संक्रमण से बचने को लें संकल्प

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बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच सरकार ने आर्थिक सेहत को दुरूस्त करने के लिए लॉकडाउन के नियमों में काफी हद तक छूट दे दी है। छूट के साथ ही बचाव के उपाय अपनाने के निर्देश भी दिये हैं। परिवहन, प्रतिष्ठानों व यातायात के लिए अनेक नियम बनाये गये हैं। संक्रमण से बचाव के दृष्टिगत बनाए नियमों का पालन लोग नहीं कर रहे हैं। बाजारों में खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाकर संक्रमण फैलने का दावत दिया जा रहा है। अधिकतर दुकानदार पहले की तरह ही बिक्री का सामान दुकानों के बाहर रख दे रहे हैं। इससे बाजारों में फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाने में दिकत हो रही है। छोटी दुकानों में कम जगह में कई कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। बिना मास्क वाले ग्राहक को बिक्री की जा रही है। थोक के बड़े बाजारों में अनेक कारणों से पुलिस कार्रवाई करने से बचती है। यातायात में क्षमता के अनुसार यात्रियों को ले जाने की अनुमति सरकार ने दी है। यात्री मास्क लगाकर यात्रा कर सकता है। करीब-करीब बैठे यात्रियों में संक्रमण नहीं मिलेगा इसकी या गारंटी है। जबकि बीच की एक सीट खाली रखनी चाहिये। क्षमता से 50 प्रतिशत यात्रियों को ही ले जाने की अनुमति दी जानी चाहिए थी। हवाई जहाजों में बीच की सीट खाली रखी जा रही है।

मास्क व अन्य सुरक्षा के किट के साथ यात्री यात्रा कर रहे हैं। ये दोतरफा के मानक यों है? समझ से परे है। उधर, संक्रमण को लेकर एस के चिकित्सकों और आईसीएमआर के शोध समूह ने कोरोना के सामुदायिक प्रसार की बात कही है। भारतीय लोक स्वास्थ्य संघ, इंडियन एसोसियेशन ऑफ प्रिवेंटिव एण्ड सोशल मेडिसिन के विशेषज्ञों ने अपनी एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी है। जिसमें कहा गया है कि देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना वायरस की पुष्टि हो चुकी है। लॉकडाउन के चौथे चरण में आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दी गई छूट के कारण प्रसार बढ़ा है। जबकि सरकार का कहना है कि संक्रमण का स्तर अभी सामुदायिक स्तर पर नहीं पहुंचा है। अब गेंद जनता के पाले में है कि वह विशेषज्ञों की बात माने या सामान्य नौकरशाहों द्वारा सरकार को दी गई जानकारी को माने। एक यह भी सच जनता के सामने है कि दुनिया में कोरोना से प्रभावित देशों की सूची में भारत सातवें पायदान पर है। लॉकडाउन में आर्थिक कारणों से छूट दिया जाना तो कुछ समझ में आता है परन्तु सरकार आठ जून से धार्मिक स्थलों को भी खोलने जा रही है। इसको लेकर पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने ऐतराज जताया है।

धार्मिक स्थलों पर युवाओं के अपेक्षा बुजुर्गों की उपस्थिति अधिक होती है जो कि संक्रमण से सर्वाधिक खतरे में दायरे में आते है। प्रदेश में कारखानों को चलाने की भी कवायद शुरू हो गई है। यहां भी संक्रमण से बचाव के लिए दिशा-निर्देश जारी किये गये है। परन्तु लघुउद्योग एवं कुछ बड़े उद्योगों में काम की प्रवृत्ति के कारण कम जगहों पर अधिक श्रमिकों को काम करना पड़ता है यहां फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा यह एक प्रश्न है। नियमों का निरीक्षण द्वारा शत-प्रतिशत पालन करा पाना काफी मुश्किल होता है। अगर आंकडे पर ध्यान दें तो प्रदेश में संक्रमित रोगियों में 1027 प्रवासी श्रमिकों की संख्या है। इन्हें संक्रमण कार्यस्थल पर या आने जाने के रास्ते में संपर्क में आने पर हुआ होगा। कुल मिलाकर सरकार सलाहकार की भूमिका में आ गई है। सलाह, निर्देश, बचाव की व्यवस्था तथा इलाज का इंतजाम सरकार देगी परन्तु संक्रमण से बचाव आम जनता को स्वयं करना होगा। चूंकि इस महामारी का कोई इलाज नहीं अत: बचाव ही सर्वोत्तम चिकित्सा है। हम स्वयं संक्रमण से बचें और दूसरों को संक्रमित होने से बचायें यही हमारा संकल्प होना चाहिये।

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