रैक एवं फील्ड स्पर्धा में भारत को पहला पदक मिला जो 13 साल बाद पहला स्वर्ण पदक भी था।

टोयो ओलंपिक में इस बार हॉकी में 41 वर्षों से चला आ रहा पदक का इंतजार भी खत्म हुआ, भारोत्तेलन में पहला रजत पदक और नौ वर्षों बाद मुकेबाजी में पहला पदक भारत की झोली में आया जबकि बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधू दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं। ज्यादातर पदार्पण कर रहे खिलाडिय़ों ने पोडियम स्थान हासिल किए और एक ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक भी मिले और देश के लिये इतना सब कुछ एक ही ओलंपिक के दौरान हुआ। और यह सब भी उस ओलंपिक में हुआ जिन्हें उद्घाटन समारोह से पहले कोविड-19 महामारी के कारण मुश्किलों से भरे खेल माना जा रहा था। इस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के चलते ही इन्हें एक साल के लिये स्थगित किया गया जबकि ज्यादातर ट्रेनिंग और टूनामेंट का कार्यक्रम बिगड़ गया था। ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धाओं के पहले दिन ही मीराबाई ने देश का पदक तालिका में खाता खोल दिया जो पहले कभी नहीं हुआ था।

मणिपुर की यह भारोत्तेलक चार फीट 11 इंच की है लेकिन उसने 202 किग्रा का वजन उठाकर रजत पदक हासिल किया और दुनिया को दिखा कि आकार मायने नहीं रखता और मायने रखना भी नहीं चाहिए। देश को इसी तरह की जानदार शुरूआत की जरूरत थी। हालांकि बाद में अमित पंचाल, दीपिका कुमारी, मैरीकॉम, विनेश फौगाट आदि जैसे कुछ प्रबल दावेदार प्रभाव डाले बिना ही बाहर हो गए जिसमें सबसे बड़ी निराशा 15 सदस्यीय मजबूत निशानेबाजी दल से मिली। सिर्फ सौरभ चौधरी ही फाइनल्स में जगह बना सके और वह भी पोडियम तक नहीं पहुंच सके जिससे उनकी तैयारियों पर काफी सवाल उठाये गये। किसी के पास भी स्पष्ट जवाब नहीं था कि या गलत हुआ। पर इसके बाद गुटबाजी, अहं के टकराव और मतभेदों की बातें सामने आने लगे।

महिला खिलाडिय़ों ने भारतीय दल के अभियान की जिमेदारी संभालना जारी रखा जिसमें मुकेबाजी रिंग में असम की 23 साल की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) ने चार अगस्त को कांस्य पदक हासिल किया। अगले ही दिन रवि कुमार दहिया ओलंपिक में रजत हासिल करने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बने। वह ओलंपिक में पदार्पण पर ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी बने। मनप्रीत सिंह और उनकी टीम ने नई पीढ़ी के लिये देश में हॉकी के शिक्तर से फलने फलने के बीज बो दिये, जिसने सिर्फ आठ स्वर्ण पदक जीतने की दास्तानें सुनी थीं और खेल की गिरावट को देख रही थी। महिला हॉकी टीम ने भी शानदार प्रदर्शन किया। अब 2024 ओलंपिक में भारत के और भी शानदार प्रदर्शन की उमीद बन गई है।

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