यूरोप में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। मगर इसके बीच ही हाल के दिनों में कई ऐसे प्रदर्शन देखे गए, जहां कुछ लोग अपनी आजादी वापस मांग रहे थे। तो कुछ ऐसे भी थे जो स्टॉप चाइल्ड ट्रैफिकिंग के नारे लगा रहे थे। आप सोच सकते हैं कि आखिर कोरोना का बच्चों की तस्करी से या लेना देना है? दरअसल प्रदर्शन में शामिल लोग वो थे, जो खुद को यू एनॉन नाम के आंदोलन का हिस्सा मानते हैं और सरकार पर भरोसा नहीं करते। ये लोग एक बहुत ही बड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरी में विश्वास रखते हैं, जिसके अनुसार दुनिया भर के कुछ रईस लोग बच्चों की तस्करी करवा रहे हैं। यू एनॉन मूवमेंट की शुरुआत अमेरिका में इंटरनेट पर हुई। कई वेबसाइटों पर ऐसी बातें फैलीं कि बच्चों का शोषण करने वाले कुछ रईस लोगों का नेटवर्क चुपचाप बच्चों का अपहरण करवाता है, उनका शोषण करता है और फिर उनके खून का इस्तेमाल कर एक यूथ सीरम बनाता है। इस थ्योरी के अनुसार हिलेरी लिंटन जैसे दुनिया के कुछ प्रभावशाली लोग बच्चों के खून से बनी इस दवा का इस्तेमाल करते हैं और दुनिया पर राज करने की कोशिश करते हैं।
यू एनॉन समर्थकों का दावा है कि ये रईस लोग एक तरह की खुफिया सरकार चलाते हैं। इसे ये डीप स्टेट का नाम देते हैं। इनके अनुसार ये लोग दुनिया भर की और विशेष रूप से अमेरिका की राजनीति को अपने इशारों पर चलाते हैं। डॉनल्ड ट्रंप को ये मसीहा के रूप में देखते हैं, जो इस गंदी राजनीति का सफाया करने में लगे हैं। हाल के दिनों में ये उन प्रदर्शनकारियों के साथ जुड़ गए हैं, जिनका मानना है कि कोरोना से निपटने के सरकारों के प्रयास धोखा हैं। ये लोग मानते हैं कि टीकाकरण के जरिए दुनिया भर की सरकारें जनसंया को नियंत्रित करना चाह रही हैं। टीकाकरण विरोधी और अति दक्षिणपंथी इस थ्योरी का समर्थन करते हैं। कोरोना महामारी ने यू एनॉन मूवमेंट को और हवा दे दी है। इस साल मार्च से जून के बीच ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन लोगों ने खूब प्रचार किया। यही वजह है कि अब अमेरिका के बाहर भी इसे काफी समर्थक मिल गए हैं। अमेरिका के बाद दूसरा नंबर है ब्रिटेन का। इसके बाद कनाडा, फिर ऑस्ट्रेलिया और फिर जर्मनी। तो कुल मिलाकर विवेकहीनता के दौर में ये आंदोलन फूल-फल रहा है। यह दुनिया के एक अनिश्चित भविष्य की तरफ बढऩे का संकेत है।
वैसे भी यूरोप कोरोना की फिर उठी लहर से परेशान है। यूरोपीय संघ के नेताओं की पिछले हफ्ते एक बैठक हुई। उसमें कोरोना वायरस से उबरने के लिए तय हुए पैकेज को लेकर उठे विवादों को हल करने की कोशिश हुई। जुलाई में 750 अरब यूरो के कोरोना प्रोत्साहन पैकेज पर सहमति बनी थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि उसके अतिरित 100 अरब यूरो की और जरूरत होगी। ये प्रतिबंध उन शहरों में भी लागू होंगे, जहां टेस्ट कराने वाले लोगों में 10 फीसदी से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं या फिर जहां अस्पतालों में 35 फीसदी से ज्यादा मरीज इंटेंसिव केयर बेड पर रखे गए हैं। अब फिर से वहां सामाजिक दूरी का कड़ाई से पालन कराया जाएगा और लोगों की गतिविधियों पर कई तरह की रोक लग जाएगी। ब्रिटेन ने पहले से तय सर्जरियों को फिलहाल रोकने का ऐलान किया है, ताकि कोरोना से संक्रमित लोगों का इलाज किया जा सके। वहां बीते हफ्तों में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, नतीजतन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने लोगों से पाबंदियों और सुरक्षा के उपायों को मानने की अपील की है। सरकार ने कहा कि यह आपातकाल 45 दिनों के लिए लागू रहेगा। इसके पहले यहां एक दिन में संक्रमित होने वालों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी गई।