केंद्र सरकार के द्वारा बनाए गए कृषि कानून के विरोध किसानों के आंदोलन को कई माह हो गए हैं। इस दौरान आंदोलित किसानों ने बेमौसम की बरसात, सर्दी और अब गर्मी का सामाना करते हुए इन कानूनों की वापसी को लेकर अपनी मांग पर डट रहे हैं। किसानों की मांग को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार भी अपनी जिद पर डटी हुई है। वह भी कानूनों में संशोधन को तो तैयार है, लेकिन कानून वापसी पर टस से मस होने को तैयार नहीं है। आंदोलन की इस लंबी यात्रा में जहां किसानों ने अपने धैर्य व संयम और शांति का परिचय दिया है। हालांकि गणतंत्र दिवस पर हुई घटना ने मानवता को जरूर शर्मसार किया था। उस घटना के बाद ऐसा लग रहा था कि सरकार किसानों के आंदोलन को बल पूर्वक खत्म कर सकती है। किसान नेता भाकियू प्रवता राकेश टिकैत की आंखों से आंसू निकलना और उनका भावुक होना कमजोर हो रहे आंदोलन को मजबूती प्रदान कर गया। किसानों की लंबी तपस्या के बाद भी भले ही किसान दिल्ली की सरहदों पर डटे हैं, लेकिन अभी तक उनकी तपस्या का कोई फल उन्हें नहीं मिला है।
किसानों के इस आंदोलन के दौरान सैकड़ों किसान अपनी मांगों के लिए शहीद हो गए हो, उनकी खेती भी प्रभावित हो रही हो लेकिन सरकार पसीजने की बजाय इस आंदोलन पर कोरोना का प्रकोप दिखाकर खत्म करने की जुगत में है, सरकार अपने मंत्री, सांसद व विधायकों की टीम बनाकर क्षेत्र में भेजती रही, ताकि वे घर में बैठे किसानों को कृषि कानूनों का महत्व बताकर आंदोलन को तेजहीन कर सकें। किसानों के इस आंदोलन से एक बात जो उभर आई है वह जाट व मुस्लिमों में जो खाई मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद बन गई थी वह अब पटती नजर आ रही है। जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरणों में बदलाव आने की उम्मीद है। पिछले सात सालों से सियासी जमीन तलाश कर रही राष्ट्रीय लोकदल को राहत मिली उसने पंचायत चुनाव में एक बार फिर वापसी करली। इसके अलावा आंदोलन को मजबूती देने के लिए आंदोलित किसान नेता आपसी मतभेदों को दूर कर रहे हैं। कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों के इरादे बुलंद हो चुके हैं, वह बढ़ती गर्मी में भी दोदो हाथ हालात से कर रहे हैं। दिल्ली सीमा पर जमे किसान खुद को गर्मी से अपने आपको बचाने के लिए पंखा, कूलर वगैरह का इंतजाम और टेंट भी पके बनाकर यह जता रहे हैं कि कानून वापसी के बाद ही घर जाएंगे। यदि सरकार अपनी जिद पर डटी है तो वह भी पीछे हटने वाले नहीं हैं।
यही नहीं सीमा से दूर गांव-शहर में बैठे किसानों के परिजन और उनकी परवाह करने वाले भी गर्मी से जंग करके उनका सहयोग कर रहे है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन में लगातार माहौल बदलना इस बात का अहसास दिला रहा है कि किसान आगे की लड़ाई बिना मतभेद के लडऩा चाहते हैं। किसान नेताओं का रुख भी बदल गया है। उपद्रव के बाद बॉर्डर पर पंजाब से आए अधिकांश आंदोलनकारियों के लौट जाने से आंदोलन स्थल खाली हो गया था, लेकिन इसके बाद हरियाणा के विभिन्न जिलों और आसपास के ग्रामीणों ने मोर्चा को संभाला। इससे आंदोलन स्थल का नजारा ही बदल गया। बदलते माहौल को देखते हुए अब संयुत किसान मोर्चा के नेताओं के भी सुर बदलने लगे हैं। बरसात का मौसम शुरू होने वाला है। किसान की खेती के कामों से निपट चुके हैं, उम्मीद है आने वालें दिनों में किसान आंदोलन अधिक मजबूत होगा, यदि सरकार नहीं पसीजी तो 2022 में होने वाले विधानसाा चुनाव में इस असर दिखाई देगा।