क्या अराजकता में आएगी कमी ?

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सोशल और डिजिटल मीडिया पर नए नियमों को हालिया अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से जोड़कर देखा जाए तो विवादों की बजाय सार्थक विमर्श शुरू हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मॉरिसन ने प्रधानमंत्री मोदी से फेसबुक व गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के खिलाफ लड़ाई में भारत का सहयोग मांगा। उससे पहले पॉप स्टार रिहाना और ग्रेटा के ट्वीट के बाद किसान आंदोलन में टूलकिट की डिजिटल साजिश के नाम पर कई लोगों की गिरफ्तारियों के साथ ट्विटर के साथ विवाद हुआ।

पहले मामले का संबंध टेक कंपनियों के नियमन, टैक्स वसूली और रेवेन्यू शेयरिंग से है। दूसरा मामला अभिव्यक्ति की आजादी, पुलिसिया दमन और सोशल मीडिया के राजनीतिक इस्तेमाल से जुड़ा है। ऑस्ट्रेलिया भारत की तरह लोकतांत्रिक देश होने के साथ कॉमनवेल्थ का सदस्य है, जबकि भारत टेक कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार भी है। ऑस्ट्रेलिया ने इन कंपनियों की चौधराहट से डरे बगैर कठोर कानून से परंपरागत मीडिया के लिए आमदनी के नए रास्ते खोल दिए।

जबकि भारत सरकार के दोनों मंत्री नए नियमों के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर चुप्पी ही साधे रहे। आठ साल पहले यूपीए सरकार के दौर में भारत इस डिजिटल नियमन की महाक्रांति का अगुआ बन सकता था। सन 2012 से 2014 के दौर में दिल्ली हाईकोर्ट ने के एन गोविंदाचार्य की याचिका में महिलाओं और बच्चों की डिजिटल जगत में सुरक्षा और इन कंपनियों से टैक्स वसूली के लिए अनेक आदेश जारी किए थे।

इन्हें लागू करने के लिए फेसबुक, गूगल और ट्विटर कंपनियों को भारत के कानून के अनुसार शिकायत अधिकारी नियुक्त करना पड़ा। यूपीए और उसके बाद एनडीए सरकार की ढिलाई का फायदा उठाकर इन कंपनियों ने अपने शिकायत अधिकारी अमेरिका और यूरोप में नियुक्त कर दिए। इन टेक कंपनियों को दी गई ढील का आज पूरे समाज और देश को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

इन नए नियमों में 8 साल पुरानी गलतियों को दुरुस्त करने की कोशिश है। तीन साल के लंबे विमर्श के बाद लाए गए इन नियमों को लागू करने के लिए इन कंपनियों को तीन महीने का समय फिर मिल गया है। नए नियमों के अनुसार चीन और अमेरिका की टेक कंपनियां जब भारत में अपने शिकायत अधिकारी, नोडल अधिकारी और कंप्लायंस अधिकारियों की नियुक्ति करेंगी तो समाज, प्रशासन और अर्थव्यवस्था की तस्वीर ही बदल जाएगी।

भारत में जब अधिकारी नियुक्त होंगे तो फिर इन कंपनियों को भारत के सभी कानूनों का पालन करना ही होगा। ई-कॉमर्स, पेमेंट, बैंक और सरकारी डाटा रखने के लिए भारत में डाटा सर्वर लगेंगे, जिससे रियल एस्टेट में राहत के साथ युवाओं के लिए रोजगार भी बढ़ेंगे। भारत में सोशल मीडिया के माध्यम से लोन, डेटिंग, पॉर्नोग्राफी और साइबर ठगी आदि के अपराध बढ़ते जा रहे हैं।

ऐसे अधिकांश मामलों पर पुलिस में शिकायत ही दर्ज नहीं हो पाती। विदेशी कंपनियों के ऑफिस जब भारत में होंगे तो पुलिस को जांच पड़ताल और अदालतों को फैसला लेने में आसानी होगी, जिससे दोषियों को जल्द दंड मिलेगा। ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर भारत के मीडिया संगठन ने गूगल से 85 फीसदी आमदनी वितरण की मांग की है।

सौ करोड़ वाले स्मार्टफोन के देश में जब विदेशी कंपनियों के अधिकृत अधिकारी रहेंगे तो फिर उन्हें आयकर और कंपनी कानून के तहत भारी भरकम टैक्स भी देना होगा। मिसाल के तौर पर वॉट्सएप और फेसबुक के बीच जो डाटा का सामूहिक लेनदेन हो रहा है, उसकी कमर्शियल वैल्यू पर जब टैक्स का मूल्यांकन होगा तो उससे भारत सरकार के साथ राज्यों को भी अरबों रुपए के टैक्स की आमदनी होगी। नए नियमों से परंपरागत बाजार, लघु और मध्यम उद्योगों को ताकत मिलेगी। जिससे मंदी में कमी के साथ आर्थिक असमानता भी कम होगी।

आलोचकों के अनुसार नए नियमों से डिजिटल मीडिया के दमन के साथ लोगों की निजता का हनन भी होगा। संविधान निर्माताओं ने कहा था कि संविधान कैसे काम करेगा यह इस बात पर निर्भर है कि भविष्य में राजनेता इसका कैसे इस्तेमाल करते हैं? राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने के मामले हों या पुलिस को गिरफ्तारी के अधिकार।

इन अधिकारों का सभी दल दुरुपयोग करते हैं, उसके बावजूद, उन कानूनों को ख़त्म नहीं किया जा सकता। नए नियमों के तहत मैसेजों के स्रोत की जानकारी देना कंपनियों यानी इंटरमीडियरी के लिए जरूरी हो गया है। पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों में चुनाव की तारीख की घोषणा हो गई है। पिछले चुनावों की तर्ज पर इन राज्यों के चुनाव में भी सभी पार्टियों की आईटी सेना, वॉट्सएप ग्रुप के माध्यम से चुनावी टूलकिट पंहुचाने में जुट गई हैं।

इन आईटी हरावल दस्तों का न तो कोई रजिस्ट्रेशन होता है और ना ही उम्मीदवार और पार्टियों द्वारा इनके खर्चों का ब्यौरा चुनाव आयोग को दिया जाता है। अक्टूबर 2013 में चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर गाइडलाइंस जारी की थी। नए नियमों के तहत उन गाइडलाइन्स का सही अनुपालन हो तो सभी दलों की आईटी सेना के नेटवर्क और उनके मैसेजिंग के सोर्स का खुलासा हो जाएगा। इससे नए नियमों को सार्थकता मिलने के साथ डिजिटल अराजकता में भी कमी आएगी।

विराग गुप्ता
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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