टीका लगवान जरूरी काम

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जितनी जल्दी हो सके ये टीका लगवा लें। साइंसदानों ने जान पर खेलकर इंसानी नस्ल को बचाने के लिए ये टीका बनाया है। तीसरी लहर को रोकने का सिर्फ वैसीनेशन ही जरिया नजर आता है। सोचकर देखिए कि आप महज टीका लगवाकर कितना बड़ा काम कर रहे हैं। फिर बड़ों को तो अपने घरों के बच्चों के लिए सबसे पहले आगे आना चाहिए और खुद को टीका लगवाना चाहिए। दूसरों को भी समझाइए कि टीका यों जरूरी है। हमें टीकाकरण एक मुहिम की तरह चलाना होगा। अभी जितने लोगों को रोजाना टीका लग रहा है, उसे कई गुना बढ़ाना होगा। क्योंकि दूसरी लहर, पूरी दुनिया में पहली लहर से ज्यादा खतरनाक रही है, कई गुना ज्यादा। ऐसे में तीसरी लहर से पहले हमें मुकम्मल तैयारी करनी ही होगी। बड़ी उम्र के लोग वैसीन की जिम्मेदारी समझें। वरना जब बच्चे संक्रमित होने शुरू होंगे, तब हम परेशान हो जाएंगे। इस मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए हमें उन जगहों पर गौर करने की जरूरत है, जहां कम पढ़ेलिखे या कम जागरूक लोग हैं। मेरा मतलब गांवों की पंचायत तक से है। उनसे कहिए कि भाई चौपालों पर बैठकर समझाओ कि टीका जरूरी है। परिवार की खैरियत का सोचिए, आसपड़ोस के लोगों को टीकाकरण के लिए तैयार कीजिए। झिझको मत।

मोहल्लों की कमेटी और सोसायटी भी आगे आएं। अब देखिए, दूसरी लहर में बच्चों में कोविड के मामले तेजी से बढ़े। पहले छोटे-छोटे बच्चों के स्कूल छूटे, फिर प्यारे-प्यारे दोस्त। अब खतरनाक बीमारी का बढ़ता डर। यह उनके लिए बड़ी तकलीफ है। बच्चों की जिंदगी में पहले ही अकेलापन आ गया था, लेकिन अब तो इंतहा हो गई है। इसलिए तीसरी लहर में उन्हें महफूज रखने की बड़ी जिम्मेदारी अब हमारी है। इसका सबसे आसान तरीका है, ज्यादा से ज्यादा लोगों का वैसीनेशन। जरा सोचिए, 7-8 साल के बच्चों का आइसोलेशन में रहना, ऑनलाइन पढ़ाई करना। सवाल यह है कि ऐसे वक्त और माहौल में ये बच्चे कैसे बड़े होंगे? बिना किसी इंसानी स्पर्श के साथ बड़े होते ये बच्चे… ये मुश्किल है। खुदा न करे इस समय किसी का बच्चा अगर बीमार पड़ गया तो उसे अकेले कैसे रखेंगे। इतना-सा बच्चा, वो भी मां-बाप से दूर, भाई-बहन उसके करीब नहीं आ सकतेज् यह मंजर सोचकर ही रूह में सिहरन उठ जाती है। पूरी जनरेशन पर असर पड़ेगा इसका। सिर्फ बच्चों को महफूज रखने की ही बात नहीं की जा सकती है, बल्कि टीके पर जोर होना चाहिए ताकि वे वाकई महफूज रहें। हमारे मुंबई के डॉ. जलील पारकर को ही देख लीजिए- वे खुद कोविड से गुजरे हैं। ये लोग तजुर्बे से कह रहे हैं कि टीका सबसे जरूरी है।

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया रोज कुछ न कुछ बता रहे हैं। हमें उनकी बात सुननी चाहिए। टीके को लेकर गलतफहमियां दूर करनी होंगी। हमें लोगों से अपील करनी चाहिए कि गांव से मेडिकल वैन्स को वापस मत भेजिए। डॉटर्स की बात सुनिए। सती से कोई कानून थोपा नहीं जा सकता है, यह हमें ही समझाना होगा। तरीका जो भी हो, बस टीके के लिए लोगों को अवेयर करें। भोपाल की आरुषि संस्था को देखिए, उन्होंने झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए मुश्किल वत में बेड और ऑक्सीजन का इंतजाम किया। क्योंकि इन्हें अस्पताल में जगह मिलना मुश्किल था। यह संस्था सिर्फ दिव्यांग बच्चों तक सीमित नहीं रही। सिख कम्यूनिटी ने कितनी बड़ी मिसाल पैदा की। लंगर से लेकर इलाज के लिए बेड तक जुटाए… कहीं भी जात-पात का सवाल नहीं।

हमें भी ऐसे ही अपने दायरे खोलने होंगे।’ हालांकि एक बड़ा सवाल है कि लोग वैसीन के लिए तैयार हो भी जाएं तो या उन्हें वैक्सीन मिल पाएगी? हमें इस बात का पुता इंतज़ाम करना चाहिए कि जल्द से जल्द सबको वैसीन मिले। कुछ कुर्बानियां वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को भी देनी होंगी। उन्हें हर हाल में उत्पादन बढ़ाना होगा। ‘ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम आगे आकर वैक्सीन लगवाएं। योंकि ये हमारी जिंदगी है। हर काम के लिए सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता है। हम ये नहीं कह सकते हैं कि सरकार आएगी, तब ही हम जिंदा रहेंगे। हमें अपने बच्चों, जिंदगी, परिवार, आस-पड़ोस, गांव और शहर के लिए टीका लगवाना है। तीसरी लहर रोकने के लिए सिफऱ् एक ही तरकीब है, और वह है – टीकाकरण।’

गुलजार
(लेखक देश के जाने-माने साहित्यकार और गीतकार हैं, जनहित में उनके ये विचार हैं)

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