आंदोलन से सियासी जमीन की तलाश

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कृषि कानून के विरोध में जहां किसानों के आंदोलन को तीन माह से अधिक का समय हो गया है, वहीं इस आंदोलन का समर्थन कर रही विपक्षी पार्टियां आने वाले चुनाव में मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाने में जुटी हैं। विपक्षी पार्टियों का प्रयास है कृषि कानून का विरोध कर रहे आंदोलित किसानों के प्रति सहानुभूति जताकर उनका भाजपा से मोहभंग किया जाए। इसी मकसद में जहां कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं वहीं दूसरी विशेषकर क्षेत्रीय पार्टी भी भाजपा से नाराज किसानों को अपने पक्ष में लाने में जुटी है। अगले वर्ष देश के सबसे बड़े राज्य उार प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं जहां फिलहाल भाजपा मजबूती के साथ साा में है। विपक्षी पार्टी विशेषकर सपा-बसपा के अलावा दिल्ली में साारुढ़ आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल भी उार प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए किसानों के समर्थन में खड़े हो गए हैं। उनकी यह महापंचायत मेरठ में आम आदमी पार्टी की तरफ से आयोजित की गई। इसे आप का मिशन यूपी में 2022 विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान से जोड़ा जा रहा है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसानों की दुखती रग पर हाथ रखते हुए केंद्र सरकार व यूपी की सरकार पर निशाना साधा। उनका कहना था कि आजादी के बाद किसानों की हालत बद से बदार हो गई। हर सियासी पार्टी ने उनके वोट लेकर उनके साथ धोखा दिया। उनके इस कथन से प्रतीत हो रहा है कि वह यूपी में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में किसी के साथ गठबंधन करने के मूंड में नहीं है। वह दिल्ली के विकास मॉडल पर ही सियासी मैदान में कूदेंगे। उनके वक्तव्य बता रहे हैं कि वह जहां भाजपा का विरोध कर रहें हैं, वहीं कांग्रेस को भी किसानों के हित में कुछ न करने का दोषी ठहरा रहे हैं। उनका यह कहना कि पिछले सार सालों में किसान फसलों की एमएसपी मांग रहा है, पार्टियां लुभाकर उनके वोट तो लेती हैं लेकिन देश के भोले-भाले किसानों के साथ धोखा करती है, जिसके परिणामस्वरूप आज किसान आत्महत्या करने पर विवश है। उनके कथन से लग रहा है कि वह यूपी में खुद को किसान हितैषी दर्शाकर उनकी सहानुभूति प्राप्त करना चाहते हैं। उनका उद्देश्य विधानसभा चुनाव में मजबूत हिस्सेदारी हासिल करना है। कृषि कानूनों के लेकर किसानों का भाजपा के खिलाफ गुस्से के चलते विपक्षी दलों में मोदीयोगी सरकार को घेरने का अवसर मिल गया है।

यही वजह है कि कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल बार-बार पश्चिमी यूपी में महापंचायत कर रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अब तक सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मथुरा में महापंचायत कर चुकी हैं। रविवार को ही सहारनपुर में भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत भी एक महापंचायत को संबोधित कर रहे थे। जिस तरह से आंदोलित किसानों की हमदर्दी जताकर सभी गैर भाजपाई पार्टियां किसान महापंचायतें कर रही हैं उससे लग रहा है कि कृषि कानून को लेकर भाजपा से नाराज चल रहे किसानों को हर पार्टी अपनाना चाहती है। अब किसानों की हमदर्दी किसके साथ अधिक होगी? ये तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना जरूर दिखाई दे रहा है कि यदि केंद्र सरकार अपनी जिद पर डटी रही तो उसे आने वाले चुनावों में किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। दूसरी ओर सरकार के खिलाफ मुद्दाहीन विपक्षी पार्टियों को किसानों का आंदोलन एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसे कोई भी हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। इसी के बल पर वह चुनाव में सफलता हासिल करना चाहते हैं।

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