समय सामूहिक याददाश्त खो जाने का ?

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राज्यसभा में जया बच्चन ने बयान दिया है कि फिल्म उद्योग को गटर कहने वाले लोग ‘उसी थाली में छेद कर रहे हैं, जिसमें वे खाते हैं’। बॉलीवुड में कुछ लोग ड्रग्स का सेवन करते हैं, इस तरह की चर्चा भी हुई। शिक्षा परिसर में भी ड्रग्स ली जा रही है। भावी पीढ़ियों को बिगाड़ने का षड्यंत्र रचा गया है। वर्तमान में माता-पिता की जवाबदारी बढ़ गई है। उन्हें निगरानी भी करनी है कि उनकी संतान ड्रग्स का सेवन नहीं करें। सरकारी नारकोटिक्स विभाग में रिश्वतखोरी से ड्रग्स का कारोबार चल रहा है।

प्रांतीय नारकोटिक्स विभाग का एक काम सिनेमाघर में मनोरंजन कर की अदायगी पर निगरानी रखने का भी है। दरअसल विभाग का काम केवल अवैध नशीले पदार्थ बेचने वालों को पकड़ने का होना चाहिए। भारत एकमात्र देश है, जहां मनोरंजन कर है। हम खुशकिस्मत हैं कि अभी तक सांस लेने पर कोई टैक्स नहीं लगा।

‘भाभी जी घर पर हैं’ हास्य कार्यक्रम के एक एपिसोड में बी.एस.टी टैक्स लगाए जाने का संवाद था। सरकारी अधिकारी एक मशीन से यह ज्ञात करता है कि कौन कितना बोल रहा है। इस वाचाल देश में सचमुच बीएसटी लागू हो जाए, तो प्रतिदिन करोड़ों रुपए की आय सरकार को हो सकती है। यह विचारणीय है कि देश की कोरोना व गिरती जीडीपी वाले गंभीर विषयों पर लोकसभा- राज्यसभा में विचार नहीं किया जा रहा है।

हमेशा चर्चा में बने रहने के घातक नशे से पीड़ित एक कलाकार की बकबक पर इतना ध्यान दिया जा रहा है। लाइमलाइट में बने रहना एक भयावह नशा है। मुंबई फिल्म उद्योग को पाकिस्तान कहने वाले को केंद्र सरकार सुरक्षा प्रदान कर रही है। 11 जवान उसकी रक्षा कर रहे हैं। हमारी सरहदों की रक्षा करने वाले वीर, केमिकल लोचे से ग्रस्त कलाकार की रक्षा कर रहे हैं ! यह उनके प्रशिक्षण और साहस का अपमान है।

कुछ वर्ष पूर्व मराठी भाषा में बनी फिल्म ‘कोर्ट’ के निर्देशक चैतन्य तम्हाने की आयु उसे बनाते समय मात्र 25 वर्ष की थी। कथासार इस तरह है कि एक लोकप्रिय जन गायक पर मुकदमा कायम किया जाता है। जनता का कवि और नुक्कड़ गायक दलित नारायण कामले पर आरोप लगाया जाता है कि उसके जन जागरण के गीतों के प्रभाव में आकर एक गटर सफाई कर्मी ने आत्महत्या की है। सच्चाई यह है कि गटर साफ करने वाले कर्मचारी को दस्ताने और मास्क नहीं दिए गए थे।

गटर साफ करते समय गटर की ज़हरीली गैस के कारण उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु का दोष दलित गायक पर लगाकर व्यवस्था एक तीर से दो शिकार कर रही है। दलित जन गायक की लोकप्रियता से व्यवस्था डरने लगी है। उन्हें भय था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ यह कोई ऐसा आंदोलन खड़ा कर सकता है कि सरकार गिर सकती है। गटर साफ करने वालों की सुरक्षा नहीं करने के अपराध बोध से भी सरकार बचना चाहती है।

एक खबर के मुताबिक औसतन हर पांचवें दिन किसी न किसी महानगर में एक गटर सफाई कर्मी की मृत्यु ज़हरीली गैस से हो जाती है। यह भयावह यथार्थ है। गटर कर्मचारी को दस्ताने और ऑक्सीजन मास्क दिए जाने पर इस तरह की दुर्घटना टाली जा सकती है। संभव है कि सुरक्षा किट खरीदने का बजट पास किया गया है परंतु वह धन नेताओं की जेब में जा रहा है।

एक ऐनिमेशन फिल्म मे जानवरों की एक सभा का दृश्य प्रस्तुत करता है कि जानवर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि अपने को सुधारने के विकास पथ पर चलते हुए वह कमजोर और परजीवी हो गए हैं। यह सच है कि आदिम काल में वे एक दूसरे से लड़ते थे परंतु भाईचारे के भाव से संचालित होते-होते उनकी मारक शक्ति क्षीण हो गई है। वे अपने पुराने दिनों में लौटना चाहते हैं। यह बात हमें फिल्मकार सईद अख्तर मिर्जा की किताब ‘मेमोरी इन द एज ऑफ एम्नेशिया’ की याद दिलाती है। क्या वर्तमान समय सामूहिक याददाश्त खो जाने का समय है? फिल्म विवादों में: अमेरिका की वॉल्ट डिज्नी ने ‘मुलान’ नामक कथा फिल्म बनाई है। चीन के एक क्षेत्र में अल्पसंयक समुदाय रहता है। इस स्थान और समुदाय की लोक कथा को ‘द बैलाड ऑफ मुलान’ कहा जाता है। फिल्म के प्रारंभ में आठ चीनी लोगों को लोक कथा एवं मुलान नामक स्थान की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद दिया है? या संकीर्णता विश्वव्यापी व्याधि बन चुकी है। ज्ञातव्य है कि हिटलर का यहूदी विरोध जर्मनी तक सीमित था। इसी नफरत से विश्वयुद्ध समाप्ति पर यहूदियों ने अपने लिए स्वतंत्र देश मांगा। जबकि सदियों से वे अनेक स्थानों पर रहे हैं। इसे पश्चिम ने समर्थन दिया और यूं इजराइल की स्थापना हुई। उस स्थान पर सदियों से रहने वाले फिलिस्तीनियों को खदेड़ दिया गया।

इन लोगों ने गोरिल्ला युद्ध छेड़ा। आधुनिक आतंकवाद का आरंभ इजरायल की स्थापना के बाद प्रारंभ हुआ। जिस भू-भाग को इजरायल का नाम दिया गया, उसका आधार एक प्राचीन ग्रंथ में दिया गया छोटा सा विवरण मात्र था। जवाहरलाल नेहरू ने मायथोलॉजी के आधार पर इजराइल स्थापना का विरोध किया था। अनेक बुद्धिजीवियों ने नेहरू का समर्थन किया कि मायथोलॉजी के आधार पर इस तरह के निर्णय न हों। तर्कसम्मत विचार का विरोध संभवत: हर काल खंड में किया गया है। वर्तमान को उसका स्वर्ण काल माना जा सकता है। ‘मुलान’ में स्थान को स्थापित करने के लिए मात्र एक विहंगम शॉट है। अभी अनेक फिल्मकार न्यूजीलैंड में शूटिंग कर रहे हैं वहां के नागरिक अनुशासित हैं। प्रदर्शन से भारी आय कुछ ही समय में अर्जित की जाती है। ज्ञातव्य है कि वॉल्ट डिज्नी के चीन में बने थीम पार्क में चीनी सरकार ने 5 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। वॉल्ट डिज्नी पंगा नहीं लेना चाहते। सोशल मीडिया का हंगामा प्रायोजित भी हो सकता है। ज्ञातव्य है कि वॉल्ट डिज्नी थीम पार्क बनाने के लिए उनकी एक टीम ने भारत का दौरा किया था। उनकी रपट भी थी कि भारत के अधिकांश लोग थीम पार्क का प्रवेश शुल्क नहीं दे सकते। अपने देश के इस अपमान से खिन्न होकर मनमोहन शेट्टी ने ‘इमेजिका’नामक थीम पार्क मुंबई में कुछ किलोमीटर दूरी पर बनाया।

कोरोना के कारण इमेजिका महीनों से बंद पड़ा है, परंतु उसके रखरखाव पर भारी रकम खर्च हो रही है। सारे व्यवसाय इसी तरह ठप्प पड़े हैं। व्यवस्था को तो यह भी पता नहीं कि कोरोना के कारण हुए विस्थापन में कितने लोगों की मृत्यु हुई। अमेरिका ने ‘लास्ट एंपरर’ फिल्म भी बनाई थी, जो चीन की एक ऐतिहासिक घटना से प्रेरित थी। एक काल्पनिक फिल्म चीन के व्यावसायिक नज़रिए को प्रस्तुत करती है। एक फिल्मकार ने चीन में शूटिंग प्रारंभ की। एक चीनी व्यक्ति ने पूंजी निवेश किया कुछ रीलें बनने के बाद अमेरिकन डायरेटर की मृत्यु हो गई। चीन के पूंजी निवेशक ने प्रचारित किया कि भव्य शवयात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से होकर निकलेगी। इस घटना का विवरण देने अनेक देशों के वृत्तचित्र बनाने वाले लोग आएंगे। वृत्तचित्र के माध्यम से मार्ग पर बनी दुकानों का प्रचार पूरे विश्व में होगा। इस तरह चीनी पूंजी निवेशक ने फिल्म में लगाई पूंजी से कहीं अधिक धन शव यात्रा के फिल्मांकन के माध्यम से कमा लिया। चीन को समझना कठिन है। स्वयंभू कूटनीतिज्ञ का ऊंट अब चीन के पहाड़ के सामने आया है। पुरानी कहावत है कि यदि ऊंट पहाड़ के पास नहीं आए, तो पहाड़ ऊंट के पास पहुंचना चाहिए। प्यासा कुएं तक नहीं पहुंच पाए तो कुएं को प्यासे के पास पहुंच जाना चाहिए।

जयप्रकाश चौकसे
(लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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