यदि मन में उत्साह हो तो कोई भी कठिन कार्य कठिन नहीं रहता, वह सरल हो जाता है। इस कार्य को और भी सरल बनाता है हमारा व्यवहार जिसके बल पर हमार दूसरे साथी भी हमारी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। आपसी सहयोग को देखकर भगवान भी हमारी सहायता के लिए तैयार हो जाते हैं। भगवान की सहायता से कोई भी कार्य कठिन नहीं रहता है। वह पल भर में इस दुष्कर कार्य को सरल बनाते हैं। इस बारे में लघु कथा कुछ यूं प्रचलित है कि एक बार एक पक्षी समुंदर में से चोंच से पानी बाहर निकाल रहा था। दूसरे ने पूछा,कि भाई ये या कर रहा है। पहला बोला, समुंदर ने मेरे बच्चे डूबा दिए है अब तो इसे सूखा कर ही रहूंगा। यह सुन दूसरा बोला, कि भाई तेरे से या समुंदर सूखेगा। तू छोटा सा और समुंदर इतना विशाल। तेरा पूरा जीवन लग जायेगा। पहला बोला, देना है तो साथ दे। सिर्फ सलाह नहीं चाहिए। यह सुन दूसरा पक्षी भी साथ लग लिया। ऐसे हजारों पक्षी आते गए और दूसरे को कहते गए सलाह नहीं साथ चाहिए।
यह देख भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी भी इस काम के लिए जाने लगे। भगवान बोले तुम कहां जा रहे हो? तुम गये तो मेरा काम रुक जाएगा। तुम पक्षियों से समुंदर सूखना भी नहीं है। गरुड़ बोले, भगवन सलाह नहीं साथ चाहिए। फिर या ऐसा सुन भगवान विष्णु जी भी समुंदर सुखाने आ गये। भगवान जी के आते ही समुंदर डर गया और उस पक्षी के बच्चे लौटा दिए। यदि उस पक्षी में उत्साह का संचार नहीं होता तो वह समुद्र जैसे विशाल जलाश्य को सुखाने का संकल्प नहीं लेता। जब उसने अपने संकल्प को पूरा करने का प्रयास किया तो दूसरे पक्षी भी उसकी मदद के लिए आगे आ गए। उनकी देखा-देखी गरुड के मन में भी समुद्र को सुखाने वाले अभियान में शामिल होने की इच्छा हुई जिससे भगवान विष्णु को उन पक्षियों की मदद के लिए तैयार होना पड़ा। भगवान विष्णु के तैयार होने से समुद्र को भयभीत होना पड़ा जिससे उसने उस पक्षी के बच्चे लौटाकर अपनी पराजय स्वीकार करना इस बाता का प्रमाण था कि वह एक संकल्प के आगे नत्मस्तक हो गया है।