रामकथा का सार : साथियों की योग्यता देखकर ही दें जिम्मेदारियां

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आज बुधवार, 21 मई को राम नवमी है। श्रीराम के जीवन से हम सीख सकते हैं कि अपने साथियों को उनके गुणों के आधार पर जिमेदारियां देनी चाहिए। रामायण में श्रीराम वानर सेना के साथ दक्षिण दिशा में समुद्र किनारे पहुंच गए थे। पूरी वानर सेना के साथ श्रीराम-लक्ष्मण को समुद्र पार करके लंका पहुंचना था। ये काम बहुत मुश्किल था। श्रीराम ने समुद्र देवता से निवेदन किया कि वे वानर सेना को निकलने के लिए रास्ता दें। तब समुद्र देव ने श्रीराम को नल-नील के बारे में बताया कि वे विश्वकर्मा के पुत्र हैं। इन्हें ऋषियों ने शाप दिया था कि ये जो भी चीजें पानी में डालेंगे, वह डूबेगी नहीं। आप इनकी मदद से समुद्र पर सेतु बांध सकते हैं। इसके बाद श्रीराम ने नल-नील को समुद्र पर सेतु बांधने की जिमेदारी दी। कुछ ही समय पर नल-नील ने पत्थरों से समुद्र पर लंका तक सेतु बना दिया। जिसकी मदद से पूरी वानर सेना लंका पहुंच गई। जब श्रीराम वानर सेना के साथ लंका पहुंचे तो उन्होंने अंगद को दूत बनाकर रावण की सभा में भेजा था।

राम चाहते तो हनुमानजी को भी दूत बनाकर भेज सकते थे, लेकिन उन्होंने इस काम के लिए अंगद को चुना। अंगद को लंका के दरबार में दूत बनाकर भेजने से रावण को समझ आ गया था कि श्रीराम की सेना में हनुमान ही नहीं, बल्कि अंगद जैसे भी कई और शक्तिशाली वानर हैं। लंका आने से पहले अंगद का आत्मविश्वास कमजोर हो रहा था। अंगद ने सीता की खोज में लंका आने से मना कर दिया था। तब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका पहुंचे थे और देवी सीता का पता लगाकर और लंका जलाकर श्रीराम के पास लौट आए थे। वानर सेना के साथ लंका पहुंचने के बाद अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजने से उसका आत्मविश्वास भी जाग गया था। श्रीराम के इन प्रसंगों से हम समझ सकते हैं कि हमें अपने साथियों के गुणों को पहचानना चाहिए और साथियों की योग्यता पर भरोसा करना चाहिए। अगर किसी साथी का आत्मविश्वास कमजोर हो रहा है तो उसे प्रेरित करना चाहिए, उसका उत्साह बढ़ाना चाहिए।

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