कोरोना के चलते देश की शिक्षा-व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। सब जगह पढ़ाई-लिखाई बंद है और एग्जाम्स को मुल्तवी कर दिया गया है। स्टूडेंट्स को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है, मगर सबके पास इंटरनेट नहीं है, है भी तो बहुत स्लो है। बच्चे पढ़ पाएं, या न पढ़ पाएं, अभिभावकों पर फीस जमा करने का कुछ ऐसा दबाव बनाया जा रहा है कि अभिभावक डर के मारे वह सब करने को मजबूर हैं, जो करने की इजाजत उन्हें न तो लॉकडाउन देता है और न ही जेब देती है। महाराष्ट्र में मार्च के तीसरे हफ्ते से ही स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं। स्कूलों में पिछले साल के शैक्षणिक वर्ष की आखिरी परीक्षा को भी रद्द करना पड़ा और छात्रों को अगली कक्षा के लिए प्रोन्नत कर दिया गया। अप्रैल से कुछ स्कूलों में जूम के जरिए ऑनलाइन क्लासेस लगाई जा रही हैं, मगर वे ठीक से लग नहीं पा रहीं। वजह इंटरनेट की रद्दी स्पीड है। टेलिकॉम कंपनियां 4जी सेवा देने का दावा करती हैं, जो अधिकांश शहरों में 3जी या 2जी की ही रहती है।
दूसरी ओर सभी बच्चों के पास टैब या लैपटॉप नहीं है, अगर किसी के पास है भी, तो इसकी संख्या एक से अधिक नहीं है। जबकि अमूमन सभी अभिभावकों के एक से ज्यादा बच्चे होते हैं। ऑनलाइन क्लास के लिए जूम आईडी एवं पासवर्ड अमूमन एक अभिभावक को दिया जाता है, जो उसे अभिभावकों के वाट्सऐप ग्रुप में डालता है। कई बार इसमें देर हो जाती है और तब तक क्लास ओवर हो जाती है। कनेक्टिविटी अक्सर खराब ही रहती है, इसलिए जब तक स्टूडेंट्स क्लास से कनेक्ट होता है, प्राय: क्लास डिसकनेक्ट हो चुकी होती है। मुंबई में ऑनलाइन क्लासेस शुरू करने के बाद अभिभावकों पर मंथली फीस जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। जबकि मुंबई के स्कूलों में आमतौर पर तीन से चार महीने के अंतराल पर फीस ली जाती रही है। स्कूल संचालक मंथली फीस मांग कर अभिभावकों को राहत देने की बात कह रहे हैं। पहले तो पैरंट्स पोर्टल के जरिए दबाव बनाया गया।
जब बात नहीं बनी, तो फोन करके डराया जा रहा है। मांगी जा रही फीस में ट्यूशन के अलावा कंप्यूटर, लाइब्रेरी, लैब आदि की फीस भी शामिल है, जबकि लॉकडाउन में छात्र न तो कंप्यूटर चला रहे हैं, न ही लैब या लाइब्रेरी जा रहे हैं। असल में ऑनलाइन क्लास की खानापूर्ति भी इसी फीस के लिए की जा रही है। फीस के लिए दबाव बनाने वाले स्कूल मुंबई के बड़े स्कूलों में गिने जाते हैं, अर्थात इनका बिजनेस बहुत ही बड़ा है। कुछ की तो ब्रांचें विदेशों में भी हैं। इनका कहना है कि फीस नहीं लेंगे तो वेतन कैसे देंगे/ हालांकि, इस मामले में महाराष्ट्र की स्कूली शिक्षा मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने साफ-साफ कहा है कि लॉकडाउन में जब तक शिक्षण संस्थान बंद हैं, अभिभावकों पर फीस जमा करने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता है। अगर ऐसा हो तो अभिभावक जिला शिक्षा अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।
लेकिन अभिभावक ऐसी किसी शिकायत से बचते हैं क्योंकि वे डरते हैं कि स्कूल उनके बच्चे को परेशान करेगा। ये हाल अकेले महाराष्ट्र का नहीं, समूचे देश का है। देश के कोने-कोने से ऐसी शिकायतें आ रही हैं। कई राज्य सरकारों ने अभिभावकों से लॉकडाउन में फीस न देने को कहा है। बिहार और उत्तर प्रदेश लॉकडाउन में स्कूल फीस माफ करने की बात कह रहे हैं। दिल्ली सरकार ने स्कूलों से फीस नहीं बढ़ाने के लिए कहा है। फिर भी स्कूलों की मनमानी जारी है। जिनकी नौकरी लॉकडाउन ने लील ली, वे बच्चों के नाम स्कूल से कटा दे रहे हैं। जिनकी बची है, वे फीस जमा करने के लिए कभी प्रोविडेंट फंड से पैसे निकाल रहे हैं, तो कभी बैंकों से लोन ले रहे हैं। इसके बावजूद उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा की गुणवत्ता कितनी गिर गई है, यह सब पहली बार अभिभावक घर बैठे देख भी रहे हैं, क्योंकि बाहर तो सब लॉकडाउन है।
सतीश सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार)