मोदी सरकार पूरी तरह नाकाम

0
228

देश में जैसे घटनाक्रम हो रहे हैं, वे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यह संदेश देने के लिए काफी हैं कि 2019 की जीत के बाद जिस तरह से सरकार चल रही है, उसमें सुधार की जरूरत है। जब सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस की नीति के लिए प्रतिबद्ध दिख रही थी, उसे देशभर में विरोध के बाद इसे रोकना पड़ा। सरकार किसान आंदोलन का कोई समाधान नहीं निकाल पाई। इसी साल सरकार ने कोरोना संकट को संभालने का संकेत दिया, लेकिन अब देश घोर स्वास्थ्य संकट झेल रहा है। हाल ही में भाजपा ने ममता बनर्जी को हराकर बंगाल में 220 सीट जीतने के दावे का ढिंढोरा पीटा, लेकिन बुरी तरह असफल हो गई। यह सब दर्शाता है कि भाजपा को इस पर पुनर्विचार की जरूरत है कि उसे आने वाले वर्षों में नीतियों और चुनावों को लेकर कैसे आगे बढऩा चाहिए। उसके समक्ष कोरोना की दूसरी लहर का सामना करने की कम अवधि की चुनौती और लंबी अवधि की रणनीति बनाने की चुनौती है। बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन की तुलना हालिया नतीजों से की जाए तो 77 सीट जीतकर उसने ठीक प्रदर्शन किया है। लेकिन पार्टी के 200 सीट जीतने के दावे के कारण यह प्रदर्शन बुरा लगने लगा।

उधर असम में भले ही भाजपा ने सत्ता बरकरार रखी हो, लेकिन जीत का अंतर बड़ा नहीं था। महाजोत का वोट शेयर (44फीसद), भाजपा और उसके सहयोगियों के वोट शेयर (45 फीसद) से 1 फीसद ही कम था। भाजपा दक्षिणी राज्यों में भी पैठ बनाने में नाकाम रही। सिर्फ चुनावी असफलता ही भाजपा की चिंता का विषय नहीं है। महीनों से चल रहे किसानों के विरोध को तोडऩे में अक्षमता भी चिंताजनक है। भले ही कृषि कानूनों को लेकर हो रहे इन प्रदर्शनों में ज्यादातर पंजाब-हरियाणा के किसान हों, लेकिन हालिया चुनाव वाले चारों राज्यों में हुए लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे बताते हैं कि बड़ी संया में लोग चाहते हैं कि कृषि कानून वापस हों। हालांकि सर्वे केवल चार राज्यों का मूड बता रहे हैं, लेकिन दूसरे राज्यों में भी कृषि कानूनों पर पॉपुलर मूड अलग होने का कोई कारण नहीं है। कहानी यहीं खत्म नहीं होती। भाजपा को अपनी हालिया नीतियों और पहलों पर भी पुनर्विचार की जरूरत है। सर्वे बताते हैं कि एनआरसी और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर दक्षिणी राज्यों में काफी जागरूकता है और आबादी के कुछ हिस्सों में, यहां तक कि भाजपा समर्थकों में भी इन दोनों मुद्दों का काफी विरोध देखा गया है।

भाजपा गलती करेगी, अगर वह सोचती है कि एनआरसी और सीएए पर उसे व्यापक समर्थन हासिल है। उसे पुनर्विचार की जरूरत है कि इन दो मुद्दों को समय आने पर वह कैसे आगे ले जाएगी? दूसरी लहर के कारण आए मौजूदा स्वास्थ्य संकट ने बतौर सत्ताधारी पार्टी भाजपा की मुश्किल बढ़ाई हैं और लोग मदद के लिए प्रधानमंत्री मोदी की ओर देख रहे हैं। लोग इस भयावह स्थिति के लिए सरकार को जिम्मेदार मान रहे हैं। जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी से बहुत उम्मीदें थीं, वे निराश हैं। बड़ी संया में लोगों का विश्वास उनपर से उठ रहा है। सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी, दिन-ब-दिन लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि लोग कोरोना के लिए उन्हें दोषी मान रहे हैं, लेकिन बड़ी संया में लोग मानते हैं कि केंद्र सरकार ने संकट के समय में पर्याप्त काम नहीं किया। ऐसे समय में, जब भाजपा सरकार की रेटिंग गिर रही है, पार्टी को अपने कुछ विवादास्पद फैसलों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिस पर पिछले कुछ वर्षों में काफी हंगामा मचा है। कोरोना के नियंत्रण में आने के बाद केंद्र सरकार पहले की तरह व्यवहार नहीं कर सकती। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के लिए निश्चित तौर पर खतरे की घंटी बज रही है।

संजय कुमार
(लेखक सीडीएस में अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here