कहानी: महाभारत युद्ध समाप्त हो गया था। पांडवों की जीत हुई और युधिष्ठिर राजा बन गए थे। एक दिन श्रीकृष्ण ने सभी पांडवों को भीष्म पितामह से राजधर्म का ज्ञान लेने की सलाह दी। भीष्म बाणों की शय्या पर थे, वे प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उारायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। श्रीकृष्ण के आग्रह पर भीष्म ने सभी पांडवों को ज्ञान की बहुत सारी बातें समझाई थीं। उनमें से एक बात ये थी कि विनम्रता बड़े और समर्थ लोगों के लिए आभूषण की तरह होती है। एक लक्षण होता है दब जाना और दूसरा लक्षण है झुक जाना, डर की वजह से या किसी मजबूरी की वजह से। विनम्रता इन दोनों लक्षणों से ऊपर होती है। विनम्रता स्वेच्छा से एक सदाचार की तरह है। ये समझाने के लिए भीष्म ने कहा, नदी जब समुद्र तक पहुंचती है तो अपने बहाव के साथ वह कई बड़े-बड़े पेड़ और उनकी शाखाएं लेकर आती है। एक दिन समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम अपने साथ छोटे पौधे और छोटे वृक्षों को बहाकर क्यों नहीं लाती हो? नदी ने जवाब दिया कि जब में पूरे वेग से बहती हूं
तो छोटे पौधे और छोटे पेड़ झुक जाते हैं, मुझे रास्ता दे देते हैं तो वे बच जाते हैं। जबकि बड़े-बड़े पेड़ झुकते नहीं, अड़ जाते हैं तो टूट जाते हैं और मैं इन्हें बहाकर ले आती हूं। सीख: भीष्म ने इस उदाहरण की मदद से बताया है कि जीवन में कई बार विपरीत परिस्थितियां आती हैं। उस समय विनम्रता शस्त्र और कवच की तरह काम करती है। विनम्र व्यक्ति झुककर दुनिया में कई काम कर सकता है। जबकि अकड़ की वजह से नुकसान ही होते हैं।