शिक्षा एक बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहां सुधार की जरूरत टाली नहीं जा सकती। इस संदर्भ में देखें तो ऐतिहासिक राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की घोषणा समय की मांग थी। इसने शिक्षा के क्षेत्र में एक उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित किया है, पर इसकी प्रक्रिया के कई आयामों को खंगालने और उसे मजबूती देने के लिए एक अलग नजरिए की जरूरत है। शिक्षा संबंधी संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में यह समीक्षा-प्रक्रिया पूरी करके अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपी। स्थापित प्रथा से परे समिति एक संक्षिप्त रिपोर्ट के साथ सामने आई, जिसमें अनेक कार्यान्वयन संबंधित सिफारिशें हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि एनईपी-2020 में शिक्षा क्षेत्र को प्रभावी रूप से बदलने की क्षमता है। इस नीति की बड़ी खासियत यह है कि इसने राजनेताओं, शिक्षाविदों और नीतिनिर्माताओं को प्रतिकूल राजनीति की अनिवार्य बाध्यताओं से ऊपर उठने के लिए प्रेरित किया है। जाहिर है, अब जब इस नीति ने सर्वसमति प्राप्त कर ली है, तो असली परीक्षा इसके सफल कार्यान्वयन में होगी। इस तथ्य को महसूस करते हुए समिति ने एनईपी-2020 में वर्णित अलग-अलग कार्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विशिष्ट तिथियों के साथसाथ निश्चित समय-सारिणी को निर्धारित करने के लिए एक दूरगामी सिफारिश की है, ताकि एनईपी में स्कूली शिक्षा से संबंधित प्रावधानों की कार्यान्वयन अनुसूची का स्पष्ट रोडमैप प्रदान किया जा सके।
बात यहीं पर नहीं रुकती। समिति ने यह भी कहा है कि 30 जून 2021 तक उसे इसके बारे में सूचित करते हुए मंत्रालय की वेबसाइट पर इसे अपलोड भी किया जाना चाहिए। निस्संदेह यह एक महत्वपूर्ण और व्यापक सिफारिश है, जो एनईपी-2020 की कार्यान्वयन योजना को और अधिक प्रोत्साहन तथा मजबूती देगी। जहां तक उच्च शिक्षा में अधिक से अधिक एनरोलमेंट का प्रश्न है, समिति ने संबंधित विभाग को कहा है कि समयबद्ध तरीके से कार्यान्वित करने के लिए एक सुविचारित कार्य-योजना तैयार करे, जो हर फेज में प्रमुख परिणाम क्षेत्रों में एनईपी-2020 में परिकल्पित ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो को 50 फीसद तक बढ़ाने के उद्देश्य के प्रति समर्पित हो। समिति ने समावेशी शिक्षा को प्राथमिकता दी है। समिति की रिपोर्ट उन जिलों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण करने की जरूरत रेखांकित करती है, जहां एससी, एसटी और लड़कियों की ड्रॉपआउट दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। तत्पश्चात, निष्कर्षों के आधार पर एक उचित योजना बनाई जानी चाहिए, जिससे न केवल इन ड्रॉपआउट बच्चों को वापस स्कूलों में लाया जा सके, बल्कि उनकी आजीविका क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उन्हें व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान की जा सके। शायद ऐसा पहली बार है, जब एक संसदीय पैनल की रिपोर्ट में स्कूली शिक्षा में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित बच्चों को शामिल करने पर जोर दिया गया है।
ठीक इसी तरह, समिति ने एक योजना तैयार करने का आह्वान किया है जिसमें संरचित और समयबद्ध प्रयासों के माध्यम से हर वर्ग के विशेष बच्चों को उनकी जरूरतों के अनुसार सर्वोत्तम स्तर की देखभाल और गुणवत्तपूर्ण शिक्षा प्रदान की जाए। इसके पीछे उद्देश्य यह है कि डिस्लेसिया आदि से पीडि़त धीमी गति से सीखने वाले बच्चों को इसमें शामिल किया जा सके। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि विभिन्न विभागों में स्वतंत्र रूप से काम करने की प्रवृत्ति होती है, समिति ने 2021-22 के अंत तक प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को ‘नल से जल’ मिशन के माध्यम से सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त पेय जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु संसाधनों को इकट्ठा करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय को साथ में मिलकर काम करने का सुझाव दिया है! शिक्षा के लिए मानव संसाधन और प्रासंगिक अनुसंधान का उत्साहवर्धन ऐसे दो अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनके बारे में समिति ने कुछ उल्लेखनीय सिफारिशें प्रस्तुत की हैं। विभिन्न सरकारी संस्थानों में रिक्त पदों के विषय को संज्ञान में लेते हुए समिति ने सुझाव दिया है कि इसके लिए एक विशेष और समयबद्ध भर्ती अभियान चलाया जाए। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि संबंधित विभाग राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए)/ यूपीएससी के माध्यम से सभी केंद्रीय वित्त पोषित शैक्षिक संस्थानों में शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए एक सामान्य परीक्षा शुरू करने की संभावनाओं पर विचार करें, जिससे एक स्वतंत्र कैडर का भी निर्माण हो सके। रिसर्च के विषय में समिति ने जूनियर और सीनियर रिसर्च फैलोशिप की धनराशि बढ़ाने की सिफारिश की है।
हालांकि, इसकी एक महत्वपूर्ण सिफारिश विभिन्न मंत्रालयों/संगठनों के साथ विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रीय महत्व वाले अनुसंधान विषयों के चयन पर ध्यान केंद्रित करने के बारे में भी है। रिपोर्ट में इस विषय पर भी जोर दिया गया है कि संबंधित विभाग को आईआईटी में इंयूबेसन सेंटर्स द्वारा बनाए गए पेटेंट और उत्पादों के बारे में तीसरे पक्ष के मूल्यांकन का संचालन करना चाहिए, और इंयूबेटेड संस्थाओं द्वारा निर्मित उत्पादों और सेवाओं के साथ-साथ रोजगार सृजन क्षमता का आकलन करना चाहिए। ऐसी व्यवस्था जवाबदेही सुनिश्चित करने के विचार को बल प्रदान करेगी। पुराने ढर्रे से हटकर समिति ने अपने सुझावों में ‘एसपीरियंस बेस्ड लर्निंग’ या ‘ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग’ के लिए यूजीसी को उद्योगों और स्टार्ट-अप्स के साथ बीए, बी.कॉम और बी.एससी पाठ्यक्रमों में दो-सेमेस्टर के इंटर्नशिप की संभावनाएं तलाशने के लिए कहा है। मंत्रालय को यह भी सुझाव दिया गया है कि ‘स्टडी इन इंडिया’ योजना को और मजबूती बनाया जाए, और भारत को उच्च शिक्षा का हब बनाने को लेकर पुणे में आईसीसीआर द्वारा आयोजित ‘डेस्टिनेशन इंडिया कॉन्फ्रेंस’ के सुझावों को गंभीरता से लिया जाए। संसदीय स्थायी समितियां एक अत्यंत महत्वपूर्ण बोर्ड के रूप में कार्य करती हैं, और अगर शिक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति की इस रिपोर्ट की सिफारिशों को संबंधित विभागों द्वारा गंभीरता से लिया जाता है तो शिक्षा में सुधार सुनिश्चित है, जो बड़े पैमाने पर हमारे समाज को बदलने में मददगार साबित होगा।
विनय सहस्त्रबुद्धे
(लेखक आईसीसीआर के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद हैं, ये उनके निजी विचार हैं)