किसानों की वेदना

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कोरोना के संक्रमण का देश के किसानों पर दूरगामी प्रभाव पडऩे की उम्मीद है। किसानों के समक्ष जून माह से दो तरह की समस्याएं आएंगी। जून से धान की रोपाई शुरू हो जाती हैं। इस समय किसान को पूंजी की आवश्यकता होती है। यूपी बिहार, झारखण्ड, छाीसगढ़ व मध्य प्रदेश के लघु व सीमांत किसानों के घर के सदस्य महानगरों में कार्य करते हैं। इस समय वे अपने परिवार को पूंजी से मदद करते हैं जिसके चलते धान की पौध लगाने व रोपाई कराने में पूजी की कमी नहीं होती है। परंतु वर्तमान में यह सहायता उपरोक्त प्रदेश के किसानों को नहीं मिलने वाली है क्योंकि कोरोना संक्रमण के चलते उनके परिजन महानगरों में बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। इनमें से अधिकांश तो पैदल ही महानगरों से अपने घर की तरफ चल निकले हैं। इनके पास पूंजी एकदम नहीं बची है। ऐसे में खेती-किसानी के लिए पूंजीगत सहायता करने में असमर्थ होंगे। साथ में परिजनों ने इनके खाने-पीने का व्यय उठाना पड़ेगा। पंजाब, हरियाणा में प्रवासी मजदूरों के पलायन के बाद खेती-किसानी के कार्य के लिए मजदूर नहीं मिलेंगे क्योंकि यहां के मजदूर अपने घरों की तरफ रुख कर चुके हैं। हरियाणा व पंजाब में गेहूं की मड़ाई के बाद उ.प्र. व बिहार के खेतिहर मजदूर अन्य कामों में नियोजित हो जाते हैं। पुन: धान की रोपाई के समय खेतिहर मजदूर लौट आते हैं परंतु रोजगार के लिए विपरीत परिथितियां होने के कारण इन मजदूरों का भी पलायन हो गया है। केन्द्र सरकार ने तीसरी किश्त में पैकेज के जरिये किसानों को राहत देने का प्रयास किया है।

अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज व आलू को आवश्यक वस्तुओं के दायरे से निकालने का ऐलान किया है। इससे किसान अपने उत्पाद को किसी भी राज्य में ले जाकर बेच सकेगा। अब इस बात की संभावना बढ़ गयी है कि इसका फायदा आढ़ती उठाएंगे क्योंकि किसानों को फसल होने के बाद तत्काल पूंजी की आवश्यकता होती है। अधिकतर किसान इन आढ़तियों से पैसा अग्रिम लिए होते हैं। फसल होने पर इन्हीं आढ़तियों को अपनी फसल किसानों को बेचना पड़ता है। इसके अतिरिक्त किसानों को बाजार के रुख का ज्ञान नहीं होता। ऐसे में किसानों को बाजार के बारे में आवश्यक जानकारी मुहैया कराना सरकार की जिमेदारी होगी, नहीं तो सरकार की नीति से होने वाले फायदे का लाभ अन्य लोगों के हिस्से में चला जाएगा। यूपी व बिहार में अधिकर खेती परपरागत उत्पादों की होती है यथा गन्ना, धान, मक्का, बाजार व गेहूं। कुछ किस्मों को छोड़ दें तो आलू व प्याज की खेती व्यापारिक रूप से नहीं होती। अत: शीतगृह के सब्सिडी का फायदा बहुत अधिक किसानों को नहीं मिलेंगे। केन्द्र सरकार ने किसानों को एक लाख करोड़ कोल्ड स्टोरेज व फसल कटाई प्रबंधन के लिए फण्ड जारी किया है परन्तु इसका लाभ किसानों को छह महीने बाद मिलेगा। अभी जरूरी है तत्काल एक समिति बनाकर किसानों की वर्तमान स्थिति का आंकलन कराकर राहत की घोषणा करें।

इससे किसानों को न केवल वास्तविक लाभ मिलेगा वरन कृषि उत्पादों में भी वृद्धि होगी। इसका फायदा किसानों व देश को भी मिलेगा। सरकार ने अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया तो लघु व सीमांत किसान कर्जे में डूब जाएंगे। उनकी जमीनें गिरवी पड़ जाएंगी। देश में अगर कोरोना संकट का असर कृषि पर पड़ा तो स्थिति और भी विकट हो जाएगी क्योंकि यही सेक्टर ऐसा है कि इसे कोरोना के संक्रमण के चुनाव से विशेष योजना अपनाकर मुक्त रखा जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि सभी संकटों की स्थिति पर एक विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। इस संकट से उबरने के लिए आत्मनिर्भर बनना अति आवश्यक हैं आत्मनिर्भरता हमें कोविड-19 संकट के बाद मुश्किल स्थितियों से निपटने में सहायक होगा। आत्मनिर्भर भारत वैश्विक भारत के स्वरूप को प्राप्त करने में सफल हो सकेगा। भारत के आत्मनिर्भर बनने में कृषि सेक्टर का बहुत योगदान है। सरकार को विशिष्ट योजनाएं बनाकर कृषि सेक्टर को संजीवनी प्रदान करना होगा। यथार्थ है कि किसानों की स्थिति सुधरेगी तो देश की स्थिति सुदृढ़ होगी। पूर्व की नीतियां अगर सफल होती तो प्रवासी मजदूरों का उमड़ता सैलाब सड़कों पर नहीं दिखाई देता। जो भी कृषि की नीति बने वह किसानों को आत्मनिर्भर बनाने वाला हो न कि क्षणिक प्रशंसा देने वाला। कठिन स्थितियों का परिणाम सकारात्मक होता है, इसे हमें मानकर चलना चाहिए।

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