भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से होगी मोक्ष की प्राप्ति

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वरुथिनी एकादशी व्रत से होगी भाग्य में उन्नति

भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मग्रन्थों में हर माह के विशिष्ट तिथि की खास पहचान है। सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है। वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि की अपनी विशेष महत्ता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार वरूथिनी एकादशी के दिन, भक्त भगवान वामन की पूजा और अर्चना करते हैं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। शाब्दिक अर्थ में, वरुथिनी का अर्थ है ‘संरक्षित’ और ऐसा माना जाता है कि भक्तगण विरुथिनी एकादशी का व्रत करके विभिन्न नकारात्मकताओं और बुराइयों से सुरक्षित हो जाते हैं। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि वरुथिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 6 मई, गुरुवार को दिन में 2 बजकर 11 मिनट पर लगेगी जो कि 7 मई शुक्रवार को दिन में 3 बजकर 33 मिनट तक रहेगी।

जिसके फलस्वरूप 7 मई शुक्रवार को यह व्रत रखा जाएगा। वरूथिनी एकादशी का पालन करने का महत्व कई पुराणों में वर्णित है और भगवान कृष्ण भी कहते हैं कि भक्त अपने बुरे भाग्य को बदल सकते हैं और इस एकादशी का पूरे अनुष्ठान और उपवास के साथ पालन करके मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर अपने जीवन में समृद्धि, प्रचुरता और सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इस विशेष दिन पर दान और पुण्य के विभिन्न कार्य करने से, भक्त अपने पूर्वजों और देवताओं के दिव्य आशीर्वाद से धन्य हो जाते हैं। व्रत का विधान-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए।

गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् कामदा एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि बनी रहे। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

– ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

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