उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले भाजपा के अंदर दबाव की राजनीति की पहली बाजी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जीत ली है। उन्होंने 18 साल तक नरेंद्र मोदी के करीब रहे पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा को अपनी सरकार में मंत्री नहीं बनाया। प्रधानमंत्री मोदी चाहते थे कि एके शर्मा योगी सरकार में मंत्री बनें और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ तालमेल बनाते हुए सरकार का कामकाज संभालें। इसका मकसद चुनाव से पहले सरकार के बारे में बन रही निगेटिव धारणा को बदलना था। लेकिन इस बात को योगी ने दूसरे अंदाज में लिया। उनको लगा कि केंद्रीय नेतृत्व उनको कंट्रोल करना चाहता है और सरकार में सीधा हस्तक्षेप बढ़ाने के प्रयास के तौर पर एके शर्मा को भेजा गया है।
योगी को यह भी लगा कि अगर वे इस समय दबाव में झुकते हैं तो टिकटों के बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उनकी घोषणा तक सब जगह उनको समझौता करना होगा। इसलिए उन्होंने शर्मा का रास्ता रोक दिया। उनको कई तरह से समझाने के प्रयास हुए लेकिन वे शर्मा को मंत्री बनाने पर राजी नहीं हुए। सो, अंत में शर्मा को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया। प्रदेश भाजपा में पहले से 16 उपाध्यक्ष हैं और किसी का कोई मतलब नहीं है। इसलिए एके शर्मा भी बेमतलब उपाध्यक्ष रहेंगे। उनको एमएलसी जरूर बना दिया गया है और आईएएस की दो साल की नौकरी कुर्बान करने पर इतना भी नहीं होता तो ज्यादती हो जाती। बहरहाल, यह पहला दौर था, जो योगी ने जीता है। पर इसके बाद ऐसे कई दौर आएंगे। अब टिकट बंटवारे का घमासान छिड़ेगा। आगे की मुश्किल राजनीति को देखते हुए योगी अपनी जगह अड़ेंगे तो केंद्रीय नेतृत्व अपनी जगह। केशव प्रसाद मौर्य इसमें अपने लिए संभावना देख रहे हैं इसलिए वे भी अड़ेंगे।
ये भी हकीकत है कि भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले राज्यों में भले पार्टी के अंदर खूब तिकड़म और दांव-पेंच चल रहे हैं पर ऐसा लग रहा है कि कोई भी मुख्यमंत्री बदला नहीं जाएगा। तभी यह हैरान करने वाली बात है कि जब पार्टी आलाकमान यह तय किए हुए है कि किसी मुख्यमंत्री को हटाया नहीं जाएगा फिर क्यों पार्टी के अंदर घमासान छिड़ा? भाजपा के एक जानकार नेता ने कहा कि इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला तो यह कि पार्टी आलाकमान का इकबाल कम हुआ है, जिससे प्रदेशों के नेता स्वतंत्र हुए हैं या दूसरा यह कि पार्टी आलाकमान ने ही प्रदेशों में मजबूत हो रहे क्षत्रपों को उनकी जगह दिखाने और उनको अस्थिर करने का काम योजनाबद्ध तरीके से कराया। बहरहाल, सबसे ज्यादा अस्थिर कुर्सी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की दिख रही थी। लेकिन वहां भी पार्टी आलाकमान ने साफ कर दिया कि उनको नहीं हटाया जाएगा। उलटे पार्टी के महासचिव और प्रभारी अरुण सिंह ने यह भी कहा कि येदियुरप्पा के खिलाफ बयान देने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
असल में अरुण सिंह की बेंगलुरू यात्रा के दौरान येदियुरप्पा ने अपनी ताकत दिखाई। पार्टी के करीब 65 विधायकों ने बिना किसी अगर-मगर के उनका समर्थन किया। मुख्यमंत्री के खिलाफ छोटी सी बगावत का इतना फायदा पार्टी आलाकमान को हुआ कि येदियुरप्पा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहेंगे तब वे पद छोडऩे को तैयार हैं। कर्नाटक से उलट उार प्रदेश में खबर है कि एक-तिहाई विधायकों ने ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का समर्थन किया पर पिछले चार साल में योगी की बनी विराट हिंदू नेता की छवि के आगे पार्टी नेतृत्व मजबूर है। चुनाव से पहले उनको बदलना संभव नहीं है। इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रभारी राधामोहन सिंह दोनों ने उनके कामकाज की जम कर तारीफ की। सो, यूपी में भी तय हो गया है कि मुख्यमंत्री नहीं बदला जाएगा।
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लडऩे का पेंच है लेकिन पार्टी उनको बनाए रखने के मूड में ही है। ज्यादा संभावना है कि वे गंगोत्री सीट से उपचुनाव लड़ेंगे। मध्य प्रदेश में भी कई नेताओं ने बहुत भागदौड़ की है लेकिन अंत में सबने कहा कि शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे। त्रिपुरा का मामला अब भी उलझा हुआ है लेकिन दो वजहों से बिप्लब देब की कुर्सी पक्की मानी जा रही है। पहला कारण तो यह है कि पार्टी के पास वहां कोई दूसरा चेहरा नहीं है, जो दो साल में कमाल कर सके और दूसरा कारण यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अब भी बिप्लब के पक्ष में बताए जा रहे हैं। बहरहाल, तीरथ सिंह रावत और बिप्लब देब का मामला अलग है क्योंकि ये दोनों आलाकमान की कृपा के मोहताज हैं परंतु येदियुरप्पा, योगी और शिवराज ने अपना दम दिखाया है और तभी विरोधी ठंडे हुए हैं।
हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)