अब सोरेन की सरकार

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चुनाव नतीजों से बहुत पहले झारखण्ड की सियासत पर पकड़ रखने वाले मान रहे थे कि यह राज्य भी भाजपा के हाथ से चला जाएगा। नतीजों में वही आकलन सच साबित हुआ। गैर आदिवासी को राज्य की कमान सौंपने सा निर्णय आलासमान सो भारी पड़ गया। झारखण्ड से नये मुमयंत्री झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के हेमेन्द्र सोरेन होंगे। बिहार से सटा और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर झारखण्ड के हाथ से फिसलने के बाद अब भाजपा का देश की 42 फीसदी आबादी के तहत आने वाले 16 राज्यों में राज रह गया है। इन दो वर्षों में हरियाणा को जोड़तोड़ से सत्ता बचा लेने के मामले को अलग करके देखें तो भाजपा राज्य दर राज्य गंवाती जा रही है, जबकि कांग्रेस ने महागठबंधन में छोटी भूमिका को स्वीकारते हुए इधर बड़ी राजनीतिक ताकत प्राप्त की है। महाराष्ट्र में तो गठबंधन के तौर पर लड़ी और जीती भाजपा के साथी शिवसेना को ही एनसीपी-कांग्रेस ले उड़ी। झारखण्ड के नतीजों से महागठबंधन की ताकत एक बार फिर विपक्ष को समझ में आने लगा है।

विशेष रूप से कांग्रेस यह समझ गयी है कि पहली जरूरत भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने अपनी शीर्ष भूमिका में लौटने का इरादा जता दिया है। हाल में सीएए-एनआरसी को लेकर उभरे असंतोष को पार्टी अपने बयानों-धरना प्रदर्शनों से लीड़ कर रही है। भाजपा के लिए कांग्रेस का आंदोलनों के जरिये उभरना भविष्य की चुनौतीपूर्ण आहट है। झारखण्ड के चुनाव में यह भी स्पष्ट हुआ कि पार्टी अति आत्मविश्वास के कारण अपने गठबंधन के साथियों को भी लेकर आगे नहीं बढ़ा पायी। आजसू और लोजपा जो पिछले चुनाव में साथ रहे थेए इस बार सीटों के मतभेद को लेकर अलग-अलग लड़े। नतीजा सामने है। लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा अपने साथी दलों के साथ 51 फीसदी वोट पायी थी, वही विधानसभा चुनाव में 34 फीसदी के आसपास सिमट गयी। नतीजा यह हुआ कि 25 सीटों पर ठिठक गई जबकि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को 27 सीटें मिलीं। वैसे गठबंधन ने 47 सीटें जीतीं। रघुवर दास के तौरतरीके को लेकर भी आम जनता में आक्रोश था। खासकर लोगों को अपनी बात समझा भी नहीं पायी।

इसके अलावा गैर आदिवासी चेहरा को लेकर उन्हीं आदिवासियों ने राज्य के चुनाव में भाजपा को वोट नहीं कियाए जिन्होंने लोकसभा में भाजपा पर विश्वास किया था। वाकई अवसर था भाजपा के पास। रघुवर दास राज्य के पहले मुयमंत्री रहे, जिसने पूरा कार्यकाल बिताया। अब हेमेन्द्र सोरेन नये मुखिया होंगे। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों के लिए रोजगार जुटाने की होगी। राज्य में तकरीबन 10 हजार उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं। इसके अलावा राज्य में बलात्कार और अन्य प्रकार की हिंसा भी एक बड़ी समस्या रही है। मॉब लिचिंग की घटनाएं इसी राज्य में सुर्खियां बनी थीं। इन सारी समस्याओं को नई सरकार किस तरह संभालती है, यह देखने वाली बात होगी। उम्मीद रहेगी कि संसाधनों में समृद्ध यह राज्य पहले अपने निवासियों की समृद्धि के लिए भी काम आये। आदिवासियों- पिछड़ों के जिस उम्मीद को लेकर झामुमो गठबंधन पर भरोसा किया है, वो पूरा हो। हालांकि राजद भी गठबंधन का हिस्सा है। उसके संस्थापक नेता एवं अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में जेल में बंद हैं। बदले निजाम का आगे चलकर लालू यादव के लिए क्या भूमिका होती है, इस पर भी देश की नजर होगी।

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