सैनिकों की सफलता पर नाज

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नक्सलियों के खिलाफ हमारे सुरक्षा बलों का ऑपरेशन बेशक नाकाम रहा, जिसमें हमारे 22 जवान शहीद हो गए, लेकिन कश्मीर में ऐसा नहीं है। सेना ने आतंकवाद पर प्रचंड प्रहार किया है। सेना व सुरक्षा बलों ने 72 घंटे में चार आपरेशन को अंजाम दिया और बारह आतंकवादी मार गिराए। इस साल में अब तक तकरीबन 35 आतंकवादी मारे गए हैं। यह सराहनीय है। जमू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक मारे गए आतंकवादी गत शुक्रवार को बिजबेहरा इलाके के गोरीवन में हवलदार मोहमद सलीम अखून की उनके घर के बाहर हत्या करने की घटना में शामिल थे। कश्मीर के आईजीपी विजय कुमार का यह कहना कि बिजबेहरा मुठभेड़ में सेना के जवान की हत्या के लिए जिम्मेदार आतंकवादी दो दिन के भीतर मारे गए सफलता का प्रतीक है। आईजीपी के मुताबिक पुलिस और सुरक्षा बल हाल ही में आतंकी संगठन में भर्ती हुए युवाओं को सरेंडर कराने पर जोर दे रहे हैं। आतंकी राह पर हाल ही में आगे बढ़े इन युवाओं के परिजन भी अपने बच्चों से सरेंडर की अपील कर रहे हैं, लेकिन पुराने आतंकी उन्हें ऐसा करने से रोक रहे हैं।

इसी ऑपरेशन में एक नाबालिग को उनके मातापिता से बात करवा कर उसे सरेंडर के लिए कहा गया, लेकिन उसने सरेंडर नहीं किया। अभी सेना व पुलिस की कोशिश है कि नए आतंकी बने युवाओं को आतंकवाद की राह छोड़ कर मुख्यधारा में शामिल होने का मौका दिया जाय। इसमें सफलता भी मिली है। बहुत से युवा आतंकवाद छोड़ कर सामान्य जीवन में लौटे हैं। दरअसलए सेना जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए आतंकियों के सफाए का अभियान ऑपरेशन लीन 2016 से चला रही है। इसमें सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस संयुत रूप से काम कर रही है। साउथ एशिया टेरेरिजम पोर्टल से मिले आंकड़ों के मुताबिक 2020 में 203, 2019 में 163, 2018 में 271, 2017 में 220 आतंकी मारे गए। यूं तो पांच साल में कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूटी है, बड़ी संख्या में आतंकी मारे गए हैं, वहां अब आतंकवाद बेहद कमजोर स्थिति में है, इसके बावजूद आतंकी गुट लश्करे तैयबा, अल बद्र, जैश व हिज्बुल अभी भी सक्रिय हैं। इनमें अल बद्र अधिक एटिव हैं। सेना के ऑपरेशन में आतंकियों के कई टॉप कमांडर मारे गए हैं, इनमें हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी, जाकिर मूसा, आबिद मंजूर मागरे उर्फ सजू टाइगर, रियाज नायकू, फारूक अहमद भट शामिल हैं।

इनके मारे जाने से अब आतंकी गुटों को आतंकी गतिविधि चलाने के लिए लड़ाकू नहीं मिल रहे हैं। ऑपरेशन लीन के चलते आज कश्मीर में नए आतंकियों की उम्र छह माह से साल भर रह गई हैए इस कारण भी नए युवा आतंकी गुट में शामिल नहीं हो रहे हैं। हालांकि ऑपरेशन लीन के बाद से आतंकवादी हमले व आतंकियों से मुठभेड़ में करीब 300 से अधिक जवान शहीद भी हुए हैं। आतंकवादी हमले में अनेक नागरिक भी मारे गए हैं। कश्मीर में केंद्रशासित सरकार के आने के बाद से विकास की अनेक योजनाएं चल रही हैं, जिससे लोगों को आतंकवाद के नाम पर गुमराह करने वालों की असलियत सामने आई हैं। चाहे आतंकी गुट हों, या उसे शह देने वाले अलगाववादी या पाकिस्तान की फौज व खुफिया एजेंसी आईएसआई, इन सबके पोल खुल गए हैं कि वे कश्मीरी युवाओं को गुमराह कर रहे हैं। कश्मीर से अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से आतंकी घटनाओं में भी कमी आई है। सेना की कामयाबी है कि कश्मीर में आतंकवाद दक्षिण कश्मीर तक सिमट कर रह गई है। कश्मीर के आतंकवाद मुत होने तक ऑपरेश लीन
जैसी मुहिम चलती रहनी चाहिए।

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