किसानों से पंगा महंगा पड़ेगा

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दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जो तारबंदी, कील बिछाई, खाई खुदाई, दीवार बनाई, नुकीले सरियों की गढ़ाई का जो काम केंद्र सरकार ने किया है, उसका वास्तविक मंतव्य न समझ पाने के चलते लोग बेवजह सरकार की आलोचना-निन्दा कर रहे हैं। किसी को लगे न लगे मुझे तो यही लग रहा है कि सरकार ने इन सीमाओं पर इस तरह के कड़े बंदोबस्त करके देश की सीमाओं की सजीव झांकी प्रस्तुत की है, ताकि लोग समझ सकें कि दुश्मन हमारे देश की जमीन पर पांव भी नहीं रख सकता है। यह सोचना गलत होगा कि सरकार आंदोलनकारी किसानों को दुश्मन के रूप में देख रही है, सरकार ने तो बस आपदा में अवसर का लाभ लेकर एक सकारात्मक संदेश देश-दुनिया को देने का काम किया है। मुझे तो ऐसा ही लग रहा है, अपनी जानो आप। तमाम लोग सरकार के आलोचक हैं। उन आलोचकों में से कुछ ऐसे भी हैं जो कह रहे हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर सारे इंतजाम सरकार ने कंगना रनौत के एक ट्वीट के बाद किये हैं। कंगना ने यह ट्वीट मशहूर पॉप सिंगर रिहाना द्वारा किसानों के समर्थन में किये गये एक ट्वीट के बाद किया। रिहाना ने अपने ट्वीट में लिखा-आखिर हम यों नहीं किसानों के बारे में बात कर रहे।

कंगना ने जबरदस्त पलटवार करते हुए रिहाना को मुंहतोड़ जवाब दिया-कोई इस बारे में बात इसलिये नहीं कर रहा है क्योंकि वे किसान नहीं हैं वे आतंकवादी हैं, जो भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि चीन हमारे देश पर कब्जा कर सके। इतनी गंभीर और खुफिया जानकारी जो सरकारी गुप्तचर एजेंसियों के पास तक नहीं थी कंगना ने सरकार को देकर बड़ा काम किया। सरकार ने कंगना की सूचना पर तत्काल संज्ञान लिया और कथित ‘देश तोड़कों पर अंकुश लगाने का काम कर दिया। तमाम लोग इस प्रकरण में इस तरह से भी सोच रहे हैं। अगर यही सच है तो धन्यवाद कंगना, तुमने देश को एक बड़े खतरे से बचा लिया। …वैसे यह बात तीसरी है कि बहुत बड़ी संया में लोग सरकार के ताजा दिल्ली बॉर्डर बंदोबस्त को किसान आंदोलन को तोडऩे और किसानों को सबक सिखाने के बड़े प्लान के तौर पर देख रहे हैं। सच क्या है इसका खुलासा केवल सरकार कर सकती है, मगर सरकार ऐसा क्यों करेगी? इस प्रश्न का उत्तर चाहें तो खाली बैठे आप तलाश सकते हैं, टाइम पास होगा। वैसे आप धूप में बैठकर इस बात पर चिंतन और चिंता कर सकते हैं कि क्या कंगना रनौत का बयान भड़काऊ और बेवकूफाना नहीं है? यदि आपको कंगना की अदाकारी के साथ उसका यह बयान भी पसंद है तो आपसे कुछ नहीं कहना है क्योंकि जो आपसे कहा जाएगा आप उसे सुनेंगे नहीं, इसलिये कहने से क्या फायदा?

हालांकि कोई सुने न सुने लेकिन लोग आत्मसंतोष के लिए कहते रहते हैं। ऐसे लोगों में एक नाम भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी जी का है, जो अपनी सरकार से कहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन उनकी बात पर कोई ध्यान देता नहीं है। अब किसान आंदोलन की गुत्थी सुलझाने के लिए स्वामी जी ने एक बेहतरीन सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है-केंद्र सरकार को तीनों नये कृषि कानूनों को राज्यों के लिए वैकल्पिक कर देना चाहिए। जो भी राज्य केंद्र से इन कानूनों को लागू करने की मांग करें केवल उन्हीं राज्यों में उन्हें लागू किया जाए। सरकार चाहे तो इस सुझाव को मानकर अपनी मुसीबत राज्य सरकारों के गले में पहना सकती है। लेकिन सवाल है कि क्या सरकार स्वामी जी के सुझाव को मानेगी? इस सुझाव के साथ स्वामी जी ने यह भी दावा किया है कि भाजपा के दर्जन भर सांसद उनके इस सुझाव से पूरी तरह सहमत हैं। सांसदों के सहमत होने से क्या होता है। सहमत तो आदरणीय प्रधानमंत्री और श्री गृहमंत्री को होना है, जिनकी मर्जी के बिना पार्टी में पत्ता तक नहीं हिलता है। किसान इस कोशिश में हैं कि पेड़ ही हिला दो, पत्ते अपने आप हिल जाएंगे। आम लोगों की राय है कि यदि किसान आंदोलन को दमनकारी नीति से कुचला जाएगा तो घाटे में सरकार भी रहेगी।

राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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