भारत में अब स्कूलों को खोलने की तैयारी शुरू हो रही है। इसके बावजूद कि भारत अब दुनिया में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के संक्रमण के कुल मामलों में दूसरे स्थान पर पहुंच चुका है। हालांकि अभी यही बताया गया है कि स्कूलों में फिलहाल नियमित रूप से कक्षाएं नहीं होंगी। अगर कोई छात्र पाठ्यक्रम संबंधी किसी समस्या का सामना कर रहा हो, तो उन्हें अपने अध्यापकों से मिल कर मार्गदर्शन लेने का अवसर दिया जाएगा। सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार यह लॉकडाउन के बाद शैक्षिक गतिविधियों को चरण बद्ध तरीके से फिर से खोलने के तहत किया जा रहा। लेकिन यह पूरी तरह से स्वैच्छिक होगा। यानी अभी किसी भी छात्र के लिए स्कूल जाना अनिवार्य नहीं किया जा रहा है। इसके लिए अभिभावकों की अनुमति भी अनिवार्य होगी। स्कूलों को 50 प्रतिशत अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों को काम पर बुलाने की भी अनुमति दी गई है। सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर लागू कोविड प्रबंधन के सभी निर्देशों का स्कूलों में भी पालन करने को कहा है।
मसलन, छह फीट की दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, हाथ धोते रहना इत्यादि। सरकार का कहना है कि स्कूल अब खुलने के लिए तैयार हैं या नहीं ये देखने के लिए एक प्रयोग के तौर पर ये कदम उठाया रहा है। लेकिन क्या छात्र, अभिभावक, अध्यापक और अन्य कर्मचारी और स्कूल प्रबंधन इसके लिए तैयार हैं? खबरों के मुताबिक कम से कम छोटे बच्चों के अभिभावक तो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। वैसे अभिभावकों के साथ-साथ स्कूलों से जुड़े लगभग सभी समूहों में मौजूदा स्थिति को लेकर कई चिंताएं हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अध्यापक और दूसरे कर्मचारी यह महसूस करते हैं कि आदेश के रूप में अगर उनका स्कूल जाना अनिवार्य ही कर दिया जाएगा, तब तो उन्हें मजबूरन जाना ही पड़ेगा। जबकि अभी भी नियमित रूप से यात्रा करने और काम पर जाने में संक्रमण का काफी जोखिम है। ये सवाल भी उठाया गया है कि कि अगर टीचरों को संक्रमण हो गया, तो बच्चों को कौन पढ़ाएगा? संक्रमण के जोखिम के अलावा भी स्कूलों को खोलने से संबंधित कई चिंताएं हैं।
दूरी बनाए रखने की जरूरतों को पूरा करने में स्कूलों के आगे कई मुश्किलें आएंगी। छोटे स्कूल तो क्या, अधिकतर बड़े स्कूलों में भी कक्षाएं इतनी बड़ी नहीं होती हैं कि उनमें सभी बच्चों के बीच छह फीट की दूरी रखी जा सके। ऐसे में स्कूल कितनी अतिरिक्त कक्षाएं बना पाएंगे? लेकिन एक अहम सवाल ये है कि या शिक्षा गैर जरूरी खाने में आती है? शायद ही इस पर कोई हां कहे। हमेशा यही तो सुना है कि पढ़ाई सबसे जरूरी है। अगर पढ़ाई सबसे जरूरी है तो फिर स्कूल खोलने में इतनी बातें क्यों? इतनी देरी क्यों? स्कूल-कालेज खोलना अब बहुत जरूरी है। बच्चों के भविष्य का सवाल है। सावधानी बरतनी चाहिए लेकिन कक्षा पांच के बाद की लासें तो चल ही सकती हैं। आखिर कब तक सरकार इसे आगे बढ़ाती रहेगी? इस पर इतनी बंदिशों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है योंकि देश का हर खाना तो खुल ही चुका है। बाजारों व सड़कों पर वैसे ही भीड़ उमड़ रही है। बिना किसी डर के।