आर्थिक इंजनों में उभरती दरार

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भले ही अर्थशास्त्रियों को उम्मीद हो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के दोबारा खुलने से आया उछाल आने वाली तिमाहियों में भी जारी रहेगा, लेकिन इसकी मजबूती व अवधि पर दो कारणों से सवाल उठ रहे हैं: चीन और अमेरिका। ये दो महाशक्तियां वैश्विक वृद्धि की इंजन हैं, लेकिन अब उनके आर्थिक इंजनों में दरार उभर रही है।

पिछले पांच वर्षों में अकेले चीन की ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में एक तिहाई हिस्सेदारी रही। आज चीन में 1% अंक की गिरावट से जीडीपी की वैश्विक वृद्धि में एक तिहाई अंक की कमी आ जाती है, इसलिए जब बीजिंग सख्ती दिखाए तो दुनिया को चिंता करनी चाहिए। टेक सेक्टर पर हो रही कार्रवाइयों से ऐसा हो रहा है।

हाल के वर्षों में जहां कमोडिटी और विनिर्माण क्षेत्रों के पुराने अर्थव्यवस्था उद्योग कर्ज में डूबकर कमजोर हुए हैं, टेक सेक्टर पर केंद्रित नई अर्थव्यवस्था से चीन की बढ़त बनी रही है। पिछले एक दशक में, चीन की जीडीपी में डिजिटल अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी चौगुनी होकर 40% के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। लेकिन बड़ी टेक कंपनियां वहां सत्ताधारी पार्टी को ऐसे समय में चुनौती दे सकती हैं, जब वह समाजवादी मूल्यों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। एक दशक पहले चीन में 10 बिलियन डॉलर संपत्ति वाला कोई उद्योगपति नहीं था, आज करीब 50 हैं।

पिछले एक साल में चीन ने 238 नए अरबपति पैदा किए। ज्यादातर दौलत टेक से कमाई गई। इस कार्रवाई को एकाधिकार रोकने या बिग डेटा पर नियंत्रण हासिल करने के सरकार के प्रयासों की दिशा में अच्छा कदम माना गया है। हालांकि, यह दौलत, असमानता के अभूतपूर्व विस्फोट पर कम्युनिस्ट पार्टी की हैरान करने वाली प्रतिक्रिया भी है।

चीन पिछले 4 दशकों में आर्थिक महाशक्ति बना क्योंकि सरकार ने पूंजीवादियों को वृद्धि लाने की छूट दी। लेकिन कभी-कभी सरकार के प्रबंधक पूंजीवाद पर लगाम कसने के कदम उठाते रहे। इस अभियान के साथ अक्सर अर्थव्यवस्था में मंदी आई लेकिन ज्यादा नुकसान से पहले ही खत्म हो गई। करीब एक दशक पहले बीजिंग ने बड़ा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया, जिससे कई अमीर उद्योगपति गिरे और जल्द टेक से जुड़े पूंजीपतियों की नई नस्ल ने उनकी जगह ले ली।

इस बार दाव बड़ा लग रहा है। ऐसा कोई सेक्टर नजर नहीं आ रहा, जो डिजिटल अर्थव्यवस्था को लगे झटके की भरपाई कर पाए। नुकसान स्पष्ट दिख रहा है। जबसे कार्रवाई शुरू हुई है, चीनी टेक कंपनियों का मार्केट कैप करीब एक ट्रिलियन डॉलर गिर गया है। नई यूनिकॉर्न कंपनियों बनना बंद हो गया है। टेक दिग्गजों की शक्ति और डेटा को नया सोना मानने की व्यापक धारणा को देखते हुए स्पष्ट नहीं है कि क्या अब बीजिंग पीछे हटने तैयार है?

अमेरिका दुनिया का दूसरा आर्थिक इंजन है, जो पिछले 5 वर्षों में दुनिया की 20% वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। कई पूर्वानुमानकर्ता मान रहे हैं कि महामारी के दौरान अमेरिकियों ने जो 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त बचत की है, वह अर्थव्यवस्था के खुलने पर खर्च होगी, जिससे बड़ा उछाल मिलेगा। हालांकि उपभोक्ताओं ने अतीत में ऐसा व्यवहार नहीं किया। इससे पहले अमेरिका में ऐसी बचत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान देखी गई। युद्ध के बाद अमेरीकियों ने इसे खर्चने की बजाय, वर्षों बचाकर रखा। अभी यही परिस्थितियां हैं।

अमेरिकियों ने प्रोत्साहन में मिली राशि में एक-तिहाई ही खर्च करना चुना है। बाकी बचा रहे हैं या कर्ज चुकाने में दे रहे हैं। नए डेल्टा वैरिएंट से और सावधानी बढ़ी है। अमेरिका भी एक ‘राजकोषीय टीले’ की ओर जा रहा है। आने वाले महीनों में नए सरकारी खर्च में गिरावट आएगी। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को धीमी गति से उबरने के लिए उपभोग में आने वाली अतिरिक्त वृद्धि से उम्मीदें हैं। लेकिन इतिहास उनके पक्ष में नहीं है। प्रोत्साहन से मिली तेजी के बाद अक्सर वृद्धि जल्द घटने लगती है।

पिछले कुछ वर्षों में आधे से ज्यादा वैश्विक वृद्धि के लिए जिम्मेदार रहे चीन और अमेरिका के इंजनों में संकट के संकेत दिख रहे हैं। जबकि वित्तीय बाजारों में इसपर बहस हो रही है कि महंगाई में इजाफा क्षणिक है, अब इस संभावना पर भी विचार करने का वक्त है कि क्या आर्थिक उछाल उम्मीद से कहीं ज्यादा क्षणिक साबित होगा।

रुचिर शर्मा
(लेखक इंटरनेशनल इन्वेस्टर और आर्थिक मामलों के जानकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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